मेरे घर संस्कार का, टूट रहा दीवार ।
छद्म सोच के अस्त्र से, करे बच्चे प्रतिकार ।।
करे बच्चे प्रतिकार, कुपथ का बन सहचारी ।
मौज मस्ती के नाम, बने ना कुछ व्यवहारी।।
हृदय रक्त रंजीत, कुसंस्कारों के घेरे ।
बच्चे समझ न पाय, दर्द जो मन हैं मेरे ।।
-रमेश चौहान
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