‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

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घनाक्षरी की परिभाषा घनाक्षरी में (प्रकार सहित)

रखिये चरण चार, चार बार यति धर तीन आठ हर बार, चौथे सात आठ नौ । आठ-आठ आठ-सात, आठ-आठ आठ-आठ आठ-आठ आठ-नव, वर्ण भार गिन लौ ।। आठ-सात अंत गुरु, ‘मन’ ‘जन’ ‘कलाधर’, अंत छोड़ सभी लघु, जलहरण कहि दौ । गुरु लघु क्रमवार, नाम रखे कलाधर नेम कुछु न विशेष, मनहरण गढ़ भौ ।। आठ-आठ आठ-आठ, ‘रूप‘ रखे अंत लघु अंत दुई लघु रख, कहिये जलहरण । सभी वर्ण लघु भर, नाम ‘डमरू’ तौ धर आठ-आठ...

कौन चले राम संग

सुन-सुन इसे-उसे, इहाँ-वहाँ जहाँ-तहाँ,इधर-उधर देख, मनुवा निराश है ।आस्था में आस्था का, राजनीति घालमेल,आस्था ही आस्था से, आज तो हताश है ।।वर्ष-वर्ष सालों-साल, राम वनवास हेतुफिर से इस देश में, मंथरा तैयार है ।कौन चले राम संग, राम को ही मानकर,अवध के प्रजा आज, मन से बीमार है ।। -रमेशकुमार सिंह चौह...

मेघा बरसो झूम के

काँव-काँव कागा करे, ची.-चीं चहके चिड़िया, मल्हार छेड़े झिंगुरा, मेघा बरसो झूम के । होले-होले पेड़ नाचे, पर पसारे मोरनी, बेसुध हो मन नाचे, मेघा बरसो झूम के ।। धरा की धानी आँचल, नदियों की खिली बाँहे लिख रहीं नवगीत, मेघा बरसो झूम के । रज सौंधी सुवासित, जब तन-मन छाये कली बलखाती गाती, मेघा बरसो झूम के ।। ...

अपनी रेखा गढ़ लें

हर रेखा बड़ी होती, हर रेखा होती छोटी, सापेक्षिक निति यह, समझो जी बात को । दूसरों को छेड़े बिन, अपनी रेखा गढ़ लें उद्यम के स्वेद ले, तोड़ काली रात को।। खीर में शक्कर चाही, शाक में तो नमक रे सबका अपना कर्द, अपना ही मोल है । दूर के ढोल सुहाने, लगते हों जिसको वो जाकर जी देखो भला, ढोल मे भी पोल है ।। ...

गौ माता

गाय को न जीव मात्र, मानिये महानुभाव हमने सदैव इसे, माॅं समान माना है । धरती की कामधेनु, धरती का कल्पवृक्ष भव तरण तारणी, गौ माॅं को ही जाना है । गौ माता के रोम-रोम, कोटि कोटि है देवता ब्रम्हा बिष्णु शिव सभी, गौ पर विराजते। धर्म सनातन कहे, गौ गंगा अरू गीता को जो करे मन अर्पण, मुक्ति पथ साजते ।। विज्ञान की कसौटी से, परख कर जाना है गौ मूत्र अरू गोबर...

भारतीय रेल

रेल के रेलम पेल में, जल्दबाजी के खेल में, छत पर चढ़ रहे, देखो नर नारीयां । जान जोखिम में डाल, गोद में बच्चे सम्हाल, दिखा रहें हैं वीरता, दक्ष सवारीयां ।। अबला सबला भई, दुर्गावती लक्ष्मी बन, लांघ रही वह बोगी, छत में ठौर पाने । कौन इन्हें समझायें, जीवन मोल बतायें, क्यों करते नादानी, रेल के दीवाने ।। रेल-रेल भारतीय रेल, रेल है ऐसा जिसके़, अंदर को कौन...

नित्य-नित्य पखारते, चरण वतन के

मां भारती के शान को, अस्मिता स्वाभिमान को, अक्षुण सदा रखते, सिपाही कलम के । सीमा पर छाती तान, हथेली में रखे प्राण, चौकस हो सदा डटे, प्रहरी वतन के । चांद पग धर कर, माॅस यान भेज कर, जय हिन्द गान लिखे, विज्ञानी वतन के । खेल के मैदान पर, राष्ट्र ध्वज धर कर, लहराये नभ पर, खिलाड़ी वतन के । हाथ कूदाल लिये, श्रम-स्वेद भाल लिये, श्रम के गीत गा रहे, श्रमिक...

फैंशन के चक्कर में (घनाक्षरी छंद)

फैंशन के चक्कर में, पश्चिम के टक्कर में भूले निज संस्कारों को, हिन्द नर नारियां । अश्लील गीत गान को, नंगाय परिधान को शर्म हया के देश में, मिलती क्यों तालियां । भाई कहके नंगों को, दादा कह लफंगो को, रक्त जनित संबंधो को, दे रहे क्यों गालियां । दुआ-सलाम छोड़ के, राम से नाता तोड़ के हाय हैलो बोल-बोल, हिलाते हथेलियां । हया रखे ताक पर, तंग वस्त्र धार कर, लोकलाज...

मतपेटी तो बोलेगी , आज मेरे देश में

झूठ और फरेब से, सजाये दुकानदारी । व्यपारी बने हैं नेता,  आज मेरे देश में ।। वादों के वो डाले दाने, जाल कैसे बिछायें है । शिकारी बने हैं नेता, आज मेरे देश में ।। जात पात धरम के, दांव सभी लगायें हैं । जुवारी बने हैं नेता, आज मेरे देश में ।। तल्ख जुबान उनके, काट रही समाज को । कटारी बने हैं नेता, आज मेरे देश में ।। दामन वो फैलाकर, घर घर तो घूम रहे...

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