‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

सभ्यसमाज

सभ्यसमाज एक कुशल माली बेटी की पौध रोपते जतन से पल्लवित होकर नन्ही सी पौध अटखेलियां करे गुनगुनाती हुई पुष्पित होती महके चारो ओर करे जतन तोड़े ना कोई चोर जग बगिया बेटी जिसकी शोभा गढ़े गौरव गाथा ...

ममता का आंचल

तारें आकश दीनकर प्रकाश धरती रज समुद्र जल निधि ईश्वर दया माप सका है कौन जगत मौन ममता का आंचल गोद में शिशु रक्त दान करती वात्सल्य स्नेह ...

नेताओं के चम्मच

.कौन करे है ? देश में भ्रष्टाचार, हमारे नेता, नेताओं के चम्मच आम जनता शासक अधिकारी सभी कहते हाय तौबा धिक्कार थूक रहे हैं एक दूसरे पर ये जानते ना कोई नही नही रे मानते नही कोई तुम ही तो हो मै भी उनके साथ बेकार की है बात ।...

प्राण सम सजनी

.चारू चरण चारण बनकर श्रृंगार रस छेड़ती पद चाप नुुपूर बोल वह लाजवंती है संदेश देती पैर की लाली पथ चिन्ह गढ़ती उन्मुक्त ध्वनि कमरबंध बोले लचके होले होले सुघ्घड़ चाल रति लजावे चुड़ी कंगन हाथ, हथेली लाली मेहंदी मुखरित स्वर्ण माणिक ग्रीवा करे चुम्बन धड़की छाती झुमती बाला कान उभरी लट मांगमोती ललाट भौहे मध्य टिकली झपकती पलके नथुली नाक हंसी उभरे गाल ओष्ठ...

जीवन समर्पण

रोपा है पौध रक्त सिंचित कर निर्लिप्त भाव जीवन की उर्वरा अर्पण कर लाल ओ मेरे लाल जीवन पथ सुघ्घड़ संवारते चुनते कांटे हाथ आ गई झुर्री लाठी बन तू हाथ कांप रहा है अंतःकरण, प्रस्पंदित आकांक्षा, अमूर्त पड़ा मूर्त करना अब, सारे सपने, अनगढ़े लालसा प्रतिबम्ब है तू तन मन मेरा जीवन समर्पण ...

कौन श्रेष्ठ है ?

.कौन है सुखी ? इस जगत बीच कौन श्रेष्ठ है ? करे विचार किसे पल्वित करे सापेक्षवाद परिणाम साधक वह सुखी हैं संतोष के सापेक्ष वह दुखी है आकांक्षा के सापेक्ष अभाव पर उसका महत्व है भूखा इंसान भोजन ढूंढता है पेट भरा है वह स्वाद ढूंढता कैद में पक्षी मन से उड़ता है कैसा आश्चर्य ऐसे है मानव भी स्वतंत्र तन मन परतंत्र है कहते सभी बंधनों से स्वतंत्र हम आजाद है...

मानवता कहां है ?

2.घने जंगल वह भटक गया साथी न कोई आगे बढ़ता रहा ढ़ूंढ़ते पथ छटपटाता रहा सूझा न राह वह लगाया टेर देव हे देव सहाय करो मेरी दिव्य प्रकाष प्रकाशित जंगल प्रकटा देव किया वह वंदन मानव है तू ? देव करे सवाल उत्तर तो दो मानवता कहां है ? महानतम मैने बनाया तुझे सृष्टि रक्षक मत बन भक्षक प्राणी जगत सभी रचना मेरी सिरमौर तू मुखिया मुख जैसा पोशण कर सदा ...

कविताई

कवि के संग कवित्व है ? और कविता संग कविताई ? ? कवि सम्मेलन के बाद पूछ रहा एक वृद्ध की तरुणाई ...

कुण्डलियाँ यूँ बोलती है

-कुण्डलियाँ यूँ बोलती है- 1. बेटा-बेटी एक सम, सौ प्रतिशत है सत्य ।बेटा अब कमतर लगे, यह भी है कटु तथ्य ।।यह भी है कटु तथ्य, उच्च शिक्षा वह छोड़े ।अपने आप हताश, नशा से नाता जोड़े ।सुन लो कहे ‘रमेश’, हुआ वह अब सप्रेटा ।बेटी के समकक्ष, लगे कमतर अब बेटा ।।(सप्रेटा-मक्खन रहित दूध) 2. दादा-दादी माँ-पिता, भैया-भाभी संग ।चाचा-चाची और हैं, ज्यों फूलों...

