काँव-काँव कागा करे, ची.-चीं चहके चिड़िया,
मल्हार छेड़े झिंगुरा, मेघा बरसो झूम के ।
होले-होले पेड़ नाचे, पर पसारे मोरनी,
बेसुध हो मन नाचे, मेघा बरसो झूम के ।।
धरा की धानी आँचल, नदियों की खिली बाँहे
लिख रहीं नवगीत, मेघा बरसो झूम के ।
रज सौंधी सुवासित, जब तन-मन छाये
कली बलखाती गाती, मेघा बरसो झूम के ।।
मल्हार छेड़े झिंगुरा, मेघा बरसो झूम के ।
होले-होले पेड़ नाचे, पर पसारे मोरनी,
बेसुध हो मन नाचे, मेघा बरसो झूम के ।।
धरा की धानी आँचल, नदियों की खिली बाँहे
लिख रहीं नवगीत, मेघा बरसो झूम के ।
रज सौंधी सुवासित, जब तन-मन छाये
कली बलखाती गाती, मेघा बरसो झूम के ।।
0 Comments:
एक टिप्पणी भेजें