‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

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प्रियसी प्रियतम हे प्राण प्रिये

प्रियसी प्रियतम हे प्राण प्रिये, तुमसे जीवन मेरा ।
वाह्य देह को क्या देखूँ मैं, निर्मल मन है तेरा ।।

गंगा जल भी दूषित अब है, पर तू अब भी पावन ।
मेरे कष्टों को धो देती , ज्यों तू पाप नशावन ।।

डगर दुखों की रोक रखी तू, जो छूना चाहे मुझको ।
सुख की तू तो जागृत प्रतिमा, सुख ही मानूँ तुझको ।।

सुख का साथी लोग सभी हैं, तू तो दुख की साथी ।
दुख से भय ना मुझको होवे,  चाहे हो ज्यों हाथी ।।

मेरी प्रियतम मेरी पत्नी, वामअँगी कहलाती ।
दोनों तन पर प्राण एक है, सहजन  मन को भाती ।।

-रमेश चौहान

जीवन एक संघर्ष है -"लड़ना मुझको यार' (सार छंद)

स्मरण सदन का खोल झरोखा, देखा ॴॅख प्रसार ।
क्या कुछ मैंने  खोया पाया, करता रहा विचार ।।
बरखा सर्दी बसंत पतझड़, मौसम का सौगात ।
दिन का चढ़ना और उतरना, सुबह शाम अरु रात ।।
कई बार बदली घिर आया, छुपे न मन का ओज ।
घूप अंधियारी में भी वह, किया खुशी का खोज ।।
क्या खोना है क्या पाना है,  सुख दुख का ये मेल ।
कभी भाग्य पर दांव कर्म का, रहा खेलता खेल ।।
रात ढले पर सूरज आता, दिवस ढले पर रात ।
काम समय का चलते रहना, याद रखे यह बात ।।
संघर्षों का समर भूमि है, कर्मों का हथियार ।
ढाल कर्म का ही कर लेकर, लड़ना मुझको यार ।।

प्रियतम प्रीत तुम्हारी

उपासना है आराधना भी, प्रियतम प्रीत तुम्हारी ।
सुमन  सुगंधी सम अनुबंधित, प्रियतम प्रीत तुम्हारी ।।
ध्रुव तारा सम अटल गगन पर, प्रियतम प्रीत तुम्हारी ।।
प्राण देह में ज्यों पल्लवित, प्रियतम प्रीत तुम्हारी ।।

आजादी रण शेष अभी है

आजादी रण शेष अभी है, देखो नयन उघारे ।
वैचारिक परतंत्र अभी हैं, इस पर कौन विचारे ।।

अंग्रेजी का हंटर अब तक, बारबार फुँफकारे ।
अपनी भाषा दबी हुई है, इसको कौन उबारे ।।

काँट-छाँट कर इस धरती को, दिये हमें आजादी ।
छद्म धर्मनिरपेक्ष हाथ रख, किये मात्र बर्बादी ।।

एक देश में एक रहें हम, एक धर्म अरु भाषा ।
राष्ट्रवाद का धर्म गढ़े अब, राष्ट्रवाद की भाषा ।।

धर्म व्यक्ति का अपना होवे, जात-पात भी अपना ।
देश मात्र का एक धर्म हो, ऐसा हो अब सपना ।।

-रमेश चौहान

वैभवशाली भारत होवे

हे मातृभूमि ममता रूपा, प्रतिपल वंदन तुझको ।
सुखमय लालन-पालन करतीं, गोद बिठाकर मुझको ।

मंगलदात्री पुण्यभूमि माँ, तन-मन अर्पण तुझको ।
तेरे ही हित काज करूँ मैं, इतना बल दे मुझको ।।

हे सर्वशक्तिशाली भगवन, कोटि नमन है तुझको ।
मातृभूमि की सेवा करने, बुद्धि शक्ति दे मुझको ।।

शक्ति दीजिये इतनी भगवन, दुनिया लोहा माने ।
ज्ञान-बुद्धि जन मन में भर दें, दुनिया जिसको जाने ।।

जाति-धर्म से उपजे बाधा, देश प्रेम से टूटे ।
समरसता में गांठे जितने, देश प्रेम से छूटे ।।

भांति-भांति के अंग हमारे, जैसे देह बनावे ।
भांति-भांति के लोग यहां के, काया सा बन जावे ।।

वैभवशाली भारत होवे, अखिल विश्व से बढ़कर ।
देश भक्ति की प्रबल भावना, अब बोले सिर चढ़कर ।।