बच्चे समझ न पाय, दर्द जो मन हैं मेरे

मेरे घर संस्कार का,  टूट रहा दीवार ।छद्म सोच के अस्त्र से, करे बच्चे प्रतिकार ।।करे बच्चे प्रतिकार, कुपथ का बन सहचारी  ।मौज मस्ती के नाम, बने ना कुछ व्यवहारी।।हृदय रक्त रंजीत, कुसंस्कारों के घेरे ।बच्चे समझ न पाय, दर्द जो मन हैं  मेरे ।।-रमेश चौ...

राम राज में

एक घाट एक बाट, सिंह-भेड़  साथ-साथ,रहते  थे जैसे पूर्व, रामजी के राज में  ।शोक-रोग राग-द्वेश, खोज-खोज फिरते थे,मिले ठौर बिन्दु सम,  अवध समाज में  ।।दिन फिर फिर जावे,जन-जन साथ आवेजाति-धर्म भेद टूटे, राम नाम  साज में ।राम भक्त जान सके, और पहचान सके, राम राम कहलाते, अपने ही काज में  ।।-रमेश चौहान&nb...

नाहक करे बवाल

मंदिर मेरे गाँव का, ढोये एक सवाल पत्थर की यह मूरत पत्थर, क्यों ईश्वर कहलाये काले अक्षर जिसने जाना, ढोंग इसे बतलाये शंखनाद  के शोर से, होता जिन्हें मलाल देख रहा है मंदिर कबसे, कब्र की पूजा होते लकड़ी का स्तम्भ खड़ा है उनके मन को धोते प्रश्न वही अब खो गया, करके नया कमाल तेरे-मेरे करने वाले, तन को एक बताये मन में एका जो कर न सके ज्ञानी वह कहलाये सूक्ष्म...

अपनी आँखों से दिखे,

अपनी आँखों से दिखे, दुनिया भर का चित्र ।निज मुख दिखता है नहीं, तुम्ही कहो हे! मित्र ।तुम्हीं कहो हे! मित्र, चेहरा मेरा कैसा ।दुनिया से है भिन्न, या कि वैसा का वैसा ।।बंधा पड़ा "रमेश", स्याह मन के काँखों से।कैसे अंतस देह, पढ़े अपनी आँखों से ।। -रमेश चौहन...

मानववादी

गुरु साधन ईश्वर साध्य है, पथ पगडंडी धर्म । नश्वर मनुष्य साधक यहां, जिसके हाथों कर्म ।। केवल परिचय देखकर, करते आप कमेंट । कुछ तो देखा कीजिये, रचना का कांटेंट ।। अपने निज अभिमान को, माने श्वास समान । श्वास चले जीवित रहे, वरना मौत सुजान ।। कर्म कली का कल्पतरु, सकल कामना लाय । सुयश कर्म ही धर्म है, अपयश धर्म नशाय ।। नश्वर यह संसार है, नाशवान हर चीज...

बहाने भी खूब सिखें हैं हम,

रात चाहे शरद का अमावस हो, भोर का पथ रोक नहीं सकता लक्ष्य चाहे झुरमुटों में गुम हो, अर्जुन दृष्टि में धूल झोक नहीं सकता ढूंढ़ने वाले बिखरे रेत क्या ढेर से भी सुई ढूंढ निकाल लेते हैं न करने के लाख बहाने जिसने सीखे, उस पत्थर पर कोई सिर ठोक नहीं सकता -रमेश चौहा...

जिंदगी और कुछ भी नहीं

जिंदगी और कुछ भी नहीं, बस एक बहती हुई नदी है छल-छल, कल-कल, सतत् प्रवाहित होना गुण जिसका सुख-दुख के तटबंधों से बंधी, जो अविरल गतिमान पथ के हर बाधाओं को, रज-कण जो करती रहती जीवन वेग कहीं त्वरित कहीं मंथर हो सकता है पर प्रवाहमान प्राणपन जिसका केवल है पहचान हौसलों के बाढ़ से बह जाते अवरोध तरु जड़ से पहाड़ भी धूल धूसरित हो जाते इनसे टकरा कर कभी टिप-टिप...

