कैसे पढ़ा-लिखा खुद को बतलाऊँ(चौपाई छंद)पढ़-लिख कर मैंने क्या पाया ।
डिग्री ले खुद को भरमाया ।।काम-धाम मुझको ना आया ।केवल दर-दर भटका खाया ।। फेल हुये थे जो सहपाठी ।
आज धनिक हैं धन की थाती ।
सेठ बने हैं बने चहेता ।
अनपढ़ भी है देखो नेता ।।श्रम करने जिसको है आता ।
दुनिया केवल उसको भाता ।।
बचपन से मैं बस्ता ढोया ।
काम हुुुुनर मैं हाथ न बोया ।।ढ़ूढ़...
अतुकांत कविता -मेरे अंतस में
आज अचानक मैंने अपने अंत: पटल में झांक बैठादेखकर चौक गयाकाले-काले वह भी भयावह डरावनेदुर्गुण फूफकार रहे थेमैं खुद को एक सामाजिक प्राणी समझता थाकिंतु यहां मैंने पायासमाज से मुझे कोई सरोकार ही नहींमैं परिवार का चाटुकार केवल बीवी बच्चे में भुले बैठा मां बाप को भी साथ नहीं दे पारहाबीवी बच्चों से प्यारनहीं नहीं यह तो केवल स्वार्थ दिख...
दीप पर्व की शुभकामनाएं

धनतेरस (कुण्डलियां छंद)
आयुष प्रभु धनवंतरी, हमें दीजिए स्वास्थ्य ।आज जन्मदिन आपका, दिवस परम परमार्थ ।।दिवस परम परमार्थ, पर्व यह धनतेरस का ।असली धन स्वास्थ्य, दीजिए वर सेहत का ।।धन से बड़ा "रमेश", स्वास्थ्य पावन पीयुष ।आयुर्वेद का पर्व, आज बांटे हैं आयुष...
चिंतन के दोहे
शांत हुई ज्योति घट में, रहा न दीपक नाम ।अमर तत्व निज पथ चला, अमर तत्व से काम ।।धर्म कर्म धर्म, कर्म का सार है, कर्म धर्म का सार ।करें मृत्यु पर्यन्त जग, धर्म-कर्म से प्यार ।।दुनिया भर के ज्ञान से, मिलें नहीं संस्कार ।अपने भीतर से जगे, मानवता उपकार ।।डाली वह जिस पेड़ की, उससे उसकी बैर ।लहरायेगी कब तलक, कबतक उसकी खैर ।जाति मिटाने देश में, अजब विरोधाभास...
हम मजदूर
रूपमाला छंद
राम जाने राम जाने, कौन लाया रोग ।
हो गया है बंद दुनिया, कष्ट भोगे लोग ।।
चीन दोषी चीन दोषी, राग छेडे ट्रंप ।
तेज गति से तेज दौड़े, ले करोना जंप ।।
लाॅक डाउन लाॅक डाउन, बंद चारों खंद ।
काम धंधा बंद है जी, चार पैसा बंद ।।
पेट मांगे भात दे दो, आज हम मजबूर ।
हाथ मांगे काम दे दो, लोग हम मजदूर ।...
दम्भ चीन का आज बढ़ा है (आल्हा छंद)
आल्हा छंद
जीत सत्य की होती हरदम, हर पल सत्य हमारे साथ ।
मात दिए धनबल भुजबल को, इष्ट हमारे हैं रघुनाथ ।।
छप्पन इंची छाती अपनी, मनबल सागर सम बलखाय।
देश प्रेम संकल्प हमारा, काल हमें क्या तनिक डिगाय ।
रावण जैसे चीन हुंकारें, रामा दल हम रखे सजाय ।
चीन पाक के चाल सभी अब, धरती रज में देब मिलाय ।
दम्भ चीन का आज बढ़ा है, दंभ कुचलकर...
रस छंद अलंकार
/रस/पढ़न श्रवण या दरश से, मिलते जो आनंद ।नाम उसी का रस कहे, काव्य मनीषी चंद ।।/छंद/यति गति तुक जिस काव्य में, अरु हो मात्रा भार ।अथवा मात्रा भार हो, बनते छंद विचार ।/अलंकार/आभूषण जो काव्य का, अलंकार है नाम ।वर्ण शब्द अरु अर्थ से, काव्य सजाना काम ।।-रमेश चौ...
दोहे
पेड़ मूल को छोड़कर , जीवित रह न पाय ।
जुड़कर अपनी मूल से, लहर-लहर लहराय ।।
अमरबेल जो चूसता, अन्य पेड़ का रक्त . ।
जितना चाहे फैल ले, पर हो सके न सख्त ।।
बड़े हुए नाखून को, ज्यों काटे हो आप ।
बुरी सोच भी काटिये, जो वैचारिक ताप ।।
रूप सजाने आप ज्यों, करते लाख उपाय ।
सोच सजाने भी करें, कछुक जतन मन भाय ।...
