‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

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कैसे पढ़ा-लिखा खुद को बतलाऊँ

 

कैसे पढ़ा-लिखा खुद को बतलाऊँ
(चौपाई छंद)


पढ़-लिख कर मैंने क्‍या पाया ।
डिग्री ले खुद को भरमाया ।।
काम-धाम मुझको ना आया ।
केवल दर-दर भटका खाया ।।

फेल हुये थे जो सहपाठी ।
आज धनिक हैं धन की थाती ।
सेठ बने हैं बने चहेता ।
अनपढ़ भी है देखो नेता ।।

श्रम करने जिसको है आता ।
दुनिया केवल उसको भाता ।।
बचपन से मैं बस्‍ता ढोया ।
काम हुुुुनर मैं हाथ न बोया ।।

ढ़ूढ़ रहा हूँ कुछ काम मिले ।
दो पैसे से परिवार खिले ।।
पढ़ा-लिखा मैं तनिक अनाड़ी ।
घर में ना कुछ खेती-बाड़ी ।।

दुष्‍कर लागे जीवन मेरा ।
निर्धनता ने डाला डेरा ।।
दो पैसे अब मैं कैसे पाऊँ ।
पढ़ा-लिखा खुद को बतलाऊँ ।।

-रमेश चौहान


घोर-घोर रानी (चौपाई छंद)

काली-काली बरखा आई । हरी-हरी हरियाली लाई
रिमझिम-रिमझिम  बरसे पानी । नम पुरवाही चले सुहानी

बितत बिते पतझड़ दुखदायी । पुष्‍प-पत्र पल्लव हर्षाई
वन उपवन अब लगे मुस्काने । खग-मृग मानव गाये गाने

इंद्रधनुश नभ पर बन आये । देख-देख बच्चे हर्षाये
रंग बै जा नी ह पी ना ला । बच्चे पढ़े थे पाठशाला

तडि़त जब लाल आॅंख दिखाये । बादल भी नगाड़ा बजाये
रण-भेरी को सब सुन-सुन कर । बैठ रहे हैं आॅंख मूंद कर

छप छप करते खेले बच्चे । जल बहाव में खाते गच्चे
गा कर इतना इतना पानी । खेल रहे घोर-घोर रानी

बंधन

मृत्युलोक माया मोह अमर । मोह पास ही जग लगे समर
लोग कहे यह मेरा अपना । संत कहे जगत एक सपना

जीते जो जग में यह माया । मिट्टी समझे अपनी काया
स्वार्थ के सब रिश्ते नाते । स्नेही जीवन अनमोल बनाते

आसक्ति प्रीत में भेद करें । कमल पत्र सा निर्लिप्त रहे
है अनमोल प्रीत का बंधन । रहे सुवासित जैसे चंदन

बरखा रानी


मानसून ढूंढे पथ अपना । कृषक बुने जीवन का सपना
पलक पावड़े बिछाय पथ पर । सभी निहारे अपलक नभ पर

बरखा रानी क्यो रूठी है । धरती अब तक तो सूखी है
आशाढ़ मास बितने को है । कृषक नैन अब रिसने को है

आने को है अब तो सावन । यह जो अब मत लगे डरावन
हे बरखा अब झलक दिखाओ । हमें और ना अधिक सताओ

उमड़ घुमड़ के अब तो आओ । धरती के तुम प्यास बुझाओ
छप्प छप्प खेलेंगे बच्चे । बहते जल पर उछल उछल के
-रमेशकुमार सिंह चौहान

गणेश स्तुति

गणेश वंदना
दोहा -
जो गणपति पूजन करे,  ले श्रद्धा विश्वास ।
सकल आस पूरन करे, भक्तों के गणराज ।।

    चौपाई
हे गौरा  गौरी के लाला । हे लंबोदर दीन दयाला । ।
सबसे पहले तेरा सुमरन  । करते हैं हम वंदन पूजन ।।1।।

हे प्रभु प्रतिभा  विद्या दाता । भक्तों के तुम भाग्य विधाता
वेद पुराण सभी गुण गाये। तेरी महिमा अगम बताये ।।2।।

पिता गगन अरू माता धरती  । ज्ञान प्रकाश दिये प्रभु जगती
मातु-पिता तब मगन हुये अति । बना दिये तुम को गणाधिपति।3।

भक्त नाम जो तेरे  ले कर । चलते रहते मंजिल पथ पर
काज सभी  निर्विध्न सफल हो। पथ के बाधा सब असफल हो।4।

वक्रतुण्ड़ हे  देव गजानन । मूषक वाहन लगे सुहावन
जय जय लंबोदर जग पावन । रूप मनोहर तेरा मन भावन । 5।

मां की ममता तुझको भावे । तुझको मोदक भोग रिझावे 
बाल रूप बालक को भाये । मंगल मूर्ति सदा मन भाये ।6।

एकदन्त हे कृपा कीजिये । सद्विचार सद्बुद्धि दीजिये ।
हे गणनायक काम संवारे। जय जय गणपति भक्त पुकारे ।।7।।

हे मेरे आखर के देवता । स्वीकारे गणपति यह न्योता
मेरा वंदन प्रभु स्वीकारें । दुश्कर जग से मुझे उबारें ।।8।।

अपने पूर्वज अरू माटी का । अपने जंगल अरू घाटी का
गाथा गाऊँ सम्मान सहित । सदा रहूॅ मै अभिमान रहित।9।

सारद नारद यश को गाते । हे गणनायक तुझे  मनाते ।
रिद्धी सिद्धी के प्रभु दाता । सब दुख मेटो भाग्य विधाता ।10।

दोहा-
शरण गहे जो आपके, उनके मिटे क्लेष ।
 विध्न हरण प्रभु आप को, वंदन करे ‘रमेश‘ ।।

जय हो जय हो भारत माता (छंदबद्व रचना)

दोहा ‘
भारत माता है भली, भली स्वर्ग से जान ।
नमन करते शिश झुका, देव मनुज भगवान् ।।

चैपाई -
लहर लहर झंडा लहराता । सूरज पहले शीश झुकाता ।
जय हो जय हो भारत माता । तेरा वैभव जग विख्याता ।।

उत्तर मुकुट हिमालय साजे । उच्च शिखर रक्षक बन छाजे ।।
गंगा यमुना निकली पावन । चार-धाम हैं पाप नशावन ।।

दक्षिण सागर चरण पखारे ।  गर्जन करते बन रखवारे
सेतुबंध शिवशंकर जापे     ।  सागर तट रामेश्वर थापे

कोणार्क सूर्य पूरब थाती     ।  जगन्नाथ की जग में ख्याती
सोमनाथ पश्चिम विख्याता ।  सागर तट द्वारिका सुहाता ।।

लाल किला दिल्ली का शोभा । ताज महल जग का मन लोभा
माँ-शिशु का है अपना नाता  । जय हो जय हो भारत माता

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