कैसे पढ़ा-लिखा खुद को बतलाऊँ
(चौपाई छंद)
पढ़-लिख कर मैंने क्या पाया ।
डिग्री ले खुद को भरमाया ।।
काम-धाम मुझको ना आया ।
केवल दर-दर भटका खाया ।।
फेल हुये थे जो सहपाठी ।
आज धनिक हैं धन की थाती ।
सेठ बने हैं बने चहेता ।
अनपढ़ भी है देखो नेता ।।
श्रम करने जिसको है आता ।
दुनिया केवल उसको भाता ।।
बचपन से मैं बस्ता ढोया ।
काम हुुुुनर मैं हाथ न बोया ।।
ढ़ूढ़ रहा हूँ कुछ काम मिले ।
दो पैसे से परिवार खिले ।।
पढ़ा-लिखा मैं तनिक अनाड़ी ।
घर में ना कुछ खेती-बाड़ी ।।
दुष्कर लागे जीवन मेरा ।
निर्धनता ने डाला डेरा ।।
दो पैसे अब मैं कैसे पाऊँ ।
पढ़ा-लिखा खुद को बतलाऊँ ।।
-रमेश चौहान
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