हे देश के राजनेताओं, थोड़ा तो शरम करो

हे देश के राजनेताओं, थोड़ा तो शरम करो ।
मुझको भारत माता कहते, मुझपर तो रहम करो ।।

लड़ो परस्पर जी भरकर तुम, पर लोकतंत्र के हद में ।
उड़ो गगन पर उडान ऊँची, पर धरती की जद में ।।

होते मतभेद विचारों में, इंसानों को क्यों मारें ।
इंसा इंसा के साथ रहे,, शैतानों को क्यों तारें ।।

सत्ता का तो विरोध करना, लोकतंत्र का हक है ।
मातृभूमि को गाली देना, कुछ ना तो कुछ शक है ।।

पहले ही बांट चुके हो तुम, मुझे उनके नाम पर ।
फिर टुकड़े करने तत्पर हो, मुझे उनके दाम पर ।।

राजनीति का एक लक्ष्य है, केवल सत्ता पाना ।
किंतु काम कुछ ना आयेगा, तेरा ताना-बाना ।

नहीं रहूँगी साथ तुम्हारे, ऐसे हालातो पर ।
जीवित कैसे रह पाऊँगी, तेरे इन घातों पर ।।
-रमेश चौहान

नारीत्व छूटे ना

काम नहीं है ऐसा कोई, जिसे न कर पाये नारी ।
पुरषों से दो पग आगे अब, कल की ओ बेचारी ।

निश्चित ही यह बात गर्व की, भगनी तनया आगे ।
हुई आत्मनिर्भर अब भार्या, मातु पिता सम लागे ।

नारी नर में होड़ लगे जब, नारी बाजी मारे ।
अवनी से अम्बर तक अब तो, नार कहीं ना हारे ।

नारी के आपाधापी में, नारीत्व छूटे ना ।
मातृत्व स्वर्ग से होत बड़ा, तथ्य कभी टूटे ना ।।

उदित हुई संस्कार नई है

उदित हुई संस्कार नई है, आई नूतन बेला ।
मंदिरों पर है वीरानी, मदिरालय पर मेला ।।

सुख दुख का सच्चा साथी, अब मदिरा को माने ।
ईश्वर को पत्थर की मूरत,  नए लोग हैं जाने ।।

दुग्धपान ना रुचते अब तो, बहुधा मांसाहारी ।
युवा वृद्ध वा अबोध बच्चे, दिखते हैं व्यभिचारी ।।

स्वार्थ की डोर गगनचुंबी है, धरती को जो बांटे ।
अपनों में भी लोग यहां अब, मेरा कहकर छांटे ।।

लोक मर्यादा बंधन लगते, अब नवीन पीढ़ी को ।
सीधे-सीधे मंजिल चढ़ते, तज घर की सीढ़ी को ।।

घर परिवार टूटता अब तो, अधिकार जताने से ।
नारी नर में द्वेष बढ़ा है, जागृति दिखलाने से ।।

कल की बातें हुई पुरानी, नई सोच आने से ।
संस्कार विहिन लोगों के अब, शिक्षित कहलाने से ।

शिक्षा नहि संस्कार चाहिए, समता दिखलाने को ।
भौतिकता को तज दो बंदे, आत्म शांति पाने को ।।

चल चल रे कावड़िया चल चल

कावड़िया चल देवघर, बोल बम्म शिव बम्म ।
बैजनाथ के श्री चरण, भक्त लगा के दम्म ।।

चल चल रे कावड़िया चल चल, बैजनाथ के द्वारे ।

शिव का आया आज बुलावा, जागे भाग हमारे ।।

कांधे कावर गंगा जल धर, मन में श्रद्धा निर्मल ।
नंगे पांव चले चल प्यारे, जैसे नदियां कल-कल ।।

हर हर महादेव हर हर, हर हर शिव ओंकारा ।
बोल बम्म बोल बम्म हर हर, गूंज रहा है नारा ।।

पुनित मास सावन बाबा के, लगा हुआ है मेला ।
बोल बम्म जयकारों से मन, नाच रहा अलबेला ।।

अवघर दानी शम्भू सदाशिव, सफल मनोरथ करते ।
हाथ पसारे जो नर मांगे, बाबा झोली भरते ।




एक-एक की छाती फाड़ों, बचे न अत्याचारी

रोना-धोना छोड़ करें अब, बदले की तैयारी ।
एक-एक की छाती फाड़ों, बचे न अत्याचारी ।

अमरनाथ के भक्तों को जो, घात लगा कर मारे ।
आजादी या जेहादी के, जो लगा रहे नारे ।।

कश्मीर हमारे पुरखों का, नही बाप के उनके ।
धर्म नही है कोई कमतर, हमको समझे तिनके ।।

