‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

एक तरही गजल-देखा जब से उसे मै दीवाना हुआ

देखा जब से उसे मै दीवाना हुआ
उसको पाना जीवन का निशाना हुआ ।

जब से गैरों के घर आना जाना हुआ
तब से गैरो से भी तो यराना हुआ ।

मुखड़े पर उनकी है चांद की रोशनी
नूर से उनके रोशन यह जमाना हुआ ।

कस्तूरी खुशबू रग रग समाया हुआ
गुलबदन देख गुलशन सुहाना हुआ ।

सादगी की मूरत रूप की देवी वो तो
कोकीला कंठ उनका तराना हुआ ।

प्यार करते नही प्यार हो जाता है
प्यार उनका छुपा इक खजाना हुआ ।

जब से आई तू मेरे जीवन में प्रिये
मेरे धड़कन का तब आना जाना हुआ ।

दिल जवा है जवा ही रहेगा सदा
क्या हुआ जो ये नाता पुराना हुआ ।
......................................
- रमेशकुमार सिंह चैहान

हम आजाद है रे (चोका)

कौन है सुखी ?
इस जगत बीच
कौन श्रेष्‍ठ है ?
करे विचार
किसे पल्वित करे
सापेक्षवाद
परिणाम साधक
वह सुखी हैं
संतोष के सापेक्ष
वह दुखी है
आकांक्षा के सापेक्ष
अभाव पर
उसका महत्व है
भूखा इंसान
भोजन ढूंढता है
पेट भरा है
वह स्वाद ढूंढता
कैद में पक्षी
मन से उड़ता है
कैसा आश्‍चर्य
ऐसे है मानव भी
स्वतंत्र तन
मन परतंत्र है
कहते सभी
बंधनों से स्वतंत्र
हम आजाद है रे ।

तरही गजल


खफा मुहब्बते खुर्शीद औ मनाने से,
फरेब लोभ के अस्काम घर बसाने से ।

इक आदमियत खफा हो चला जमाने से,
इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से ।

नदीम खास मेरा अब नही रहा साथी,
फुवाद टूट गया उसको अजमाने से ।

जलील आज बहुत हो रहा यराना सा..ब
वो छटपटाते निकलने गरीब खाने से ।

असास हिल रहे परिवार के यहां अब तो
वफा अदब व मुहब्बत के छूट जाने से

दीपावली की शुभकामना (गीतिका छंद)

दीप ऐसे हम जलायें, जो सभी तम को हरे ।
पाप सारे दूर करके, पुण्य केवल मन भरे ।।
क्ष उर निर्मल करे जो, सद्विचारी ही गढ़े ।
लीन कर मन ध्येय पथ पर, नित्य नव यश शिश मढ़े ।

कीजिये कुछ काज ऐसा, देश का अभिमान हो  ।

श्रु ना छलके किसी का, आज नव अभियान हो ।
सीख दीपक से सिखें हम, दर्द दुख को मेटना ।
न पुनित आनंद भर कर, निज बुराई फ्रेकना ।।

शुभ  विचारी लोग होंवे, मानवी गुण से भरे ।
द्र कहावें सभी जन, मान महिला का करे ।

काम सबके हाथ में हो, भाग्य का उपकार हो ।
द रहे ना मन किसी के, एकता संस्कार हो ।।
नाम होवे देश का अब, दश्षप्रेमी लोग हों ।

लोकतंत्र करे अपील (छंदमाला)

दोहा
बड़े जोर से बज रहे, सुनो चुनावी ढोल ।
साम दाम सब भेद से, झुपा रहे निज पोल ।।

सोरठा
लोकतंत्र पर्व एक, सभी मनाओं पर्व यह ।
बने देश अब नेक,, करो जतन मिलकर सभी ।।

ललित
गंभीर होत चोट वोट का, अपनी शक्ति दिखाओं ।
जो करता हो काज देश हित, उनको तुम जीताओं ।।
लोभ स्वार्थ को तज कर मतदाता, अपना देश बनाओ।
हर हाथों में काम दिलावे, नेता ऐसा अजमाओ ।।

गीतिका
देश के वोटर सुनो अब, इस चुनावी शोर को ।
वोट करने के समय तुम, याद रखना भोर को ।।
राजनेता भ्रष्ट हों जो, ढोल उनका बंद हो ।
लोभ चाहे जितना दें, शक्ति अब ना मंद हो ।।

कुणडलियाँ
मतदाता इस देश के, सुन लीजिये पुकार ।
रीढ़ बनो तुम देश का, करने को उपकार ।।
करने को उपकार, देश हित नव पथ गढ़ने ।
छोड़ अभी निज काम, बढ़ाओ पग को बढ़ने ।।
सुन लो कहे ‘रमेश’, हमारी धरती माता ।
देश हमारा स्वर्ग, देवता है मतदाता ।।

-रमेश चौहान

गजल-मेरे माता पिता ही तीर्थ हैं हर धाम से पहले




मेरे माता पिता ही तीर्थ हैं हर धाम से पहले

चला थामे मैं उँगली उनकी नित हर काम से पहले

उठा कर भाल मै चिरता चला हर घूप जीवन का,

बना जो करते सूरज सा पिता हर शाम से पहले


झुकाया सिर कहां मैने कही भी धूप से थक कर,

घनेरी छांव बन जाते पिता हर घाम से पहले

सुना है पर कहीं देखा नही भगवान इस जग में

पिता सा जो चले हर काम के अंजाम से पहले

पिताजी कहते मुझसे पुत्र तुम अच्छे से करना काम
तुम्हारा नाम भी आएगा मेरे नाम से पहले

......................रमेश.....................