वो प्यार नहीं तो क्या था?

तेरे नैनों का निमंत्रण पाकर मेरी धड़कन तुम्हारी हुई । मेरे नैना तुम्हारी अंखियों से, पूछा जब एक सवाल तुम में ये मेरा बिम्ब कैसा ? पलकों के ओट पर छुपकर वह बोल उठी- "मैं तुम्हारी दुलारी हुई ।" नैनों की भाषा जुबा क्या समझे कहता है ना तुझसे मेरा वास्ता यह तकरार नहीं तो क्या था ? नयनों ने फिर नैनों से पूछा वो प्यार नहीं तो क्या था ?? -रमेश चौह...

आरक्षण सौ प्रतिशत करें

छोड़ बहत्तर सौ करें, आरक्षण है नेक । संविधान में है नहीं, मानव-मानव एक  ।। मानव-मानव एक, कभी होने मत देना । बना रहे कुछ भेद, स्वर्ण से बदला लेना ।। घुट-घुट मरे "रमेश",  होय तब हाल बदत्तर । मात्र स्वर्ण को छोड़, करें सौ छोड़ बहत्तर ...

वेद

श्रीमुख से है जो निसृत,  कहलाता श्रुति वेद । मानव-तन में भेद क्या, नहीं जीव में भेद ।। नहीं जीव में भेद,  सभी उसके उपजाये । भिन्न-भिन्न रहवास, भिन्न भोजन सिरजाये ।। सबका तारणहार, मुक्त करते  हर दुख से । उसकी कृति है वेद, निसृत उनके श्रीमुख से ।। -रमेश चौह...

मैं देश का (गंगोदक सवैया)

शान में मान में गान में प्राण में, जान लो मान लो  मात्र मैं देश का । ध्यान से ज्ञान से योग से भोग से, मूल्य मेरा बने वो सभी देश का । प्यार से  बांट के प्यार को प्यार दे, बांध मैं लिया डोर से देश को । जाति ना धर्म ना पंथ भी मैं नहीं, दे चुका हूँ इसे दान में देश को । -रमेश चौह...

हे सावन सुखधाम

सावन! तन से श्याम थे, अब मन से क्यों श्याम धरती शस्या तुम से होती, नदियां गहरी-गहरी चिड़िया चीं-चीं कलरव करती, कुआँ-बावली अहरी । (अहरी=प्याऊ) तुम तो जीवन बिम्ब हो, तजते क्यों निज काम धरती तुमसे जननी धन्या, नीर सुधा जब लाये भृकुटि चढ़ाये जब-जब तुम तो, बंध्या यह कहलाये हम धरती के जीवचर, करते तुम्हें प्रणाम तुम से जीवन नैय्या चलती, तुम बिन खाये हिचकोले नीर...

हिन्दी श्लोक

आठ वर्ण जहां आवे, अनुष्टुपहि छंद है । पंचम लघु  राखो जी, चारो चरण बंद में ।। छठवाँ गुरु आवे है, चारों चरण बंद में । निश्चित लघु ही आवे, सम चरण सातवाँ ।। अनुष्टुप इसे जानों, इसका नाम श्लोक भी । शास्त्रीय छंद ये होते, वेद पुराण ग्रंथ में ।। ------------------------------- राष्ट्रधर्म कहावे क्या, पहले आप जानिये । मेरा देश धरा मेरी, मन से आप मानिये...

भूमि अतिक्रमण का मार

नदियों पर ही बस गये, कुछ स्वार्थी इंसान । नदियां बस्ती में बही, रखने निज सम्मान ।। जल संकट के मूल में, केवल हैं इंसान । जल के सारे स्रोत को, निगल रहे नादान ।। कहीं बाढ़ सूखा कहीं, कारण केवल एक । अतिक्रमण तो भूमि पर, लगते हमको नेक ।। गोचर गलियां गुम हुई, चोरी भय जल स्रोत । चोर पुलिस जब एक हो, कौन लगावे रोक ।। जंगल नदियों से हम सभी, छिन रहे पहचान को...

