‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

हम मजदूर

रूपमाला छंद

राम जाने राम जाने, कौन लाया रोग ।
हो गया है बंद दुनिया, कष्ट भोगे लोग ।।
चीन दोषी चीन दोषी, राग छेडे ट्रंप ।
तेज गति से तेज दौड़े, ले करोना जंप ।।

लाॅक डाउन लाॅक डाउन, बंद चारों खंद ।
काम धंधा बंद है जी, चार पैसा बंद ।।
पेट मांगे भात दे दो, आज हम मजबूर ।
हाथ मांगे काम दे दो, लोग हम मजदूर ।

दम्भ चीन का आज बढ़ा है (आल्हा छंद)

आल्‍हा छंद


जीत सत्य की होती हरदम, हर पल  सत्य हमारे साथ ।
मात दिए धनबल भुजबल को, इष्ट हमारे हैं रघुनाथ ।।

छप्पन इंची छाती अपनी, मनबल सागर सम बलखाय।
देश प्रेम संकल्प हमारा, काल हमें क्या तनिक डिगाय ।

रावण जैसे चीन हुंकारें, रामा दल हम रखे सजाय ।
चीन पाक के चाल सभी अब,  धरती रज में देब मिलाय ।

दम्भ चीन का आज बढ़ा है, दंभ कुचलकर हाथ धराब 
पाक नेपाली सांठगांठ पर, हांगकांग का डोर मिलाब ।

रस छंद अलंकार

/रस/

पढ़न श्रवण या दरश से, मिलते जो आनंद ।

नाम उसी का रस कहे, काव्य मनीषी चंद ।।

/छंद/

यति गति तुक जिस काव्य में, अरु हो मात्रा भार ।

अथवा मात्रा भार हो, बनते छंद विचार ।

/अलंकार/

आभूषण जो काव्य का, अलंकार है नाम ।

वर्ण शब्द अरु अर्थ से, काव्य सजाना काम ।।

-रमेश चौहान

दोहे

पेड़ मूल को छोड़कर , जीवित रह न पाय ।
जुड़कर अपनी मूल से, लहर-लहर लहराय ।।

अमरबेल जो चूसता, अन्य पेड़ का रक्त . ।
जितना चाहे फैल ले, पर हो सके न सख्त ।।

बड़े हुए नाखून को, ज्यों काटे हो आप ।
बुरी सोच भी काटिये, जो वैचारिक ताप ।।

रूप सजाने आप ज्यों, करते लाख उपाय ।
सोच सजाने भी करें, कछुक जतन मन भाय ।।

चलो नई शुरुआत करें

चलो नई शुरुआत करें हम ।  गम को तज मन खुशी भरें हम
चलिए बाधा दौड़ लगाएं । हर बाधा को धूल चटाएं

संघर्ष विहिन जीवन  कैसा । पथ पर पाहन जड़वत जैसा
छल-छल कल-कल नदियां बहती । क्या वह कोई बाधा ना सहती

ज्ञानवान हो बुद्धिमान हो । हे मानव तुम तो सुजान हो
घोर निशा में दीप जलाए । तुमने ही तम घोर भगाए

जीवन बाधा से क्यों घबराएं । समय बिते पर  क्यों पछताएं
चलो उठें कुछ कर दिखलाएं । अपने सपनों को हम सहलाएं

आंख खोलकर स्वप्न सजाएं । उन सपनों का महल बनाएं
महल बने वह सुंदर न्यारा । मन को भाए जो अति प्यारा

दोहे- सुबह सवेरे जागिए

सुबह सवेरे जागिए, जब जागे हैं भोर ।
समय अमृतवेला मानिए, जिसके लाभ न थोर ।।

जब पुरवाही बह रही, शीतल मंद सुगंध ।
निश्चित ही अनमोल है, रहिए ना मतिमंद ।।

दिनकर की पहली किरण, रखता तुझे निरोग ।
सूर्य दरश तो कीजिए, तज कर बिस्तर भोग ।।

दीर्घ आयु यह बांटता,  काया रखे निरोग ।
जागो जागो मित्रवर, तज कर मन की छोभ ।।

चौहान के दोहे

समय बड़ा बलवान है,  भाग्य समय का खेल ।
बुरे समय में धैर्य से, होवे सुख से मेल ।।

दुनिया प्यासी प्रेम का, प्रेम सुधा तू बाॅट ।
थोथा थोथा फेक दे, ठोस बीज ले छाॅट ।।