दोहावली

दोहे
ठहर न मन इस ठांव में, जाना दूसरे ठांव ।
ठाठ-बाट मिटते जहाँ, मिलते शीतल छांव ।।

तुम होगे हंसा गगन, काया होगी ठाट ।
मनुवा तुम तो हो पथिक , जीवन तेरा बाट ।

कर्मो की मुद्रा यहां, पाप पुण्य का  हाट ।।
 ले जायेगा साथ क्या, झोली भर ले छाट ।।

ले जाते उपहार हैं, कुछ ना कुछ उस धाम ।
कर्मों की ही पोटली, आते केवल काम ।।

दुख रजनी में है छुपा, सुख का सूर्य प्रकाश ।
कष्टों का पल काट ले, लिये भोर की आस ।।

हर प्राणी मेंं प्राण है , जैसे तेरे देह ।
निज सुख दुख,सम मानकर करें सभी से नेह ।।

-रमेश चौहान

6 कुण्डलियां

1.गणेश वंदना
विघ्न विनाश्‍ाक गणराज हे, बारम्बार प्रणाम ।
प्रथम पूज्य तो आप हैं, गणपति तेरो नाम ।।
गणपति तेरो नाम, उमा शिव के प्रिय नंदन ।
सकल चराचर मान, किये माँ-पितु का वंदन ।।
चरणन पड़ा ‘रमेश’, मान कर मन का शासक  ।
मेटें मेरे कष्ट, भाग्य जो विघ्न विनाशक ।।

2. सरस्वती वंदना
वीणा की झंकार से, भरें राग उल्लास ।
अज्ञानता को नाश कर, देवें ज्ञान उजास ।।
देवें ज्ञान उजास, शारदे तुझे मनाऊँ ।
ले श्रद्धा विश्वास, चरण में भेट चढ़ाऊँ ।।
चरणन पड़ा ‘रमेश‘, दया कर मातु प्रवीणा ।
दूर  करें अज्ञान, छेड़ कर अपनी वीणा।।

3. मंजिल
मंजिल छूना दूर कब, चल चलिए उस राह ।
काम कठिन कैसे भला, जब करने की चाह ।
जब करने की चाह, गहन कंटक पथ आवे ।
करे कौन परवाह, कर्मगति मनवा भावे।।
कह ‘रमेश‘ समझाय, बनो सब बिधि तुम काबिल ।
जीवन में कर कर्म,, कर्म पहुंचाए मंजिल ।।


4. हिन्दी
हिन्दी बेटी हिन्द की, ढूंढ रही सम्मान ।
शहर नगर हर गाँ में, धिक् धिक् हिन्दुस्तान ।
धिक् धिक् हिन्दुस्तान, दासता छोड़े कैसे ।
सामंती पहचान, बेड़ियाँ तोड़े कैसे।।
कह ‘रमेश‘ समझाय, बना माथे की बिन्दी ।
बन जा धरतीपुत्र, बड़ी ममतामय हिन्दी ।।


5.दादा पोता
दादा पोता हैं चले,  मन से मन को जोर ।
सांझ एक ढलता हुआ, दूजा नवीन भोर ।।
दूजा नवीन भोर, उमंगे नई जगावे ।
ढलता वह तो सांझ, धूप का स्वाद बतावे ।।
मध्य निशा घनघोर, डरावन होते ज्यादा ।
भेदे कैसे रात, राज खोले हैं दादा ।।


6.    महंगाई
बढ़े महंगाई यहां, धर सुरसा परिधान।
परख रहे हमको खरा , कौन बने हनुमान ।।
कौन  बने हनुमान, सेतु डालर जो लांघे ।
क्यों रूपया कमजोर, इसे तो कोई बांधे  ।।
सुझता नही ‘रमेश्‍ा‘, जिंदगी कैसे गढें।
दाल भात का भाव, यहां जब ऐसे बढ़े ।।

गणेश स्तुति

गणेश वंदना
दोहा -
जो गणपति पूजन करे,  ले श्रद्धा विश्वास ।
सकल आस पूरन करे, भक्तों के गणराज ।।

    चौपाई
हे गौरा  गौरी के लाला । हे लंबोदर दीन दयाला । ।
सबसे पहले तेरा सुमरन  । करते हैं हम वंदन पूजन ।।1।।

हे प्रभु प्रतिभा  विद्या दाता । भक्तों के तुम भाग्य विधाता
वेद पुराण सभी गुण गाये। तेरी महिमा अगम बताये ।।2।।

पिता गगन अरू माता धरती  । ज्ञान प्रकाश दिये प्रभु जगती
मातु-पिता तब मगन हुये अति । बना दिये तुम को गणाधिपति।3।

भक्त नाम जो तेरे  ले कर । चलते रहते मंजिल पथ पर
काज सभी  निर्विध्न सफल हो। पथ के बाधा सब असफल हो।4।

वक्रतुण्ड़ हे  देव गजानन । मूषक वाहन लगे सुहावन
जय जय लंबोदर जग पावन । रूप मनोहर तेरा मन भावन । 5।

मां की ममता तुझको भावे । तुझको मोदक भोग रिझावे 
बाल रूप बालक को भाये । मंगल मूर्ति सदा मन भाये ।6।

एकदन्त हे कृपा कीजिये । सद्विचार सद्बुद्धि दीजिये ।
हे गणनायक काम संवारे। जय जय गणपति भक्त पुकारे ।।7।।

हे मेरे आखर के देवता । स्वीकारे गणपति यह न्योता
मेरा वंदन प्रभु स्वीकारें । दुश्कर जग से मुझे उबारें ।।8।।

अपने पूर्वज अरू माटी का । अपने जंगल अरू घाटी का
गाथा गाऊँ सम्मान सहित । सदा रहूॅ मै अभिमान रहित।9।

सारद नारद यश को गाते । हे गणनायक तुझे  मनाते ।
रिद्धी सिद्धी के प्रभु दाता । सब दुख मेटो भाग्य विधाता ।10।

दोहा-
शरण गहे जो आपके, उनके मिटे क्लेष ।
 विध्न हरण प्रभु आप को, वंदन करे ‘रमेश‘ ।।