नारी पच्चीसा

नारी! देवी तुल्य हो, सर्जक पालक काल । ब्रह्माणी लक्ष्मी उमा, देवों का भी भाल ।। देवों का भी भाल, सनातन से है माना । विविध रूप में आज, शक्ति  हमने पहचाना ।। सैन्य, प्रशासन, खेल, सभी क्षेत्रों में भारी । राजनीति में दक्ष, उद्यमी भी है नारी ।।1।। नारी का पुरुषार्थ तो, नर का है अभिमान । नारी करती आज है, कारज पुरुष समान ।। कारज पुरुष समान, अकेली...

क्या बदला जीवन में

धरती सूूूूरज चांंद सितारे, अरु जीवोंं का देेेेह । देेेख रहा हूँ जब सेे जीवन, एक रूप अरु नेेेह ।। माँ की ममता प्यार बाप का, समरस मैंने पाया । मुझ पर उनकी चिंता समरस, जब से मुझको जाया ।। मेरे जीवन में सुख-दुख क्रम, दिवस-निशा क्रम के जैसे । कल भी सुख-दुख था जीवन में, अब भी वैसे के वैसे ।। भूख-प्यास शाश्वत काया का, मैंने जीवन में पाया । मेरे तन के चंचल...

देशप्रेम सबसे प्रथम

देशप्रेम सबसे प्रथम, बाकी मुद्दे बाद में । बलिदानी इस देश के, बोल रहे हैं याद में ।। प्राण दिये हैं हम यहाँ, एक आश विश्वास में । अखिल हिन्द सब एक हो, देशभक्ति की प्यास में ।। वह बलिदानी आपसे, माँग रहा बलिदान है । सुख का लालच छोड़ कर, करना अब मतदान है ।। -रमेश चौहान...

अभिनंदन नूतन वर्ष

अभिनंदन नववर्ष (दुर्मिल सवैया ) अभिनंदन  पावन वर्ष नया दुख नाशक हो सुख ही करिये । नव भाग्य रचो शुभ कर्म कसो सब दीनन के घर श्री धरिये । परिवार सभी परिवार  बने मन द्वेष पले उनको हरिये । जग श्री शुभ मंगलदायक हो सुख शांति चराचर में  भरिये ।। -रमेश चौह...

चुनावी दोहा

देश होत है लोग से, होत देश से लोग । देश भक्ति निर्लिप्त है, नहीँ चुनावी भोग ।। गर्व जिसे ना देश पर, करते खड़ा सवाल । जिसके बल पर देश में , दिखते नित्य बवाल ।। वक्त यही बदलाव का, बनना चौकीदार । नंगे-लुच्चे इस समय, पहुँचे मत दरबार ।। लोकतंत्र में मतदाता ही, असली चौकीदार । स्वार्थी लोभी नेताओं को, करे बेरोजगार ।। देख घोषणा पत्र यह, रिश्वत से ना भिन्न...

चुनावी सजल

सुई रेत में गुम हो गई , सत्य चुनावी घोष में,कौन कहां अब ढूँढे उसे, बुने हुये गुण-दोष में ।भाग्य विधाता बनने चले, बैठ ऊँट की पीठ पर,चना-चबेना खग-मृग हेतु, छिड़क रहें उद्घोष में ।जाल बिछाये छलबल लिये, दाने डाले बोल केदेख प्रतिद्वंदी वह सजग, लाल दिखे है रोष में ।बने आदमी यदि आदमी, अपने को पहचान कररत्न ढूँढ लेवे सिंधु से, मिथक तोड़ संतोष में ।लोभ मोह के...

बढ़ो तुम देखा-देखी

देखा-देखी से जगत, आगे बढ़ते लोग । अगल-बगल को देखकर, बढ़े जलन का रोग । बढ़े जलन का रोग, करे मन ऐसा करना । करके वैसा काम, सफलता का पथ गढ़ना । सुन लो कहे रमेश, छोड़ कर अपनी  सेखी । करलो खुद  कुछ काम, बढ़ो तुम देखा-देखी ।...

सबूत चाहिये

मांगे आज सबूत, करे जो शोर चुनावी । सोच रहा है देश, हुआ किसका बदनामी ।। देख नियत पर खोट, नियत अपना ना देखे । निश्चित ये करतूत, शत्रु ने हाथ समेखे । प्रमाण-पत्र देश-प्रेम का , तुझे अन्य से ना चाहिये । किन्तु हमें तो तुमसे सही, इसका इक सबूत चाहिये ।। कल की बातें छोड़, आज का ही दिखलाओ । देख रहा जो देश,  देश को ही बतलाओ ।। कल की वह हर बात, दिखे जो...

