रात चाहे शरद का अमावस हो, भोर का पथ रोक नहीं सकता
लक्ष्य चाहे झुरमुटों में गुम हो, अर्जुन दृष्टि में धूल झोक नहीं सकता
ढूंढ़ने वाले बिखरे रेत क्या ढेर से भी सुई ढूंढ निकाल लेते हैं
न करने के लाख बहाने जिसने सीखे, उस पत्थर पर कोई सिर ठोक नहीं सकता
-रमेश चौहान
0 Comments:
एक टिप्पणी भेजें