चलो नई शुरुआत करें
चलो नई शुरुआत करें हम । गम को तज मन खुशी भरें हम
चलिए बाधा दौड़ लगाएं । हर बाधा को धूल चटाएं
संघर्ष विहिन जीवन कैसा । पथ पर पाहन जड़वत जैसा
छल-छल कल-कल नदियां बहती । क्या वह कोई बाधा ना सहती
ज्ञानवान हो बुद्धिमान हो । हे मानव तुम तो सुजान हो
घोर निशा में दीप जलाए । तुमने ही तम घोर भगाए
जीवन बाधा से क्यों घबराएं । समय बिते पर ...
दोहे- सुबह सवेरे जागिए
सुबह सवेरे जागिए, जब जागे हैं भोर ।
समय अमृतवेला मानिए, जिसके लाभ न थोर ।।
जब पुरवाही बह रही, शीतल मंद सुगंध ।
निश्चित ही अनमोल है, रहिए ना मतिमंद ।।
दिनकर की पहली किरण, रखता तुझे निरोग ।
सूर्य दरश तो कीजिए, तज कर बिस्तर भोग ।।
दीर्घ आयु यह बांटता, काया रखे निरोग ।
जागो जागो मित्रवर, तज कर मन की छोभ ।...
चौहान के दोहे
समय बड़ा बलवान है, भाग्य समय का खेल ।बुरे समय में धैर्य से, होवे सुख से मेल ।।दुनिया प्यासी प्रेम का, प्रेम सुधा तू बाॅट ।थोथा थोथा फेक दे, ठोस बीज ले छाॅट ।।कर्म बड़ा है भाग्य से, करें कर्म का मोल ।ढोलक बोले थाप से, बोल सके न खोल...
प्रियसी प्रियतम हे प्राण प्रिये
प्रियसी प्रियतम हे प्राण प्रिये, तुमसे जीवन मेरा ।
वाह्य देह को क्या देखूँ मैं, निर्मल मन है तेरा ।।
गंगा जल भी दूषित अब है, पर तू अब भी पावन ।
मेरे कष्टों को धो देती , ज्यों तू पाप नशावन ।।
डगर दुखों की रोक रखी तू, जो छूना चाहे मुझको ।
सुख की तू तो जागृत प्रतिमा, सुख ही मानूँ तुझको ।।
सुख का साथी लोग सभी हैं, तू तो दुख की साथी ।
दुख से भय ना मुझको...
जीवन एक संघर्ष है -"लड़ना मुझको यार' (सार छंद)
स्मरण सदन का खोल झरोखा, देखा ॴॅख प्रसार ।
क्या कुछ मैंने खोया पाया, करता रहा विचार ।।
बरखा सर्दी बसंत पतझड़, मौसम का सौगात ।
दिन का चढ़ना और उतरना, सुबह शाम अरु रात ।।
कई बार बदली घिर आया, छुपे न मन का ओज ।
घूप अंधियारी में भी वह, किया खुशी का खोज ।।
क्या खोना है क्या पाना है, सुख दुख का ये मेल ।
कभी भाग्य पर दांव कर्म का, रहा खेलता...
पहेलियां -बूझों तो जानें
1-
पीछा करता कौन वह, जब हों आप प्रकाश ।
तम से जो भय खात है, आय न तुहरे पास ।।
2-
श्वेत बदन अरु शंकु सा, हरे रंग की पूंछ ।
सेहत रक्षक शाक है, सखा पहेली बूझ ।
3-
काष्ठ नहीं पर पेड़ हूँ, बूझो मेरा नाम ।
मेरे फल पत्ते सभी, आते पूजन काम ।।
4-
बाहर से मैं सख्त हूँ, अंतः मुलायम खोल ।
फल मैं ऊँचे पेड़ का, खोलो मेरी पोल ।।
5-
कान पकड़ कर...
प्रेम और संबंध में पहले आया कौन
/तुकबंदी/
प्रेम और संबंध में पहले आया कौन ।
जिसने भी सुना यह प्रश्न साध रखा मौन ।।
कहने लगे मुर्गी पहले आया कि अंडा ।
कुछ इसी प्रकार का है यह तुम्हारा फंडा ।।
नहीं नहीं आसान है ।
कहां तुम्हारा ध्यान है ।।
अच्छा चलो एक दूसरा प्रश्न पूछते हैं ।
आओ मिलकर इसी पर जुझते हैं ।।
तुम्हारी मां ने तुझे बेटा मानकर पहले प्यार किया ।
या...