छुप-छुप कर जो आतंकी बन, करते हैं बमबारी ।
एक-एक की छाती फाड़ों, बचे न अत्याचारी ।।

सरहद के रखवालों को, जो छुप-छुप कर मारे ।
जिनके हाथों पर हैं पत्थर, आतंकी हैं सारे ।।

राष्ट्र धर्म ही धर्म बड़ा है, जो बात न यह माने ।
ऐसे दुष्टों को तो केवल, शत्रु राष्ट्र का जाने ।।

ऐसे बैरीयों से लड़ने, तोड़ो हर लाचारी ।
एक-एक की छाती फाड़ों, बचे न अत्याचारी ।

जो बैरी हो बाहर का या, विभिषण होवे घर का ।
जो भगवा चोला धारे या, ओढ़ रखें हो बुरका ।।

छद्म धर्म निरपेक्षी बनकर, जो करते नौटंकी ।
खोज निकालो ऐसे बैरी, जो पाले आतंकी ।।

बहुत सहे आतंकी सदमा, अब है उनकी बारी
एक-एक की छाती फाड़ों, बचे न अत्याचारी ।


मरे तीन तलाक से

मरे तीन तलाक से कोई, कोई तलाक पाने ।
कोई रखते पत्नी ज्यादा, कोई एक न जाने ।।

कुचली जाती पत्नी कोई, इस तलाक के दम पर ।
गोद पड़े बच्चे बेचारे, जीवित मरते गम पर ।।

कोई पत्नी बैठी मयके, खर्चे पति से लेती ।
पति ले जाने तैयार खड़ा, पर वह भाव न देती ।।

पति से पीड़ित पत्नी कोई, कोई पत्नी पीड़ित ।
सही नही है नियम एक भी, दोनों है सम्पीड़ित ।।

समरसता का नैतिक शिक्षा, मन में भरना होगा ।
मिटे मूल से यह बीमारी, इलाज करना होगा ।।


जागो हिन्दू अब तो जागो

कौन सुने हिन्दू की बातें, गैर हुये कुछ अपने ।
कुछ गहरी निद्रा में सोये, देख रहें हैं सपने ।।

गढ़ सेक्यूलर की दीवारे, अपने हुये पराये ।
हिन्दूओं की बातें छोड़ो, हिन्दू जिसे न भाये ।।

धर्म निरपेक्ष का चोला धर, बनते उदारवादी ।
राजनीति में माहिर वो तो, केवल अवसरवादी ।।

उनको माने सोने चांदी, हमको सिक्के खोटे ।
उनके जुकाम भारी लगते, घाव हमारे छोटे ।।

अंधे बहरे हो जाते क्यों, वो मानवतावादी ।
अत्याचार दिखे ना उनको, जब हिन्दू फरयादी ।

ऐसे लोगो की कमी नही, जो अपने में खोये ।
दूजे की जो चिंता छोड़े, पैर पसारे सोये ।।

नहीं हमारा बैरी दूजा, शत्रु यही हैं सारे ।
आजादी से लेकर अबतक, जो हमको हैं मारे ।

कौन निकाले हैं पंडित को, जो घाटी में खेले ।
उनके आंखों के आंसू भी, जिनको लगे झमेले ।।
 
मेरी धरती मेरा अंबर, फिर भी मैं बेगाना ।
जहां अल्प संख्यक है हिन्दू, वहां बने ‘कैराना’ ।।

परहेज हमें क्यों कर होगा, बरकत होवे सबका ।
हिन्दू इस धरती के जाये, क्यों फिर कुचला तबका । 

जागो हिन्दू अब तो जागो, गहरी निद्रा छोड़ो ।
अस्तित्व बचाने तुम अपना, बैरी का मुख तोड़ो ।।

