एक घाट एक बाट, सिंह-भेड़ साथ-साथ,
रहते थे जैसे पूर्व, रामजी के राज में ।
शोक-रोग राग-द्वेश, खोज-खोज फिरते थे,
मिले ठौर बिन्दु सम, अवध समाज में ।।
दिन फिर फिर जावे,जन-जन साथ आवे
जाति-धर्म भेद टूटे, राम नाम साज में ।
राम भक्त जान सके, और पहचान सके,
राम राम कहलाते, अपने ही काज में ।।
-रमेश चौहान
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