शिक्षक दिवस दोहावली

गुरू गुरूता गंभीर है, गुरू सा कौन महान ।
सद्गुरू के हर बात को, माने मंत्र समान ।

लगते अब गुरूपूर्णिमा, बिते दिनों की बात ।
मना रहे शिक्षक दिवस, फैशन किये जमात ।

शिक्षक से जब राष्ट्रपति, बन बैठे इस देश ।
तब से यह शिक्षक दिवस,  मना रहा है देश ।

कैसे यह शिक्षक दिवस, यह नेताओं का खेल ।
किस शिक्षक के नाम पर, शिक्षक दिवस सुमेल ।।

शिक्षक अब ना गुरू यहां, वह तो चाकर मात्र ।
उदर पूर्ति के फेर वह, पढ़ा रहा है छात्र ।

‘बाल देवो भव‘ है लिखा, विद्यालय के द्वार ।
शिक्षक नूतन नीति के, होने लगे शिकार ।

शिक्षक छात्र न डाटिये, छात्र डाटना पाप ।
सुविधाभोगी छात्र हैं, सुविधादाता आप ।।

जय हो जय हो भारत माता (छंदबद्व रचना)

दोहा ‘
भारत माता है भली, भली स्वर्ग से जान ।
नमन करते शिश झुका, देव मनुज भगवान् ।।

चैपाई -
लहर लहर झंडा लहराता । सूरज पहले शीश झुकाता ।
जय हो जय हो भारत माता । तेरा वैभव जग विख्याता ।।

उत्तर मुकुट हिमालय साजे । उच्च शिखर रक्षक बन छाजे ।।
गंगा यमुना निकली पावन । चार-धाम हैं पाप नशावन ।।

दक्षिण सागर चरण पखारे ।  गर्जन करते बन रखवारे
सेतुबंध शिवशंकर जापे     ।  सागर तट रामेश्वर थापे

कोणार्क सूर्य पूरब थाती     ।  जगन्नाथ की जग में ख्याती
सोमनाथ पश्चिम विख्याता ।  सागर तट द्वारिका सुहाता ।।

लाल किला दिल्ली का शोभा । ताज महल जग का मन लोभा
माँ-शिशु का है अपना नाता  । जय हो जय हो भारत माता

कर दो अर्पण

शहिदों का बलिदान पुकारता
क्यों रो रही है भारत माता ।

उठो वीर जवान बेटो,
भारत माता का क्लेश मेटो ।

क्यों सो रहे हो पैर पसारे
जब छलनी सीने है हमारे ।

तब कफन बांध आये हम समर,
आज तुम भी अब कस लो कमर ।

तब दुश्मन थे अंग्रेज अकेले
आज दुश्मनों के लगे है मेले ।

सीमा के अंदर भी सीमा के बाहर भी,
देष की अखण्ड़ता तोड़ना चाहते है सभी ।

कोई नक्सली बन नाक में दम कर रखा है,
कोई आतंकवादी बन आतंक मचा रखा है ।

चीन की दादागीरी पाक के नापाक इरादे,
कुंभकरणी निद्रा में है संसद के शहजादे ।

अब कहां वक्त है तुम्हारे सोने का,
नाजुक वक्त है इसे नही खोने का ।

ये जमी है तुम्हारी ये चमन हैं तुम्हारे,
तुमही हो माली तुमही हो रखवारे ।

श्वास प्रश्वास कर दो तुम समर्पण,
तन मन सब मां को कर दो अर्पण ।


..............‘‘रमेश‘‘............

वजूद

वजूद,
आपका वजूद
मेरे लिये है,
एक विश्वास ।
एक एहसास .....
खुशियों भरी ।

वजूद,
आपका वजूद
मेरे साथ रहता,
हर सुख में
हर दुख में
बन छाया घनेरी ।

वजूद,
आपका वजूद
मेरा प्यार ..


..............‘‘रमेश‘‘............


वर्षागीत



श्यामल घटा घनेरी छाई,
शीतल शीतल नीर है लाई ।
धरती प्यासी मन अलसाई,
तपते जग की अगन बुझाई ।।

खग-मृग पावन गुंजन करते,
नभगामी नभ में ही रमते ।
हरितमा धरती के आंचल भरते,
रंभाते कामधेनु चलते मचलते ।।

कृषक हल की फाल को भरते,
धान बीज को छटकते बुनते ।
खाद बिखेरते हसते हसते,
धानी चुनरिया रंगते रंगते ।।

सूखी नदी की गोद भरने लगी है,
कल कल ध्वनि बिखेरने लगी है ।
कुछ तटबंध टूट रहे है,
कहीं कहीं मातम फूट रहे हैं ।।

घोर घोर रानी कितना बरसे पानी,
ग्राम ग्राम बच्चे बोल रहे जुबानी ।
रंग बिरंगे तितली रानी तितली रानी,
उमड़ घुमड़ के बरसे पानी बरसे पानी ।।

-रमेश दिनांक 16 जून 2013

............‘रमेश‘...........

त्रिवेणी


1.आंखों से झर झर झरते है झरने,
मन चाहता है मर मर कर मरने

जब आता है उनका ख्याल मन में
2.    सावन की रिमझिम फुहारे व झुले
चल सखी मिल कर साथ झूले

बचपन के बिझुड़े आज फिर मिले
3.    तू चल रफ्ता रफ्ता मै दोड़ नही सकता
मन करता है ठहर जाने को टूट गया हू मै

महंगाई जो सुरसा बन गई है रे जीवन
4.    मन है उदास इस दुनिया को देखकर
स्वार्थी और मतलबी दोस्तो को देखकर

ये अलग बात है ये तोहमत मेरे ऊपर भी लगे है


...........‘‘रमेश‘‘................