कर्म बड़ा है भाग्य से,  करें कर्म का मोल ।
ढोलक बोले थाप से,  बोल सके न खोल ।।

प्रियसी प्रियतम हे प्राण प्रिये

प्रियसी प्रियतम हे प्राण प्रिये, तुमसे जीवन मेरा ।
वाह्य देह को क्या देखूँ मैं, निर्मल मन है तेरा ।।

गंगा जल भी दूषित अब है, पर तू अब भी पावन ।
मेरे कष्टों को धो देती , ज्यों तू पाप नशावन ।।

डगर दुखों की रोक रखी तू, जो छूना चाहे मुझको ।
सुख की तू तो जागृत प्रतिमा, सुख ही मानूँ तुझको ।।

सुख का साथी लोग सभी हैं, तू तो दुख की साथी ।
दुख से भय ना मुझको होवे,  चाहे हो ज्यों हाथी ।।

मेरी प्रियतम मेरी पत्नी, वामअँगी कहलाती ।
दोनों तन पर प्राण एक है, सहजन  मन को भाती ।।

-रमेश चौहान

जीवन एक संघर्ष है -"लड़ना मुझको यार' (सार छंद)

स्मरण सदन का खोल झरोखा, देखा ॴॅख प्रसार ।
क्या कुछ मैंने  खोया पाया, करता रहा विचार ।।
बरखा सर्दी बसंत पतझड़, मौसम का सौगात ।
दिन का चढ़ना और उतरना, सुबह शाम अरु रात ।।
कई बार बदली घिर आया, छुपे न मन का ओज ।
घूप अंधियारी में भी वह, किया खुशी का खोज ।।
क्या खोना है क्या पाना है,  सुख दुख का ये मेल ।
कभी भाग्य पर दांव कर्म का, रहा खेलता खेल ।।
रात ढले पर सूरज आता, दिवस ढले पर रात ।
काम समय का चलते रहना, याद रखे यह बात ।।
संघर्षों का समर भूमि है, कर्मों का हथियार ।
ढाल कर्म का ही कर लेकर, लड़ना मुझको यार ।।

पहेलियां -बूझों तो जानें

1-
पीछा करता कौन वह, जब हों आप प्रकाश ।
तम से जो भय खात है, आय न तुहरे पास ।।

2-
श्वेत बदन अरु शंकु सा, हरे रंग की पूंछ ।
सेहत रक्षक शाक है, सखा पहेली बूझ ।

3-
काष्ठ नहीं पर पेड़ हूँ, बूझो मेरा नाम ।
मेरे फल पत्ते सभी, आते पूजन काम ।।

4-
बाहर से मैं सख्त हूँ, अंतः मुलायम खोल । फल मैं ऊँचे पेड़ का, खोलो मेरी पोल ।।

5-
कान पकड़ कर नाक पर, बैठा कौन महंत ।
दृष्टि पटल जो खोल कर, कार्य करे ज्यों संत ।।
6-

तरुण लड़कपन में हरी, और वृद्ध में लाल ।
छोटी लंबी तीक्ष्ण जो, करती खूब कमाल ।।

7.
फले कटीले वृक्ष पर,  जिनकी खोल कठोर ।
बीज गुदे में  है गुथे, करे कब्ज को थोर ।।

-रमेश चौहान

उत्तर- 1. परछाई 2. मूली 3. केला 4.नारियल 5. चश्मा (ऐनक),  6. मिर्च 7.बेल (बिल्व)

प्रेम और संबंध में पहले आया कौन

/तुकबंदी/

प्रेम और संबंध में पहले आया कौन ।
जिसने भी सुना यह प्रश्न साध रखा मौन ।।

कहने लगे मुर्गी पहले आया कि अंडा ।
कुछ इसी प्रकार का है यह तुम्हारा फंडा ।।

नहीं नहीं आसान है ।
कहां तुम्हारा ध्यान है ।।

अच्छा चलो एक दूसरा प्रश्न पूछते हैं ।
आओ मिलकर इसी पर  जुझते हैं ।।

तुम्हारी मां ने तुझे बेटा मानकर पहले प्यार किया ।
या कि तुझे प्यार करने के बाद बेटा मान लिया ।।

