‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

गीतिका छंद लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
गीतिका छंद लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

देश मेरा, मैं देश का

देश मेरा भक्ति मेरी, भक्ति का मैं धर्म हूँ । राष्ट्र मेरा कर्म मेरा, कर्म का मैं मर्म हूँ ।। भूमि मेरी मातु मेरी, मातु का मैं लाल हूँ । लोग मेरे देश मेरा, देश का मैं ढाल हूँ ।। है नही ये देश मुझ से, मैं यहां हूँ देश से । देह मेरी सोच मेरा,, प्राणपन है देश से ।। राष्ट्र सेवा मंत्र मेरा, मंत्र का मैं वर्ण हूँ । देश मेरा वृक्ष बरगद, वृक्ष का मैं...

सावन (गीतिका छंद)

हर हर महादेव ..................... माह सावन है लुभावन, वास भोलेनाथ का । आरती पूजा करे हम, व्रत भी भोलेनाथ का ।। लोग पार्थिव देव पूजे, नित्य नव नव रूप से । कामना सब पूर्ण करते, ले उबारे कूप से ।। -रमेशकुमार सिंह चौह...

मेरे नगर नवागढ़ में बाढ़ का एक दृश्य

गीतिका छंद  ............................................. मेघ बरसे आज ऐसे , मुक्त उन्मुक्त सा लगे । देख कर चहु ओर जल को, देखने सब जा जुटे ।। नीर बहते तोड़ तट को, अब लगे पथ भी नदी । गांव घर तक आ गया जल, है मची कुछ खलबली ।। हाट औ बाजार में भी, धार पानी की चली । पार...

सर्कस

खेल सर्कस का दिखाये, ले हथेली प्राण को । डोर पथ पर चल सके हैं, संतुलित कर ध्यान जो ।। एक पहिये का तमाशा, जो दिखाता आज है । साधना साधे सफलतम, पूर्ण करता काज है ।। काम जोखिम से भरा यह, पेट खातिर वह करे । अंर्तमन दुख को छुपा कर,हर्ष सबके मन भरे ।। लोग सब ताली बजाते, देख उनके दांव को । आवरण देखे सभी तो, देख पाये ना घाव को ।। ये जगत भी एक सर्कस, लोग...

पीपल का पेड़ (गीतिका छंद)

पेड़ पीपल का खड़ा है, एक मेरे गांव में । शांति पाते लोग सारे , बैठ जिसके छांव में ।। शाख उन्नत माथ जिसका, पर्ण चंचल शान है । हर्ष दुख में साथ रहते, गांव का अभिमान है ।। पर्ण जिसके गीत गाते, नाचती है डालियां । कोपले धानीय जिसके, है बजाती तालियां ।। मंद शीतल वायु देते, दे रहे औषध कई । पूज्य दादा सम हमारे, सीख देते जो नई। नीर डाले मूल उनके, भक्त आस्थावान...

गीतिका छंद

प्रेम का मै हू पुजारी, प्रेम मेरा आन है । प्रेम का भूखा खुदा भी, प्रेम ही भगवान है ।। वासना से तो परे यह, शुद्ध पावन गंग है । जीव में जीवन भरे यह, प्रेम ही तो प्राण है ।। पुत्र करते प्रेम मां से, औ पिता पु़त्री सदा । नींव नातो का यही फिर, प्रेम क्यो अनुदान है ।। बालपन से है मिले जो, प्रेम तो लाचार है । है युवा की क्रांति देखो, प्रेम आलीशान है ।। गोद...

सरस्वती वंदना (गीतिका)

हे भवानी आदि माता, व्याप्त जग में तू सदा । श्‍वेत वर्णो से सुशोभित, शांत चित सब से जुदा ।। हस्त वीणा शुभ्र माला, ज्ञान पुस्तक धारणी । ब्रह्म वेत्ता बुद्धि युक्ता, शारदे पद्मासनी ।। हे दया की सिंधु माता, हे अभय वर दायनी । विश्‍व ढूंढे ज्ञान की लौ, देख काली यामनी ।। ज्ञान दीपक मां जलाकर, अंधियारा अब हरें । हम अज्ञानी है पड़े दर, मां दया हम पर करें...

दीपावली की शुभकामना (गीतिका छंद)

दीप ऐसे हम जलायें, जो सभी तम को हरे । पाप सारे दूर करके, पुण्य केवल मन भरे ।। वक्ष उर निर्मल करे जो, सद्विचारी ही गढ़े । लीन कर मन ध्येय पथ पर, नित्य नव यश शिश मढ़े । कीजिये कुछ काज ऐसा, देश का अभिमान हो  । अश्रु ना छलके किसी का, आज नव अभियान हो । सीख दीपक से सिखें हम, दर्द दुख को मेटना । मन पुनित आनंद भर कर, निज बुराई फ्रेकना ।। शुभ  विचारी...

Blog Archive

Popular Posts

Categories