कैसे पेश करू

अपने देश का हाल क्या पेश करूं
अपनो को ये नजराना कैसे पेश करूं

सोने की चिडि़या संस्कारो का बसेरा
टूटता बसेरा उड़ती चिडि़या ये चित्र कैसे पेश करू

जिसने किया रंग में भंग देख रह गया दंग
उन दगाबाजो की दबंगई कैसे पेश करू

इस धरा को जिसे दिया धरोहर सम्हालने को
उन रखवारो की चोरी की किस्से कैसे पेश करूं

वो खुद को कहते है दुख सुख का साथी हमारा
भुखो से छिनते निवाले का दृश्य कैसे पेश करूं

सौपी है जिन्हे किस्मत की डोर अपनी
उन पतंगबाजों की पतंगबाजी कैसे पेश करू

सड़क पर जिनका हुआ गुजर बसर
उनके आलीशान कोठी का तस्वीर कैसे पेश करूं

गरीबो की मसीहा बनते फिरते जहां तहां
उनके भीख मांगते कटोरे को कैसे पेश करूं

फाके मस्त रहे जो बरसो उन गलियो पर
उन गलियों का बना गुलदस्ता कैसे पेश करू


..........‘‘रमेश‘‘.........................

जरा समझना भला

ये शब्द कहते क्या है जरा समझना भला
शब्दों से पिरोई माला कैसे लगते हैं भला


दुख की सुख की तमाम लम्हे हैं पिरोये,
विरह की वेदना प्रेम की अंगड़ाई भला

कवि मन केवल सोचे है या समझे भी
उनकी पंक्तिया को पढ़ कर देखो तो भला

जिया जिसे खुद या और किसी ने यहां
अपने कलम से फिर जिंदा तो किया भला

आइने समाज का बना उतारा कागज पर
कितनी सुंदर चित्र उकेरे है देखो तो भला

अगर किसी रंग की कमी हो इन चित्रों पर
उन रंगों को सुझा उन्हे मदद करो तो भला


..........‘‘रमेश‘‘.........................

जिस तरह

मेरे मन मे वह बसी है किस तरह ,
फूलों में सुगंध समाई हो जिस तरह ।

अपने से अलग उसे करूं किस तरह,
समाई है समुद्र में नदी जिस तरह ।

उसके बिना अपना अस्तित्व है किस तरह,
नीर बीन मीन रहता है जिस तरह ।

उसकी मन ओ जाने मेरी है किस तरह,
देह का रोम रोम कहे राम जिस तरह ।

अलग करना भी चाहू किस तरह,
वह तो है प्राण तन में जिस तरह ।

..........रमेश‘......

क्यों रूकते हो



बढ़ने दो इन बढ़े हुये कदमों को, इसे क्यों रोकते हो ।
मंजिल है अभी दूर, कठिनाईयों से क्यों डरते हो ।।

ठान लिये हो जब अपना वजूद बनाना तो क्यो रूकते हो ।
चढ़नी है अभी चढ़ाई तो ऊंचाई देख क्यों डरते हो ।।

रात का अंधेरा सदा छाया रहता है ऐसा तुम क्यो सोचते हो ।
अंधेरे को चिरता दिनकर है आया फिर तुम क्यों रूकते हो ।।

चिंटी कितने बार गिरता फिर सम्हलता है तो तुम क्यों रूके हो।
पक्षी भी तिनके तिनके से घोसला बुने है तो तुम क्यों नही बुनते हो ।।

कौआ भी गागर में कंकड़ डाल पानी पी लिया तो तुम क्यों नही पिते हो ।
छोड़ दुनिया की आस अपने ही दम पर अपना जीवन क्यों नही जिते हो ।।

............‘‘रमेश‘‘.......................

देखी है हमने दुनिया

देखी है हमने दुनिया,
फूक से पहाड उडाने वाले,
कागज की किस्ती भी नही चला पाते है ।

देखी है हमने दुनिया,
आसमान से चांद सितारे तोड लाने वाले,
जीवन भर साथ निभा भी नही पाते ।

देखी है हमने दुनिया,
नैनो की भाषा समझने वाले,
चीख पुकार भी सुन नही पाते ।

देखी है हमने दुनिया,
इश्क को जिस्म की अरमा समझने वाले,
इस जहां में किसी से इश्क निभा  नही पाते ।।

मन का साथी

  
धड़कन में,
धड़कती है तू ही,
श्वास प्रश्वास बन ।


जीवन मेरा,
सांसो से ही हीन है,
जीना कैसे हो ।

मेरी पूजा तू,
प्रेम अराधन तू,
रब जैसे हो ।


मेरा जीवन,
नीर बिना मछली,
जीना जैसे हो ।

चंद्रमा बीन,
पूर्णमासी का रात,
भला कैसे हो ।

तुझ बिन मै,
लव बीन दीपक,
साथ जैसे हो ।

मन का साथी,
चिड़या सा चहको,
खुला आंगन ।
-रमेशकुमार सिंह चैहान

मधुर मधुर याद

मधुर मधुर याद है आती, मन को नये पंख लगाती ।
संस्मरण आकाश में उड़ती, मन कलरव गानसुनाती ।।

बालगीत गाकर मुझको मां के गोद में सुलाती ।
लोरी गा थपकी दे कर नींदिया को है बुलाती ।

मित्रों की आवाज दे बचपना याद दिला रहे  ।
कंचे, गिल्ली-डंडा,  सब कुछ याद आ रहे ।

स्कूल का बस्ता, गुरूजी का बेद कहां भुलाये ।
 गुरूजी का ज्ञान जीवन में आज काम आये  ।

स्कूल का सुंदर चित्र उमड़ घुमड़ रहा है ।
साथीयों का  मस्ती यादें उधेंड़ रहा है ।

खिला था जब जीवन में प्यार का मधु अंकुर ।
ओ हंसना, ओ मुस्कुराना और बातों में मस्गुल ।

