.चारू चरण
चारण बनकर
श्रृंगार रस
छेड़ती पद चाप
नुुपूर बोल
वह लाजवंती है
संदेश देती
पैर की लाली
पथ चिन्ह गढ़ती
उन्मुक्त ध्वनि
कमरबंध बोले
लचके होले
होले सुघ्घड़ चाल
रति लजावे
चुड़ी कंगन हाथ,
हथेली लाली
मेहंदी मुखरित
स्वर्ण माणिक
ग्रीवा करे चुम्बन
धड़की छाती
झुमती बाला कान
उभरी लट
मांगमोती ललाट
भौहे मध्य टिकली
झपकती पलके
नथुली नाक
हंसी उभरे गाल
ओष्ठ गुलाबी
चंचल चितवन
गोरा बदन
श्वेत निर्मल मन
मेरे अंतस
छेड़ती है रागनी
प्राण सम सजनी ।।
चारण बनकर
श्रृंगार रस
छेड़ती पद चाप
नुुपूर बोल
वह लाजवंती है
संदेश देती
पैर की लाली
पथ चिन्ह गढ़ती
उन्मुक्त ध्वनि
कमरबंध बोले
लचके होले
होले सुघ्घड़ चाल
रति लजावे
चुड़ी कंगन हाथ,
हथेली लाली
मेहंदी मुखरित
स्वर्ण माणिक
ग्रीवा करे चुम्बन
धड़की छाती
झुमती बाला कान
उभरी लट
मांगमोती ललाट
भौहे मध्य टिकली
झपकती पलके
नथुली नाक
हंसी उभरे गाल
ओष्ठ गुलाबी
चंचल चितवन
गोरा बदन
श्वेत निर्मल मन
मेरे अंतस
छेड़ती है रागनी
प्राण सम सजनी ।।





0 Comments:
एक टिप्पणी भेजें