स्मरण सदन का खोल झरोखा, देखा ॴॅख प्रसार ।
क्या कुछ मैंने खोया पाया, करता रहा विचार ।।
बरखा सर्दी बसंत पतझड़, मौसम का सौगात ।
दिन का चढ़ना और उतरना, सुबह शाम अरु रात ।।
कई बार बदली घिर आया, छुपे न मन का ओज ।
घूप अंधियारी में भी वह, किया खुशी का खोज ।।
क्या खोना है क्या पाना है, सुख दुख का ये मेल ।
कभी भाग्य पर दांव कर्म का, रहा खेलता खेल ।।
रात ढले पर सूरज आता, दिवस ढले पर रात ।
काम समय का चलते रहना, याद रखे यह बात ।।
संघर्षों का समर भूमि है, कर्मों का हथियार ।
ढाल कर्म का ही कर लेकर, लड़ना मुझको यार ।।
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