किसी से आंखे चार हुआ था, हमें किसी से प्यार हुआ था ।
जिसको हमने और जिसने हमको अपने में जिया था ।

साथ में जीने मरने की बातें तो कहीं पर ओ हौसला कहां लिया था ।
घर परिवार और समाज के नाम अपना प्यार बलिदान किया था ।

नदी के दो किनारे बीच जीवन चंचल धारा सी बह रही है ।
ये मधुर यादें तो हैं जो संस्मरण के चिथडे को सी रही है ।

दिन रात के इस जीवन में एक नई रोषनी का आगमन हुआ ।
जीवन सहचरंणी का मेरे जीवन में प्रार्दापन हुआ  ।

ष्वेत जीवन तब तो रंगीन हुये, अब तो जीवन उसे के आधीन हुये ।
फुलवारी में सुंदर दो फूल खिले, जीवन की आस उसी से जा मिले ।

मन पक्षी उड़ते आकाष आ पहुॅचे पुनः मेरे पास ।
अब तो मै बैठा हूॅ दुनियादारी के चिंता में उदास ।।
................‘‘रमेश‘.................

जरूरी तो नही

देखते सुनते है जो हम अपने चारों ओर,                                   
विचारों में घुल मिल जाये जरूरी तो नही ।

विचारों में जो विचार घुल मिल जाये,
परिलक्षित हो कर्मो में जरूरी तो नही ।

हर परिलक्षित कर्म  कुलसित हो जाये,
कुलसित नजर आये जरूरी तो नही ।

जो अपने विचारों मे ही दृढ  हो जाये,
ऐसा हर व्यक्ति हो जरूरी तो नही ।


...‘‘रमेश‘‘...

है कौन सा जुनुन सवार तुझ पर


है कौन सा जुनुन सवार तुझ पर, जो कतले आम मचाते हो,
है कौन सा धरम तुम्हारा, जो इंनसानियत को ही नोच खाते हो ।

क्या मिला है  अभी तक आगें क्या मिल जायेगा,
क्यों करते हो कत्ले आम समझ में तुम्हे कब आयेगा ।

निर्बल, अबला, असहायों पर छुप कर वार क्यों करते हो,
अपने संकीर्ण विचारों के चलते, दूसरों का जीवन क्यों हरते हो ।

अपनों को निरीह मनुश्यों का मसीहा क्यों कहते हो,
जब उनके ही विकास पथ पर जब काटा तुम बोते हो ।

नहीं सुनना जब किसी की तो अपनी बात दूसरो पर क्यों मढ़ते हो,
लोकतंत्र की जड़े काट काट स्वयं तानाषाह क्यों बनते हो ।


कौन तुम्हे सीखाता ये पाठ जो कायरता तुम करते हो ,
कोई मजहब नहीं सीखता, खून से खेलना जो तुम खेला करते हो ।


............‘‘रमेश‘‘.........................

मेरी अर्धांगनी


प्यार करती है वह मुझको दुलार करती है,
 ख्याल करती वह हर पल मेरे लिये ही जीती है ।  

 डर से नजरें झुकाती नही सम्मान दिखाती है,
 साथ हर पल रह कर दुख सुख में साथ निभाती है ।
  
 लड़ाई नोक झोक से जीवन में उतार चढ़ाव लाती है,
 जिंदगी के हर रंग को रंगती जीवन को रंगीन बनाती है ।

वही मेरी प्रियसी मेरी जीवन संगनीय कहलाती है,
वही मेरी अर्धांगनी मेरे जीवन को परिपूर्ण बनाती है ।
..................‘‘रमेश‘‘.......................

पसीना बहाना चाहिये


दुनिया में दुनियादारी चलानी है, सभी रिस्तेदारी निभानी है,
दुनिया का आनंद जो लेनी है, तो पैसा कमाना चाहिये ।

सीर ऊचा करके जीना है, अपने में अपनो को जीना है,
अपने दुखों को सीना है, तो पैसा कमाना चाहिये ।

किसी से प्रेम करना है, किसी का दुख हरना है,
किसी को खुश करना है, तो पैसा कमाना चाहिये ।

तिर्थाटन  करना है, पर्यटन करना है,
दान करना है, तो पैसा कमाना चाहिये।

मन मे न रहे कोई बोझ, कैसे कमाना है तू सोच,
कमाई हो सफेद तो पसीना बहाना चाहिये ।  

..........रमेश........

वह


 वह,
सौम्य सुंदर,
एक परी सी ।
वह,
निश्चिल निर्मल,
बहती धारा सी ।
वह,
शितल मंद सुगंध,
बहती पुरवाही सी ।
वह,
पुष्प की महक,
चम्पा चमेली रातरानी सी ।
वह,
पक्षियों की चहक,
पपिहे कोयल मतवाली सी ।
वह,
श्वेत प्रकाश,
चांद पूर्णमासी सी ।
वह,
मेरी जीवन की आस,
रगो में बहती रवानगी सी ।
वह,
मेरा विश्वास,
जीवन में सांसो की कहानी सी ।
वह,
मेरा प्रेम,
श्याम की राधारानी सी ।
...‘‘रमेश‘‘.........

