प्रियसी प्रियतम हे प्राण प्रिये, तुमसे जीवन मेरा ।
वाह्य देह को क्या देखूँ मैं, निर्मल मन है तेरा ।।
गंगा जल भी दूषित अब है, पर तू अब भी पावन ।
मेरे कष्टों को धो देती , ज्यों तू पाप नशावन ।।
डगर दुखों की रोक रखी तू, जो छूना चाहे मुझको ।
सुख की तू तो जागृत प्रतिमा, सुख ही मानूँ तुझको ।।
सुख का साथी लोग सभी हैं, तू तो दुख की साथी ।
दुख से भय ना मुझको होवे, चाहे हो ज्यों हाथी ।।
मेरी प्रियतम मेरी पत्नी, वामअँगी कहलाती ।
दोनों तन पर प्राण एक है, सहजन मन को भाती ।।
-रमेश चौहान
वाह्य देह को क्या देखूँ मैं, निर्मल मन है तेरा ।।
गंगा जल भी दूषित अब है, पर तू अब भी पावन ।
मेरे कष्टों को धो देती , ज्यों तू पाप नशावन ।।
डगर दुखों की रोक रखी तू, जो छूना चाहे मुझको ।
सुख की तू तो जागृत प्रतिमा, सुख ही मानूँ तुझको ।।
सुख का साथी लोग सभी हैं, तू तो दुख की साथी ।
दुख से भय ना मुझको होवे, चाहे हो ज्यों हाथी ।।
मेरी प्रियतम मेरी पत्नी, वामअँगी कहलाती ।
दोनों तन पर प्राण एक है, सहजन मन को भाती ।।
-रमेश चौहान
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