वर्षो से परतंत्र है, भारतीय परिवेश ।
मुगलों ने कुचला कभी, देकर भारी क्लेश ।।
देकर भारी क्लेश, कभी आंग्लों ने लूटा ।
देश हुआ आजाद, दमन फिर भी ना छूटा ।।
संस्कृति अरु संस्कार, सुप्त है अपकर्षो से ।
वैचारिक परतंत्र, पड़े हैं हम वर्षो से ।।
-रमेश चौहान
मुगलों ने कुचला कभी, देकर भारी क्लेश ।।
देकर भारी क्लेश, कभी आंग्लों ने लूटा ।
देश हुआ आजाद, दमन फिर भी ना छूटा ।।
संस्कृति अरु संस्कार, सुप्त है अपकर्षो से ।
वैचारिक परतंत्र, पड़े हैं हम वर्षो से ।।
-रमेश चौहान
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