. हे भगवती मां अम्बे तुम्हे नमन



     हे भगवती मां अम्बे तुम्हे नमन ।
     मां कर दे हमारे पापा का शमन ।।


तू ही है अखिल विश्व माता ।
सारा विष्व तेरे ही गुन गाता ।।
अपने भक्तो का पुत्रवत करते हो जतन ।
हे भगवती मां अम्बे तुम्हे नमन ।।

तू ही सर्वशक्ति का आधार है ।
कोई न पाये तेरा पार है ।।
तेरी ही कृपा से ही है ये सारा चमन ।
तू करती सदा असुरी शक्ति का दमन ।
     हे भगवती मां अम्बे तुम्हे नमन ।।

शिव की तुम शिवा हो ।
बिष्णु की तुम रमा हो ।।
ब्रहमा की ब्रहमाणी एकतन ।
हे भगवती मां अम्बे तुम्हे नमन ।।

पहाड़ो में ही तेरा वास है ।
ऐसे भक्तों का विश्वास है ।।
जहां भक्त पहुंचते नाना जतन ।
हे भगवती मां अम्बे तुम्हे नमन ।।

तू तो शेरोवाली हो ।
तू तो मेहरेवाली हो ।।
तुझे रिझाने भक्त करते है कई करम ।
हे भगवती मां अम्बे तुम्हे नमन ।।

न मैं पूजा कर सकता न उपवास ।
मुझे केवल तेरे नाम की है आस ।।
तु तो जानती है हर भक्तो का मरम ।
हे भगवती मां अम्बे तुम्हे नमन ।।
.........‘‘रमेश‘‘...............

जनक भगवान समान


   
    जिसकी ऊंगली पकड़कर चलना सीखा,
    मेरे लिये जिसने  चला घोड़ा सरीखा ।

    मेरे चलने से जिसके मुँह से वाह निकला,
    मेरे गिरने पर जिसके मुँह से आह निकला ।

    मेरी हर छोटी बड़ी जरूरतों का जिसने रखा ध्यान,
    जिसने अपने मुॅंह का निवाला मुझ पर किया कुर्बान ।

     जीवन जीने का जिसने सलीखा सिखाया,
    जिसने पसीने का हर कतरा मेरे लिये बहाया ।

    जिसका खून जीवन बन मेरे नशों में दौडता है,
    मेरा अंग प्रतिअंग बस......... यही कहता  है।

    जिसने  अपना जीवन मुझे अर्पित किया
    जिसने मुझे स्‍नेह, प्रेम, वात्‍सल्‍य दिया ।
   
    जो मेरे लिये सारी दुनिया से है महान
    वह है मेरे जनक......भगवान समान ।।


.................रमेश.....................

हे भगवान मुझे टी.वी. बना दे


  
       
मंदिर में मत्था टेकने बहुत लोग जाते हैं,
और अपने मन की मुराद अपने मन में दुहराते हैं ।

एक बार एक बच्चा अपने मां बाप के साथ मंदिर आया,
सबको भगवान के सामने घुटने टेक बुदबुदाते हुये पाया ।
बच्चा ये देख कुछ समझ नही पाया उसने मां से फरमाया,
मन में जो हो इच्छा यहां कह दो भगवान सब देते है मां ने बताया ।

बच्चे के कोमल चित में एक कल्पना जागा,
उसने भगवान से खुद को टीवी बनाने का वरदान मांगा ।

पास खडे़ पंडि़तजीने बच्चे बात सुनकर उनसे पूछा,
बोल बेटा तुम्हे टीवी बनने को क्यो सुझा ।

बच्चे ने कहा जब मैं टीवी बनजाऊंगा,
अपने पूरे परिवार का प्यार मैं पाऊंगा ।

बिना बाधा के सब मुझको प्यार से निहारेंगें,
मम्मी पापा एक साथ दोनों मुझे देखने पधारेंगे ।

मम्मी की चहेती सिरीयल बन मैं इतराऊंगा,
समाचार क्रिकेट बन मैं पापा के आंखों का तार हो जाऊंगा ।

जब कभी मैं अस्वस्थ हो चला तो,
मम्मी पापा काम पर नहीं जायगें, दौड़कर मुझे ठीक करायेंगे ।

मेरी दीदी जो मुझसे रोज लडती रहती,
अब मेरे पास बैठ मुस्कुराएगी, अब नही सतायेगी ।
बच्चे की व्यथा कथा सुनकर पंडि़तजी बोला शालीन,
बेटा तू तो सुंदर मनुष्य है फिर क्यों बनना चाहते हो मशीन ।

अभी भी तो मैं मशीन हूॅ जो रिमोट से चलाया जाता हूॅ,
घर से स्कूल और स्कूल से घर बस से पहुंचाया जाता हूॅ ।

स्कूल में पढाई, घर में होमवर्क फिर टयूशन चला जामा हूॅ,
दिन भरे बस्ते का बोझ ढ़ो शाम को पापा का ड़ांट खाता हूॅ ।

न खेलने की आजादी न घुमने की शौक पूरा कर पाता हूॅ,
पढ़ाई पढ़ाई बस पढ़ाई के बोझ से ही मै मरे जाता हूॅ ।

मम्मी की आफिस और पापा का काम इनका भी साथ कहां पाता हूॅ,
मनुष्य होकर भी मशीन होने से अच्छा टीवी बनना चाहता हूॅ ।

सुन कर बच्चे की बातें पंडि़त जी ने राधे राधे कहके मन को शांत किया,
पास खड़ी मां रोते रोते बच्चे गोद में ले भगवान को प्रणाम किया ।
.................रमेश.....................

जुगाड़

                           जुगाड़
   
    जुगाड़ से जुगाड़ है, जुगाड़ में कहां बिगाड है,
     जुगाड़ में जुगाड़ है, जुगाड़ से ही देश बिमार है ।
   जुगाड़ के जुगाड़ में, जुगाड़ी ही सबसे बड़ा खिलाडी है,
  जुगाड़ के इस खेल में, हारती भोली-भाली जनता हमारी है ।

    ...................‘‘रमेश‘‘.........................

