मंदिर मेरे गाँव का,
ढोये एक सवाल
पत्थर की यह मूरत पत्थर,
क्यों ईश्वर कहलाये
काले अक्षर जिसने जाना,
ढोंग इसे बतलाये
शंखनाद के शोर से,
होता जिन्हें मलाल
देख रहा है मंदिर कबसे,
कब्र की पूजा होते
लकड़ी का स्तम्भ खड़ा है
उनके मन को धोते
प्रश्न वही अब खो गया,
करके नया कमाल
तेरे-मेरे करने वाले,
तन को एक बताये
मन में एका जो कर न सके
ज्ञानी वह कहलाये
सूक्ष्म बुद्वि तन कर खड़ा,
स्थूल चले है चाल
पूजा तो पूजा होती है,
भिन्न न इसको जानों
मन की बाते मन ही जाने,
आस्था इसको मानों
समझ सके ना बात जो,
नाहक करे बवाल
-रमेशकुमार सिंह चौहान
ढोये एक सवाल
पत्थर की यह मूरत पत्थर,
क्यों ईश्वर कहलाये
काले अक्षर जिसने जाना,
ढोंग इसे बतलाये
शंखनाद के शोर से,
होता जिन्हें मलाल
देख रहा है मंदिर कबसे,
कब्र की पूजा होते
लकड़ी का स्तम्भ खड़ा है
उनके मन को धोते
प्रश्न वही अब खो गया,
करके नया कमाल
तेरे-मेरे करने वाले,
तन को एक बताये
मन में एका जो कर न सके
ज्ञानी वह कहलाये
सूक्ष्म बुद्वि तन कर खड़ा,
स्थूल चले है चाल
पूजा तो पूजा होती है,
भिन्न न इसको जानों
मन की बाते मन ही जाने,
आस्था इसको मानों
समझ सके ना बात जो,
नाहक करे बवाल
-रमेशकुमार सिंह चौहान
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