बंदर दल वन छोड़ कर, घूम रहे हर गांव ।
छप्पर छप्पर कूद कर, तोड़ रहे हर ठांव ।
तोड़ रहे हर ठांव, परेशानी में मानव ।
रामा दल के मित्र, हमें लगते क्यों दानव ।।
अर्जी दिया ‘रमेंश‘, समेटे पीर समंदर ।
पढ़े वानरी पत्र, साथ में नन्हा बंदर ।।
पढ़ कर चिठ्ठी वानरी,, मन ही मन मुस्काय ।
अनाचार का ठौर तो, गढ़ लंका सा भाय ।
गढ़ लंका सा भाय, जहां केवल मनमानी ।
प्रकृति संतुलन तोड़, करे इंसा नादानी ।
काट काट कर पेड़, किये हैं धंधा बढ़़ कर ।
किये न सम व्यवहार, आदमी इतने पढ़ कर ।।