रे मन

ठहर न तू इस ठांव रे मन ।
जाना तुझे और ठांव रे मन ।।

जिस ठांव पर रह जायेगा केवल ठाट रे मन ।
वहां कहां किसी का रहता ठाठ रे मन ।।

तू तो पथ का मात्र पथिक रे मन ।
यह तो है केवल तेरा बाट रे मन ।।

क्या ले जायेगा तू अपने साथ रे मन ।
कर्मो के इस बाजार से तू छांट ले रे मन ।।

किसी के घर ले जाते कुछ न कुछ सौगात रे मन ।
तू भी ले जाके कुछ न कुछ उपहार बाट रे मन ।।

सुख की उजयारी में छुपा दुख का अंधियारी रे मन ।
पाना है प्रतिसाद तो दुख का पल काट ले रे मन ।।

क्यो पड़ते हो पाप पुण्य के झमेले मे रे मन ।
मानव से मानवता का संबंध बांध ले रे मन ।।

प्राणी प्राणी में बसता प्राण है रे मन ।
हर प्राणी को प्रेम से तू छांद ले रे मन ।।
...............‘‘रमेश‘‘.....................

क्या अब भी प्रभु धर्म बचते दिखता है



हे गोवर्धन गिरधरी बांके बिहारी,
हे नारायण नर हेतु नर तन धारी ।
दया करो दया करो हे दया निधान,
आज फिर जगा सत्ता का इंद्राभिमान ।।

स्वार्थ परक राजनिति की आंधी,
आतंकवाद, नक्सवाद की व्याधी ।
अंधड़ सम भष्ट्राचार उगाही चंदा
भाई भतीजेबाद का गोरख धंधा ।।

आकंठ डूबे हुये है जनता और नेता
जो ना हुआ द्वापर सतयुग और त्रेता ।
नारी संग रोज हो रहे बलत्कार,
मासूमो पर असहनीय अत्याचार ।।

जब अधर्म अनाचार हंसता है,
तो दीन हीन ही फंसता है ।
न जीता है  न मरता है,
तडप तडप कर यही कहता है ।

क्या अब भी पुभु धर्म बचते दिखता है ।
क्या अब भी प्रभु धर्म बचते दिखता है ।।

निरंकुश हो चला है समाज

   
दिल्ली में  जो हुआ,
जोरदार तमाचा है देश और धरम को ।
जितना लताड लगाई जाये,
कम है दरिंदों की इस करम को ।।

जिम्मेदार है केवल शासन प्रशासन,
मिटा दे इस भरम को ।
नैतिकता की नही किसी को भान,
अनैतिकता पहुंच गई है चरम को ।।

निरंकुश हो चला है समाज,
मौन पनाह दे रहे है इस शरम को ।
नही करता कोई आज,
प्रयास कोई ऐसा मिटाने इस जलन को ।।

नग्नतावाद की संस्कृति जो आयातीत हुआ,
तुला है जड़ से मिटाने हमारे चाल चलन को ।
पाश्चात्यवाद की आंधी,
व्याधि बन खोखला कर रहा है हमारे मरम को ।।

कानून चाहे सख्त से सख्त हो,
मिटा न पायेगा समाज के इस कलंक को ।
मिटाना हो गर ये अभिषाप,
तो जगाना होगा संस्कार, हया, शरम को ।।।
................‘‘रमेश‘‘........................

यह तो भारत माता है



जगमग करती धरती हमारी,
यह अखिल विश्व से न्यारा है।
उत्तर में हिमालय का किरीट,
दक्षिण में रत्नाकर ने चरण पखारा है।

जहां के नदी नाला शिला पत्थर,
सब में देवी देवता हमारा है ।
यहां जंगल झांड़ी पशु पक्षी,
सबने हमारा जीवन सवारा है ।

क्रिस्मस होली ईद दिवाली
सभी त्यौहार हमारा है ।
यहां के रिति रिवाज पर्व सभी,
हमारे जीवन का सहारा है ।

जहां ईश्वर अल्ला गाड सभी ने,
हमारे जीवन को संवारा है ।
यहां हिन्दु मुसलिम सिक्ख ईसाई,
इन सब में भाईचारा है ।

भांति भांति के प्रांत यहां भांति भांति के लोग,
भांति भांति के सुमन से बगिया को संवारा है ।
यह केवल जमीन का टुकड़ा कहां है,
यह तो भारत माता है ऐसा स्वर्ग कहां है ।
................‘‘रमेश‘‘........................

// अब तो आ जाओ साजन मेरे पास //


कब से गये हो तुम सागर पार ,
मुझे छोड़ गये हो मझदार ,
तुझ बिन नही मेरे जीवन की आस,
अब  तो आ जाओ मेरे साजन पास ।
   
    तन की हल्दी चिड़ाती मुझे,
    हाथों की मेंहंदी रूलाती मुझे,
    न साज न श्रृंगार नही अब कुछ खास,
    अब  तो आ जाओ साजन मेरे पास।

तुझ बिन मेरे सांसे है मध्यम,
अब न मुस्कुराता है मेरा मन,
मेरे मन का तु ही है विश्वास,
अब  तो आ जाओ साजन मेरे पास।
   
    तस्वीर देख दिन कटता है मेरा,
    सांझ समान ही है अब तो सबेरा,
    तुझ बीन अंधेरा ही है आसपास,
    अब  तो आ जाओ साजन मेरे पास ।

कह गयें थे जल्दी आने को,
सभी गम को भुलाने को,
सो हो भी नहीं सकता उदास,
अब  तो आ जाओ साजन मेरे पास ।
..............‘‘रमेश‘‘..............................

क्या कहू तुझको



 क्या कहू वासुदेव का लाला तुझको, या कहू देवकी का लाला तुझको,
ब्रज का दुलारा तु तो नंद का छोरा याशेदा का लाला है ।

क्या कहू गोपाला तुझको,या कहू ग्वाला तुझको,
मोर पंख वाला तु तो गऊवें चराने वाला है ।

क्या कहूं माखनचोर तुझको, या कहूं चितचोर तुझको,
मुख बासुरी वाला तु तो ऊंगली गोवर्धन उठाने वाला है ।

क्या कहूं मनसुखा का साथी तुझको, या कहू तनसुख का साथी तुझको,
राधा का श्याम तु तो सभी गोप-ग्वालिनों को नचाने वाला है ।

क्या कहूं पुतना मरईया तुझको, या कहूं नाग नथईया तुझको,
अका-बकासुर हंता तु तो कंस को मारने वाला है ।

क्या कहूं राधा का श्याम तुझको, या कहूं मीरा का श्याम तुझको,
कण कण में रमणे वाला तु तो हर भक्तो के दुख को हरने वाला है ।
 ..................‘‘रमेश‘‘............................