पहले माना ।
या पहले जाना ।।

चाहे संतान दुर्गुणी कुरूप हो ।
चाहे सद्गुणी स्वरूप हो ।।

फिर भी मां उससे प्रेम करती है ।
अपने से ज्यादा उस पर मरती है ।।

अब तो इस पहेली को बुझो ।
मन बुद्धि विवेक से जूझो ।।

-रमेश चौहान

राधिका छंद-"जल स्रोत बचाओ, पानी बचाओ"

-राधिका छंद-
परिभाषा-
तेरह पीछे नौ भार, राधिका आवे ।
चरण अंत दो गुरू भार, राधिका भावे ।।
तेरह मात्रा का अंत, त्रिकल ही राखें ।
छंद राधिका का नियम, छंदविद भाखे ।।

उदाहरण-"जल स्रोत बचाओ, पानी बचाओ"
पानी जीवन आधार, जिंदगी पानी ।
पानी से सारी सृष्टि, सृष्टि का प्राणी ।।
पानी बिन जग बेकार, जीव ना बाचे ।
सब कोई ही जानते, बात है साचे ।।

शोर मचाते हर कोय, पानी बचाओ ।
धरा करे हाहाकार, हमें न सताओ ।।
फिर भी करते आदमी, रोज नादानी ।
शहर-शहर अरू हर गाँव, एकहि कहानी ।।

स्रोत बचाने से यहाँ, रहेगा पानी ।
कान खोल कर सुन बात, जो है सियानी ।।
अगर नदी-नालें बचे, तब बचे पानी ।
कुआँ-बावली तालाब, बचे गुणखानी।।

साथ निभाये भू-गर्भ, कबतलक सोचो ।
बैठे-बैठे ही यूँ आप, धरा न खरोचो ।।
बंजर ना होवे धरा, रूके ना धारा ।
स्रोत बचाओं जी स्रोत, तब लगे न्यारा ।।
-रमेश चौहान

मनहरण घनाक्षरी किसे कहते हैं जानिए मनहरण घनाक्षरी में

वर्ण-छंद घनाक्षरी, गढ़न हरणमन
नियम-धियम आप, धैर्य धर  जानिए ।।
आठ-आठ आठ-सात, चार बार वर्ण रख
चार बार यति कर,  चार पद तानिए ।।
गति यति लय भर, चरणांत गुरु धर
साधि-साधि शब्द-वर्ण, नेम यही मानिए ।
सम-सम सम-वर्ण, विषम-विषम सम, 
चरण-चरण सब, क्रम यही पालिए ।।




घनाक्षरी की परिभाषा घनाक्षरी में (प्रकार सहित)

रखिये चरण चार, चार बार यति धर
तीन आठ हर बार, चौथे सात आठ नौ ।
आठ-आठ आठ-सात, आठ-आठ आठ-आठ
आठ-आठ आठ-नव, वर्ण भार गिन लौ ।।
आठ-सात अंत गुरु, ‘मन’ ‘जन’ ‘कलाधर’,
अंत छोड़ सभी लघु, जलहरण कहि दौ ।
गुरु लघु क्रमवार, नाम रखे कलाधर
नेम कुछु न विशेष, मनहरण गढ़ भौ ।।

आठ-आठ आठ-आठ, ‘रूप‘ रखे अंत लघु
अंत दुई लघु रख, कहिये जलहरण ।
सभी वर्ण लघु भर, नाम ‘डमरू’ तौ धर
आठ-आठ सानुप्रास, ‘कृपाण’ नाम करण ।।
यदि प्रति यति अंत, रखे नगण-नगण
हो ‘विजया’ घनाक्षरी, सुजश मन भरण ।
आठ-आठ आठ-नव, अंत तीन लघु रख
नाम देवघनाक्षरी, गहिये वर्ण शरण ।।
-रमेश चौहान

प्रभाती दोहे




चीं-चीं चिड़िया चहकती, मुर्गा देता बाँग ।
शीतल पवन सुगंध बन, महकाती सर्वांग ।।

पुष्पकली पुष्पित हुई, निज पँखुडियाँ प्रसार ।
उदयाचल में रवि उदित, करता प्राण संचार ।।

जाग उठे हैं नींद से, सकल सृष्टि संसार ।
जागो जागो हे मनुज, बनों नहीं लाचार ।।

बाल समय यह दिवस का, अमृत रहा है बाँट ।
आँख खोल कर पान कर, भरकर अपनी माँट ।।
(माँट-मिट्टी का घड़ा)

वही अभागा है जगत, जो जागे ना प्रात ।
दिनकर दिन से कह रहा, रूग्ण वही रह जात ।।


-रमेश चैहान

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