अनसुनी बातें
सुनता रहा मैं
अनकही बातें
कहता रहा मैं
अनदेखी
दृश्य को देखकर ।
विचारों की तंतु
मन विबर की लार्वा से
तनता जा रहा था
उलझता-सुलझता हुआ
मन को हृदय की
गहराई में देखकर ।।
चिंता और चिंतन
गाहे-बगाहे साथ हो चले
नैतिकता का दर्पण में
अंकित छवि को देखकर ।।