हे दयामयी मां शारदे

हे दयामयी मां शारदे, मेरा जीवन संवार दें ।
तू तो ज्ञान की देवी मां, मुझे केवल ज्ञान का उपहार दें ।।

 वर्ण-वर्ण, छन्द-छन्द, सुर-संगीत सभी हैं तेरे कण्ठ ।
 कर सोहे वीणा तेरे मां, मेरे जीवन भी में वीणा झंकार दें।।

 सप्त सुर सप्त वर्ण से, श्वेत वर्ण तुझे सुहाती मां।
हे श्वेतमयी मां शारदे, मेरा जीवन संवार दें ।

 श्वेत वस्त्र से शोभित, श्वेत हंस में विराजीती मां ।
हस्तगत है तेरे वेद पुराण मां, मेरे जवीन में वेदमति भर दें ।।

मैं कलम का साधक मां, मेरी साधना अब पूरी कर दें ।
मेरे हर पद हर छन्द में मां, जीवन के नवरस भर दें ।।

मेरे चिंतन मनन विचार शून्यता में, नव विचार का संचार करे दें ।
 शरण आया हूं तेरी मां, मुझ दीन हीन की झोली अब भर दें ।।

नहीं मांगता मां मैं मुक्ता माणीक, मेरे हाथों में अब सुर दें ।
मानव मानव के इस जीवन में, मानवता का रंग अब भर दें ।।
 ..................‘‘रमेश‘‘...............................

वाणी

जिहवा रसना ही नही वाणी भी होय ।
छप्पपन भोग नाना रस चटकारे हरकोय ।।
वाणी के पांच श्रृंगार होत है समझे सब कोय ।
सत्य,मृदु, सार , हितैषी और मितव्ययी होय ।।
सदा सत्य बोले जो कर्णप्रिय होय ।
बोल हो कम सही पर  सारगर्भित होय ।।
हित अहित विचारिये फिर अपना मुख खोल ।
वाणी से ही मित्र शत्रु और शत्रु मित्र होय ।।

................‘‘रमेश‘‘..........................

इससे तो मै बांझ भली थी

कितनी मिन्नते और अरमा से मैंने उसको पाया था ,
कितने लाड एवं प्यार से उसे मैंने गोद में खिलाया था ।

पर मुझे ये क्या पता रे जाल्मि तू तों मां के कोख पर कंलक लगायेगा ,
होके जवा तू हवसी  बन मासूम के इज्जत से ही खेल जायेगा ।

तूने मासूम की इज्जत का नही मां की ममता को तार तार किया है ,
मुझे बेटे की जो थी चाहत उस चाहत का हलाल किया है ।

अगर मुझे पता होता मेरा बेटा नही जल्लाद होगा
जिनके कर्मो से सारा  देश रोयेगा।

तो मै तेरा कोख में हत्या कर देती,
ऐसे औलाद  से मैं बांझ भली कह देती ।

................‘‘रमेश‘‘................................

बढ़ने दो इन बढ़े हुये कदमों को

बढ़ने दो इन बढ़े हुये कदमों को, इसे क्यों रोकते हो ।
मंजिल है अभी दूर, कठिनाईयों से क्यों डरते हो ।।

ठान लिये हो जब अपना वजूद बनाना तो क्यो रूकते हो ।
चढ़नी है अभी चढ़ाई तो ऊंचाई देख क्यों डरते हो ।।

रात का अंधेरा सदा छाया रहता है ऐसा तुम क्यो सोचते हो ।
अंधेरे को चिरता दिनकर है आया फिर तुम क्यों रूकते हो ।।

चिंटी कितने बार गिरता फिर सम्हलता है तो तुम क्यों रूके हो।
पक्षी भी तिनके तिनके से घोसला बुने है तो तुम क्यों नही बुनते हो ।।

कौआ भी गागर में कंकड़ डाल पानी पी लिया तो तुम क्यों नही पिते हो ।
छोड़ दुनिया की आस अपने ही दम पर अपना जीवन क्यों नही जिते हो ।।

...............................‘‘रमेश‘‘..........................

हे मानव

हे मानव तुम मानवता को क्यों रहे हो भूल ।
मनव होकर दानव होने पर दे रहे हो तूल ।

धर्मरत कर्म पथ पर आगे बढ़ने का जो था मान ।
शांति और पथ प्रदर्षक का जो था सम्मान ।।
आज हमारे मान सम्मान फांसी में रहे हैं झूल ।
हे मानव तुम मानवता को क्यों रहे हो भूल ।।

जियो और जिने दो का नारा करके बुलंद ।
अपनी ही मस्ती में मस्त क्यो हो मतिमंद ।।
अपनी खुशी के लिये दूसरों को क्यों देते हो शूल ।
हे मानव तुम मानवता को क्यों रहे हो भूल ।

हर बाला देवी की प्रतिमा जहां बच्च बच्चा राम है ।
हर प्रेमिका राधा राधा हर प्रेमी जहां श्याम है ।।
वात्सलाय के इस धाम में वासना कैसे गया घुल ।
हे मानव तुम मानवता को क्यों रहे हो भूल ।

हिन्दु मुसलिम सिक्ख ईसाई से पहले मानव हो कहलाये ।
फिर क्यों मानव होकर मानव को मजहब के नाम पर बांट खायें ।।
मानव का परिचय मानव न होकर होगया जाति धरम और कुल ।
हे मानव तुम मानवता को क्यों रहे हो भूल ।
.................‘‘रमेश‘‘......................

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