‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

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आग लगी पेट्रोल पर (दोहागीत)

आग लगी पेट्रोल पर, धधक रहा है देश ।राज्य, केन्द्र सरकार को, तनिक नहीं है क्लेश ।।मँहगाई छूये गगन, जमीदोज है आय ।जनता अपनी पीर को, कैसे किसे बताय ।।राज व्यपारी का दिखे, नेता भी अलकेश ।आग लगी पेट्रोल पर, धधक रहा है देश ।(अलकेश-कुबेर)राज्य कहे है केन्द से, और केन्द्र तो राज्य ।कंदुक के इस खेल का, केवल दिखे सम्राज्य ।।इसका करें निदान अब, तज नाहक उपदेश...

है मेरी भी कामना

//दोहा गीत// है मेरी भी कामना, करूँ हाथ दो चार । उर पर चढ़ कर शत्रु के, करूँ वार पर वार ।। लड़े बिना मरना नहीं, फँसकर उनके जाल । छद्म रूप में शत्रु बन, चाहे आवे काल ।। लिखूँ काल के भाल पर, मुझे देश से प्यार । है मेरी भी कामना .......... बुजदिल कायर शत्रु हैं, रचते जो षडयंत्र । लिये नहीं हथियार पर, गढ़ते रहते तंत्र ।। बैरी के उस बाप का, सुनना अब चित्कार...

लाल हुये है नंद को

लाल हुये है नंद को, हुये नंद को लाल । बाजा बाजे गह गहे, नभ में उड़े गुलाल ।। ब्रज गोकुल में आज तो, उमंग करे हिलोर । गली गली हर द्वार में, मचा हुआ है शोर ।। ग्वाल संग ग्वालन हर्षित, मिला रही हैं ताल ।। लाल हुये.... गोद यशोदा हॅस रहा, गोकुल राज दुलार । निरख निरख मां शारदे, गाती जाज मलार ।। नाच रहे सब देवता, कह कर जय गोपाल ।।लाल हुये.... जगत पिता...

नित्य ध्येय पथ पर चलें....

नित्य ध्येय पथ पर चलें, जैसे चलते काल ।सुख दुख एक पड़ाव है, जीना है हर हाल ।। रूके नही पल भर समय, नित्य चले है राह ।रखे नही मन में कभी, भले बुरे की चाह ।पथ पथ है मंजिल नही, फॅसे नही जंजाल ।नित्य ध्येय पथ पर चलें.... जन्म मृत्यु के मध्य में, जीवन पथ है एक ।धर्म कर्म के कर्म से, होते जीवन नेक ।।सतत कर्म अपना करें, रूके बिना अनुकाल ।नित्य ध्येय...

प्रश्न लियें हैं एक

मातृभूमि के पूत सब, प्रश्न लियें हैं एक ।देश प्रेम क्यों क्षीण है, बात नही यह नेक ।। नंगा दंगा क्यों करे, किसका इसमें हाथ ।किसको क्या है फायदा, जो देतें हैं साथ ।।किसे मनाने लोग ये, किये रक्त अभिषेक । मातृभूमि के पूत सब आतंकी करतूत को, मिलते ना क्यों दण्ड ।नेता नेता ही यहां, बटे हुये क्यों खण्ड़ ।।न्याय न्याय ना लगे, बात रहे सब सेक । मातृभूमि...

जग जननी मां आइये ..

जग जननी मां आइये, मेरी कुटिया आज । मुझ निर्धन की टेर सुन, रखिये मेरी लाज ।। निर्धन से तो है भला, कचरा तिनका घास । दीनता के अभिशाप से, दुखी आपका दास ।। मानव सा माने नहीं, जग का सभ्य समाज ।। जग जननी मां आइये ... बेटी बहना है दुखी, देख जगत व्यभिचार । लोक लाज अब मिट रहे, नवाचार की मार ।। लोग यहां घर छोड़ के, दिखला रहे मिजाज । जग जननी मां आइये.... घर-घर...

जय जय जय गणराज प्रभु....

जय जय जय गणराज प्रभु, जय गजबदन गणेश । विघ्न-हरण मंगल करण, हरें हमारे क्लेश।। गिरिजा नंदन प्रिय परम, महादेव के लाल । सोहे गजमुख आपके, तिलक किये हैं भाल ।। तीन भुवन अरू लोक के, एक आप अखिलेश । जय जय जय गणराज प्रभु.... मातु-पिता के आपने, परिक्रमा कर तीन । दिखा दियेे सब देेव को, कितने आप प्र्रवीन । मातुु धरा अरू नभ पिता, सबको दे संदेश  ।। जय जय...

अविचल अविरल है समय

अविचल अविरल है समय, प्रतिपल शाश्वत सत्य । दृष्टा प्रहरी वह सजग, हर सुख-दुख में रत्य ।। पराभाव जाने नही, रचे साक्ष्य इतिहास । जीत हार के द्वंद में, रहे निर्लिप्त खास ।। जड़ चेतन हर जीव में, जिसका है वैतत्य ।। अविचल अविरल है समय... (वैतत्य-विस्तार) चाहे ठहरे सूर्य नभ, चाहे ठहरे श्वास । उथल-पुथल हो सृष्टि में, चाहे होय विनाश ।। इनकी गति चलती सहज, होते...

कैसे हम आजाद हैं...

कैसे हम आजाद हैं, है विचार परतंत्र ।अपने पन की भावना, दिखती नहीं स्वतंत्र ।। भारतीयता कैद में, होकर भी आजाद ।अपनों को हम भूल कर, करते उनको याद ।छुटे नही हैं छूटते, उनके सारेे मंत्र । कैसे हम आजाद हैं.... मुगल आक्रांत को सहे, सहे आंग्ल उपहास ।भूले निज पहचान हम, पढ़ इनके इतिहास ।।चाटुकार इनके हुये, रचे हुये हैं तंत्र । कैसे हम आजाद हैं... निज...

झूमे बच्चे हिन्द के, लिये तिरंगा हाथ

झूमे बच्चे हिन्द के, लिये तिरंगा हाथ । हम भारत के लाल है, करते इसे सलाम । पहले अपना देश है, फिर हिन्दू इस्लाम ।। देश धर्म ही सार है, बाकी सभी अकाथ । झूमे...... यहां वहां देख लो, करते सब यशगान ।। आंच आय ना देष को, करे शपथ सम्मान ।। मातृृभूमि के हेतु हम , अर्पण करते माथ । झूमे...... भारत मां के पूत हम, भारतीय है नाम । मातृभूमि के हेतु ही, करते सारे...

सावन झूला-गीत

रेशम की इक डोर से, बांधे अमुवा डार । सावन झूला झूलती, संग सहेली चार ।। सरर सरर झूला चले, उड़ती आॅचल कोर । अंग अंग में छाय है, पुरवाही चितचोर ।। रोम रोम में है भरे, खुशियां लाख हजार । सावन झूला झूलती, संग सहेली चार ।। नव नवेली बेटियां, फिर आई है गांव । बाबुल का वह द्वार...

ये अंधा कानून है,

ये अंधा कानून है,  कहतें हैं सब लोग । न्यायालय तो ढूंढती, साक्षी करने  न्याय ।  आंच लगे हैं सांच को, हॅसता है अन्याय ।। धनी गुणी तो खेलते, निर्धन रहते भोग । ये.... तुला लिये जो हाथ में, लेती समता तौल ।  आंखों पर पट्टी बंधी, बन समदर्शी कौल ।। कहां यहां पर है दिखे, ऐसा कोई योग । ये... दोषी बाहर घूमते, कैद पड़े...

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