//दोहा गीत//
है मेरी भी कामना, करूँ हाथ दो चार ।
उर पर चढ़ कर शत्रु के, करूँ वार पर वार ।।
लड़े बिना मरना नहीं, फँसकर उनके जाल ।
छद्म रूप में शत्रु बन, चाहे आवे काल ।।
लिखूँ काल के भाल पर, मुझे देश से प्यार ।
है मेरी भी कामना ..........
बुजदिल कायर शत्रु हैं, रचते जो षडयंत्र ।
लिये नहीं हथियार पर, गढ़ते रहते तंत्र ।।
बैरी के उस बाप का, सुनना अब चित्कार ।
है मेरी भी कामना.......
मातृभूमि का मान ही, मेरा निज पहचान ।
मातृभूमि के श्री चरण, करना अर्पण प्राण ।।
बाल न बाका होय कछु, ऐसा करूँ विचार ।
है मेरी भी कामना.....
-रमेशकुमार सिंह चौहान
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