नेता देते चोट

देश  विरोधी बात  पर,  करे कौन है  वोट । जिसे रिझाने देश को, नेता  देते  चोट  ।। नेता  देते  चोट,  शत्रु  को  बाँहें डाले । व्यर्थ-व्यर्थ  के  प्रश्न, देश में खूब  उझाले ।। रोये देख "रमेश ",  लोग  कुछ हैं  अवरोधी । देना  उसको चोट,  बचे ना देश विरोधी ...

चिंतन के दोहे

मंगलमय हो दिन आपका, कृपा करे तौ ईष्ट । सकल मनोरथ पूर्ण हो, जो हो हृदय अभिष्ट ।। जीवन दुश्कर मृत्यु से, फिर भी जीवन श्रेष्ठ । अटल मृत्यु को मान कर, जीना हमें यथेष्ठ ।। एक ध्येय पथ एक हो, एक राष्ट्र निर्माण । एक धर्म अरु कर्म के, धारें तीर कमान ।। कर्म आज का होत है, कल का तेरा भाग्य । निश्चित होता कर्म फल, गढ़ ले निज सौभाग्य ।। दिवस निशा बिन होत...

चुनावी होली

चुनावी होली (सरसी छंद) जोगीरा सरा ररर रा वाह खिलाड़ी वाह. खेल वोट का अजब निराला, दिखाये कई रंग । ताली दे-दे जनता हँसती, खेल देख बेढंग ।। जोगी रा सरा ररर रा, ओजोगी रा सरा ररर रा जिनके माथे हैं घोटाले, कहते रहते चोर । सत्ता हाथ से जाती जब-जब, पीड़ा दे घनघोर ।। जोगी रा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा अंधभक्त जो युगों-युगों से, जाने इक परिवार । अंधभक्त...

अपनों को ही ललकारो

जो पाले अलगाववाद को, उसको हमने ही पाला । झांके ना घर के भेदी को, जपे दूसरों की माला ।। पाल हुर्रियत मुसटंडों को, क्यों अश्रु बहाते हो । दोष दूसरों को दे देकर, हमकों ही बहकाते हो ।। राजनीति के ढाल ओढ़ कर, बुद्धिमान कहलाते हो। इक थैली के चट्टे-बट्टे, जो सरकार बनाते हो ।। आतंकी के जो सर्जक पालक, उनको ही पहले मारो । निश्चित ही आतंक खत्म हो, अपनों...

है मेरी भी कामना

//दोहा गीत// है मेरी भी कामना, करूँ हाथ दो चार । उर पर चढ़ कर शत्रु के, करूँ वार पर वार ।। लड़े बिना मरना नहीं, फँसकर उनके जाल । छद्म रूप में शत्रु बन, चाहे आवे काल ।। लिखूँ काल के भाल पर, मुझे देश से प्यार । है मेरी भी कामना .......... बुजदिल कायर शत्रु हैं, रचते जो षडयंत्र । लिये नहीं हथियार पर, गढ़ते रहते तंत्र ।। बैरी के उस बाप का, सुनना अब चित्कार...

सबसे गंदा खेल है, राजनीति का खेल

ऐसा कैसे हो रहा, जो मन रहे उदास । धर्म सनातन सत्य है, नहीं अंधविश्वास ।। नहीं अंधविश्वास, राम का जग में होना । मुगल आंग्ल का खेल, किये जो जादू-टोना ।। खड़ा किये जो प्रश्न, धर्म आस्था है कैसा । ज्यों काया में प्राण, धर्म आस्था है ऐसा ।। सबसे गंदा खेल है, राजनीति का खेल । करने देते हैं नहीं, इक-दूजे को मेल ।। इक-दूजे को मेल, नहीं क्यों करने देते । करों...

प्रियतम प्रीत तुम्हारी

उपासना है आराधना भी, प्रियतम प्रीत तुम्हारी । सुमन  सुगंधी सम अनुबंधित, प्रियतम प्रीत तुम्हारी ।। ध्रुव तारा सम अटल गगन पर, प्रियतम प्रीत तुम्हारी ।। प्राण देह में ज्यों पल्लवित, प्रियतम प्रीत तुम्हारी ।...

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