/रस/
पढ़न श्रवण या दरश से, मिलते जो आनंद ।
नाम उसी का रस कहे, काव्य मनीषी चंद ।।
/छंद/
यति गति तुक जिस काव्य में, अरु हो मात्रा भार ।
अथवा मात्रा भार हो, बनते छंद विचार ।
/अलंकार/
आभूषण जो काव्य का, अलंकार है नाम ।
वर्ण शब्द अरु अर्थ से, काव्य सजाना काम ।।
-रमेश चौहान
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