‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

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अटल बिहारी वाजपेई

अटल अटल है आपका, ध्रुव तरा सा नाम ।
बोल रहा हर गांव में,  पहुंच सड़क का काम ।।

जोड़ दिए हर गांव को, मुख्य सड़क के साथ।
गांव शहर से  जब जुड़ा, कारज आया हाथ ।

बदल दिया जीवन जगत,  देकर हमें विचार ।
आम लोग भी खाश हैं,  दिए अटल आचार ।।

लोकतंत्र का ध्येय जब, था धूसर तम श्याम।
अंत्योदय का नाद कर, अटल किए निजी काम ।।

स्वर्णिम चतुर्भुज योजना, गढ़ा देश का साख।
दम्भ पोखरण का अटल,  केवल था नहिं राख ।।



ओम

भोले बाबा शंभु हर,  हर-हर शंकर ओम ।
बोल बम्ब की नाद से, गूंज रहा है व्योम ।।
गूंज रहा है व्योम, बम्ब भोले का नारा ।
बोल बम्ब जयकार, लगे भक्तों को प्यारा ।।
कांवर लेकर कांध,  राह पर भगतन बोले ।
करें कामना पूर्ण, शंभु शिव बाबा भोले ।।


चिंतन के दोहे

शांत हुई ज्योति घट में, रहा न दीपक नाम ।

अमर तत्व निज पथ चला, अमर तत्व से काम ।।


धर्म कर्म धर्म, कर्म का सार है, कर्म धर्म का सार ।

करें मृत्‍यु पर्यन्‍त जग, धर्म-कर्म से प्‍यार ।।


दुनिया भर के ज्ञान से, मिलें नहीं संस्‍कार ।

अपने भीतर से जगे, मानवता उपकार ।।


डाली वह जिस पेड़ की, उससे उसकी बैर ।

लहरायेगी कब तलक, कबतक उसकी खैर ।


जाति मिटाने देश में, अजब विरोधाभास ।

जाति जाति के संगठन, करते पृथ्‍क विलास ।।


सकरी गलियां देखकर, शपथ लीजिये एक ।

 बेजाकब्‍जा छोड़कर, काम करेंगे नेक ।।


शिक्षक निजि स्कूल का, दीन-हीन है आज ।

भूखमरी की राह पर, चले चले चुपचाप ।।


पहेलियां -बूझों तो जानें

1-
पीछा करता कौन वह, जब हों आप प्रकाश ।
तम से जो भय खात है, आय न तुहरे पास ।।

2-
श्वेत बदन अरु शंकु सा, हरे रंग की पूंछ ।
सेहत रक्षक शाक है, सखा पहेली बूझ ।

3-
काष्ठ नहीं पर पेड़ हूँ, बूझो मेरा नाम ।
मेरे फल पत्ते सभी, आते पूजन काम ।।

4-
बाहर से मैं सख्त हूँ, अंतः मुलायम खोल । फल मैं ऊँचे पेड़ का, खोलो मेरी पोल ।।

5-
कान पकड़ कर नाक पर, बैठा कौन महंत ।
दृष्टि पटल जो खोल कर, कार्य करे ज्यों संत ।।
6-

तरुण लड़कपन में हरी, और वृद्ध में लाल ।
छोटी लंबी तीक्ष्ण जो, करती खूब कमाल ।।

7.
फले कटीले वृक्ष पर,  जिनकी खोल कठोर ।
बीज गुदे में  है गुथे, करे कब्ज को थोर ।।

-रमेश चौहान

उत्तर- 1. परछाई 2. मूली 3. केला 4.नारियल 5. चश्मा (ऐनक),  6. मिर्च 7.बेल (बिल्व)

प्रभाती दोहे




चीं-चीं चिड़िया चहकती, मुर्गा देता बाँग ।
शीतल पवन सुगंध बन, महकाती सर्वांग ।।

पुष्पकली पुष्पित हुई, निज पँखुडियाँ प्रसार ।
उदयाचल में रवि उदित, करता प्राण संचार ।।

जाग उठे हैं नींद से, सकल सृष्टि संसार ।
जागो जागो हे मनुज, बनों नहीं लाचार ।।

बाल समय यह दिवस का, अमृत रहा है बाँट ।
आँख खोल कर पान कर, भरकर अपनी माँट ।।
(माँट-मिट्टी का घड़ा)

वही अभागा है जगत, जो जागे ना प्रात ।
दिनकर दिन से कह रहा, रूग्ण वही रह जात ।।


-रमेश चैहान

कोरोना महामारी पर दोहे

देख महामारी कहर, सारी दुनिया दंग ।
कहना सबका एक है, रहना घर में बंद ।
समय परिस्थिति देख कर, करता है जो काम ।
अजर अमर इतिहास में, अंकित करता नाम ।
आंधी अंधा होत है, कर सके न पहचान ।
कौन दीन अरु है धनी, कौन निरिह बलवान ।।
-रमेश चौहान

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