आई होली आई होली

आई होली आई होली, मस्ती भर कर लाई ।
झूम झूम कर बच्चे सारे, करते हैं अगुवाई ।
देखे बच्चे दीदी भैया, कैसे रंग उड़ाये ।
रंग अबीर लिये हाथों में, मुख पर मलते जाये ।
देख देख कर नाच रहे हैं, बजा बजा कर ताली ।
रंगो इनको जमकर भैया, मुखड़ा रहे न खाली ।
इक दूजे को रंग रहें हैं, दिखा दिखा चतुराई ।
आई होली आई होली.......
गली गली में बच्चे सारे, ऊधम खूब मचाये ।
हाथों में पिचकारी लेकर, किलकारी बरसाये ।।
आज बुरा ना मानों कहकर, होली होली गाते ।
जो भी आते उनके आगे, रंगों से नहलाते ।।
रंग रंग के रंग गगन पर, देखो कैसे छाई ।
आई होली आई होली.......
कान्हा के पिचका से रंगे, दादाजी की धोती ।
दादी भी तो बच ना पाई, रंग मले जब पोती ।
रंग गई दादी की साड़ी, दादाजी जब खेले ।
दादी जी खिलखिला रही अब, सारे छोड़ झमेले ।
दादा दादी नाच रहे हैं, लेकर फिर तरूणाई ।
आई होली आई होली.......

देश गगन पर छाये कुहरा

सार छंद
आतंकी और देशद्रोही, कुहरा बनकर छाये ।
घर के विभिषण लंका भेदी, अपने घर को ढाये ।।
जेएनयू में दिखे कैसे, बैरी दल के पिल्ले ।
जुड़े प्रेस क्लब में भी कैसे, ओ कुलद्रोही बिल्ले ।।
किये देशद्रोही को नायक, बैरी बन बौराये ।
बैठ हमारी छाती पर वह, हमको आंख दिखाये ।।
जिस थाली पर खाना खाये, छेद उसी पर करते ।
कौन बने बैरी के साथी, उनकी झोली भरते ।।
अजब बोलने की आजादी, कौन समझ है पाये ।
उनकी गाली  को सुन सुनकर, कौन यहां बौराये ।।
लंगड़ा लगे तंत्र हमारा, अंधे बहरे नेता ।
मूक बधिर मानव अधिकारी, बनते क्यो अभिनेता ।।
वोट बैंक के लालच फसकर, जाति धरम बतलाये ।
राजनीति के गंधारी बन, सेक्यूलर कहलाये ।।
छप्पन इंची छाती जिसकी, छः इंची कर बैठे ।
म्याऊं-म्याऊं कर ना पाये, जो रहते थे ऐठे ।।
जिस शक्ति से एक दूजे को, नेतागण है झटके ।
उस बल से देशद्रोहियों को, क्यों ना कोई पटके ।।
सबसे पहले देश हमारा, फिर राजनीति प्यारी ।
सबसे पहले राजधर्म है, फिर ये दुनियादारी ।।
राजनीति के खेल छोड़ कर, मिलजुल देश बचाओ ।
देश गगन पर छाये कुहरा, रवि बन इसे मिटाओ ।।

//मां भारती पुकारे //



जागो जागो वीर सपूतो. माँ भारती पुकारे ।
आतंकी बनकर बैरी फिर. छुपछुप है ललकारे ।।

उठो जवानो जाकर देखो. छुपे शत्रु पहचानो ।
मिले जहाँ पर कायर पापी. बैरी अपना मानो ।।

काट काट मस्तक बैरी के. हवन कुण्ड पर डालो।
जयहिन्द मंत्र उद्घोष करो. जीवन यश तुम पा लो ।।

जिनके मन राष्ट्र प्रेम ना हो. बैरी दल के साथी ।
स्वार्थी हो जो चलते रहते. जैसे पागल हाधी ।।

छद्म धर्म जो पाले बैठे . जन्नत के ले चाहत ।
धरती को जो दोजक करते. उनके बनो महावत ।।

बैरी के तुम छाती फाड़ों. वीर सिंह के लालों ।
रक्तबीज के ये वंशज हैं. इन्हें अग्नि पर डालो ।।
-रमेश चौहान-

लोकतंत्र का कमाल देखो (सार छंद)

 लोकतंत्र का कमाल देखो, हमसे मांगे नेता ।
झूठे सच्चे करते वादे, बनकर वह अभिनेता ।।

लोकतंत्र का कमाल देखो, रंक द्वार नृप आये ।
पाॅंच साल के भूले बिसरे, फिर हमको भरमाये ।।

लोकतंत्र का कमाल देखो, नेता बैठे उखडू ।
बर्तन वाली के आगे वह, बने हुये है कुकडू ।।

लोकतंत्र का कमाल देखो, एक मोल हम सबका ।
ऊॅंच नीच देखे ना कोई, है समान हर तबका ।।

लोकतंत्र का कमाल देखो, शासन है अब अपना ।
अपनों के लिये बुने अपने, अपनेपन का सपना ।।


े.

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