‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

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गजल

तेरे होने का मतलब चूडियाॅं समझती हैं आंख में चमक क्यों हैं पुतलियाॅं समझती है ये बदन का इठलाना और मन का मिचलाना गूंथे हुये गजरों की बालियाॅं समझती है हो तुम्ही तो मेरे श्रृंगार की वजह सारे इस वजूदगी को हर इंद्रियाॅं  समझती है श्वास तेरे मेरे जो एक हो गये उस पल एहसास को तो ये झपकियाॅं समझती है साथ देना तुम पूरे उम्र भर वफादारी से बेवफाई...

गजल- यारब जुदा ये तुझ से जमाना तो है नही

यारब जुदा ये तुझसे जमाना तो है नही क्यों फिर भी कहते तेरा ठिकाना तो है नही कण कण वजूद है तो तुम्हारा सभी कहे माने भी ऐसा कोई सयाना तो है नही सुख में भुला पुकारे तुझे दुख मे आदमी नायाब  उनका कोई बहाना तो है नही भटके रहे जो माया के पीछे यहीं कहीं कोई भला खुदा का दिवाना तो है नही लगता मुझे तो खुद का इबादत ही    ढोंग सा अपना भी...

गजल-जब से दौलत हमारा निशाना हुआ

जब से दौलत हमारा निशाना हुआ तब से ये जिंदगी कैद खाना हुआ । पैसे के नाते रिश्‍ते दिखे जब यहां अश्‍क में इश्‍क का डूब जाना हुआ । दुख के ना सुख के साथी यहां कोई है मात्र दौलत से ही जो यराना हुआ । स्वार्थ में कुछ भी कर सकते है आदमी उनका अंदाज अब कातिलाना हुआ । गैरो का ऊॅचा कद देखा जब आदमी छाती में सांप का लोट जाना हुआ । रेत सा तप रहा बर्फ सा जम...

एक तरही गजल-देखा जब से उसे मै दीवाना हुआ

देखा जब से उसे मै दीवाना हुआ उसको पाना जीवन का निशाना हुआ । जब से गैरों के घर आना जाना हुआ तब से गैरो से भी तो यराना हुआ । मुखड़े पर उनकी है चांद की रोशनी नूर से उनके रोशन यह जमाना हुआ । कस्तूरी खुशबू रग रग समाया हुआ गुलबदन देख गुलशन सुहाना हुआ । सादगी की मूरत रूप की देवी वो तो कोकीला कंठ उनका तराना हुआ । प्यार करते नही प्यार हो जाता है प्यार...

तरही गजल

खफा मुहब्बते खुर्शीद औ मनाने से, फरेब लोभ के अस्काम घर बसाने से । इक आदमियत खफा हो चला जमाने से, इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से । नदीम खास मेरा अब नही रहा साथी, फुवाद टूट गया उसको अजमाने से । जलील आज बहुत हो रहा यराना सा..ब वो छटपटाते निकलने गरीब खाने से । असास हिल रहे परिवार के यहां अब तो वफा अदब व मुहब्बत के छूट जाने ...

गजल-मेरे माता पिता ही तीर्थ हैं हर धाम से पहले

मेरे माता पिता ही तीर्थ हैं हर धाम से पहले चला थामे मैं उँगली उनकी नित हर काम से पहले उठा कर भाल मै चिरता चला हर घूप जीवन का, बना जो करते सूरज सा पिता हर शाम से पहले झुकाया सिर कहां मैने कही भी धूप से थक कर, घनेरी छांव बन जाते पिता हर घाम से पहले सुना है पर कहीं देखा नही भगवान इस जग में पिता सा जो चले हर काम के अंजाम...

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