‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

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सूरज (त्रिभंगी छंद)


जागृत परमात्मा, जग की आत्मा, ज्योति रूप में, रचे बसे ।
अंतरिक्ष शासक, निश्श विनाशक, दिनकर भास्कर, कहे जिसे ।।
अविचल पथ गामी, आभा स्वामी, जीवन लक्षण, नित्य रचे ।
जग जीवन दाता, सृष्टि विधाता, गतिवत शाश्वत, सूर्य जचे ।।

विज्ञानी कहते, सूरज रहते, सभी ग्रहों के, मध्य अड़े ।
सूर्य एक है तारा, हर ग्रह को प्यारा, जो सबको है, दीप्त करे ।।
नाभी पर जिनके, हिलियम मिलके, ऊर्जा गढ़कर, शक्ति भरे ।
जिसके ही बल पर, ग्रह के तम पर, अपनी आभा, नित्य करे ।।

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मौलिक अप्रकाशित

गणेशजी की आरती

जय गौरी नंदन, विघ्न निकंदन, जय प्रथम पूज्य, भगवंता ।
जय शिव के लाला, परम दयाला, सुर नर मुनि के, प्रिय कंता ।।

मध्य दिवस सुचिता, भादो पुनिता, शुक्ल चतुर्थी, शुभ बेला ।
प्रकटे गणनायक, मंगल दायक, आदि शक्ति के, बन लेला ।।

तब पिता महेशा, किये गणेशा, करके गजानन, इक दंता ।
जय गौरी नंदन, विघ्न निकंदन, जय प्रथम पूज्य, भगवंता ।।

रिद्धि सिद्धि द्वै, हाथ चवर लै, निशदिन करतीं, हैं सेवा ।
तुहरे शरण खड़े, जयकार करे, तैतीस कोटि, सब देवा ।।

प्रभु दर पर तेरे, शाम सबेरे, माथा टेके, सब संता ।
जय गौरी नंदन, विघ्न निकंदन, जय प्रथम पूज्य, भगवंता ।।

जय जय सुखकारी, जन हितकारी, मेरी नैय्या, हाथ धरें ।
सब भक्त पुकारे, तेरे द्वारे, सकल मनोरथ, पूर्ण करें ।।

?लेला-शिशु, बच्चा

हिन्दी दिवस

भाषा यह हिन्दी, बनकर बिन्दी, भारत माँ के, माथ भरे ।
जन-मन की आशा, हिन्दी भाषा, जाति धर्म को, एक करे ।।
कोयल की बानी, देव जुबानी, संस्कृत तनया, पूज्य बने ।
क्यों पर्व मनायें,क्यों न बतायें, हिन्दी निशदिन, कंठ सने ।।

हे गौरी नंदन

त्रिभंगी छंद
हे गौरी नंदन, प्रभु सुख कंदन, हे विघ्न हरण, भगवंता ।
गजबदन विनायक, शुभ मति दायक, हे प्रथम पूज्य, इक दंता ।।
हे आदि अनंता, प्रिय भगवंता, रिद्धी सिद्धी , प्रिय कंता ।
हे देव गणेषा, मेटो क्लेषा, शोक विनाषक, दुख हंता ।।

हे भाग्य विधाता, मंगल दाता, हे प्रभु भक्तन, हितकारी ।
तेरे चरण पड़े, सब भक्त खड़े, करते तेरो, बलिहारी ।।
हे बुद्धि प्रदाता, जग हर्षाता, बांटे प्रकाष, अभिसारी ।
हे गजमुख धारी, सुनो हमारी, दारूण क्रंदन, अतिभारी ।

नर तन पर सोहे, गजमुख तोहे, हे वक्रतुण्ड़, गणराजा ।
हे प्रभु लंबोदर, हस्त दण्ड़ धर, करते हो तुम, सब काजा
है तेरो वाहन, मूषाक भावन, आकाष धरा, पर छाये ।
है मोदक भाये, भक्तन लाये, दया आप ही, बरसाये ।

-रमेश चैहान


जय जय कैलासी

जय जय कैलासी, घट घट वासी, पाशविमोचन, भगवंता ।
जय जय नटनागर, करूणा सागर, जय विघ्नेश्वर, प्रिय कंता ।।
जय जय त्रिपुरारी, जय कामारी, जय गंगाधर, शिवशंकर ।
जय उमा महेश्वर, जय विश्वेष्वर, जय शशिशेखर, आढ्यंकर ।।
(आढ्यंकर- निर्धनो को दान देकर धनी करने वाला )

सावन

ये रिमझिम सावन, अति मन भावन, करते पावन, रज कण को ।
हर मन को हरती, अपनी धरती, प्रमुदित करती, जन जन को ।
है कलकल करती, नदियां बहती, झर झर झरते, अब झरने ।
सब ताल तलैया, डूबे भैया, लोग लगे हैं, अब डरने ।।
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-रमेशकुमार सिंह चौहान

महंगाई

बढ़े महंगाई, करे कमाई, जो जमाखोर, मनमानी ।
सरकारी ढर्रा, जाने जर्रा, है सांठ गांठ, अभिमानी ।।
अब कौन हमारे, लोग पुकारे, जो करे रक्षा, हम सब की ।
सीखें अर्थशास्त्र, भुल पाकशास्त्र, या करें भजन, अब रब की ।।
-रमेशकुमार सिंह  चौहान

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