हर रेखा बड़ी होती, हर रेखा होती छोटी,
सापेक्षिक निति यह, समझो जी बात को ।
दूसरों को छेड़े बिन, अपनी रेखा गढ़ लें
उद्यम के स्वेद ले, तोड़ काली रात को।।
खीर में शक्कर चाही, शाक में तो नमक रे
सबका अपना कर्द, अपना ही मोल है ।
दूर के ढोल सुहाने, लगते हों जिसको वो
जाकर जी देखो भला, ढोल मे भी पोल है ।।
सापेक्षिक निति यह, समझो जी बात को ।
दूसरों को छेड़े बिन, अपनी रेखा गढ़ लें
उद्यम के स्वेद ले, तोड़ काली रात को।।
खीर में शक्कर चाही, शाक में तो नमक रे
सबका अपना कर्द, अपना ही मोल है ।
दूर के ढोल सुहाने, लगते हों जिसको वो
जाकर जी देखो भला, ढोल मे भी पोल है ।।
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