राधिका छंद-"जल स्रोत बचाओ, पानी बचाओ"
-राधिका छंद-
परिभाषा-
तेरह पीछे नौ भार, राधिका आवे ।
चरण अंत दो गुरू भार, राधिका भावे ।।
तेरह मात्रा का अंत, त्रिकल ही राखें ।
छंद राधिका का नियम, छंदविद भाखे ।।
उदाहरण-"जल स्रोत बचाओ, पानी बचाओ"
पानी जीवन आधार, जिंदगी पानी ।
पानी से सारी सृष्टि, सृष्टि का प्राणी ।।
पानी बिन जग बेकार, जीव ना बाचे ।
सब कोई ही जानते, बात है साचे ।।
शोर मचाते हर कोय,...
मनहरण घनाक्षरी किसे कहते हैं जानिए मनहरण घनाक्षरी में
वर्ण-छंद घनाक्षरी, गढ़न हरणमननियम-धियम आप, धैर्य धर जानिए ।।आठ-आठ आठ-सात, चार बार वर्ण रखचार बार यति कर, चार पद तानिए ।।गति यति लय भर, चरणांत गुरु धरसाधि-साधि शब्द-वर्ण, नेम यही मानिए ।सम-सम सम-वर्ण, विषम-विषम सम, चरण-चरण सब, क्रम यही पालिए...
घनाक्षरी की परिभाषा घनाक्षरी में (प्रकार सहित)
रखिये चरण चार, चार बार यति धर
तीन आठ हर बार, चौथे सात आठ नौ ।
आठ-आठ आठ-सात, आठ-आठ आठ-आठ
आठ-आठ आठ-नव, वर्ण भार गिन लौ ।।
आठ-सात अंत गुरु, ‘मन’ ‘जन’ ‘कलाधर’,
अंत छोड़ सभी लघु, जलहरण कहि दौ ।
गुरु लघु क्रमवार, नाम रखे कलाधर
नेम कुछु न विशेष, मनहरण गढ़ भौ ।।
आठ-आठ आठ-आठ, ‘रूप‘ रखे अंत लघु
अंत दुई लघु रख, कहिये जलहरण ।
सभी वर्ण लघु भर, नाम ‘डमरू’ तौ धर
आठ-आठ...
प्रभाती दोहे

चीं-चीं चिड़िया चहकती, मुर्गा देता बाँग ।
शीतल पवन सुगंध बन, महकाती सर्वांग ।।
पुष्पकली पुष्पित हुई, निज पँखुडियाँ प्रसार ।
उदयाचल में रवि उदित, करता प्राण संचार ।।
जाग उठे हैं नींद से, सकल सृष्टि संसार ।
जागो जागो हे मनुज, बनों नहीं लाचार ।।
बाल समय यह दिवस...
मेरा जीवन
मेरा जीवन एक धरोहर । कभी सुर्ख तो कभी मनोहर मेरा जीवन है बच्चों का । स्वप्न स्नेहिल प्रिय सच्चों कागढ़ना है मुझको जीवन पथ । दौड़ सके जिसमें उनका रथदिन का सूरज दीप निशा का । प्रहरी बनाना सभी दिशा का संस्कारों की ज्योति जलानी । बचा सके जो मेरा पानी देश बड़ा है पहले जाने । बड़ा स्वर्ग से इसको मानेजिस धरती पर देह धरा है । वही धरा तो स्वर्ण...
कोरोना महामारी पर दोहे
देख महामारी कहर, सारी दुनिया दंग ।
कहना सबका एक है, रहना घर में बंद ।
समय परिस्थिति देख कर, करता है जो काम ।
अजर अमर इतिहास में, अंकित करता नाम ।
आंधी अंधा होत है, कर सके न पहचान ।
कौन दीन अरु है धनी, कौन निरिह बलवान ।।
-रमेश चौह...
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मानवता हो पंगु जब, करे कौन आचार । नैतिकता हो सुप्त जब, जागे भ्रष्टाचार ।। प्रथा कमीशन घूस हैे, छूट करे सरकार । नैतिकता के पाठ का,...
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जिसे भाता ना हो, छल कपट देखो जगत में । वही धोखा देते, खुद फिर रहे हैं फकत में ।। कभी तो आयेगा, तल पर परिंदा गगन से । उड़े चाहे ऊॅचे, मन...
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चरण पखारे शिष्य के, शाला में गुरू आज । शिष्य बने भगवान जब, गुरूजन के क्या काज ।। गुरूजन के क्या काज, स्कूल में भोजन पकते । पढ़ना-लिखना छ...
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गणेश वंदना दोहा - जो गणपति पूजन करे, ले श्रद्धा विश्वास । सकल आस पूरन करे, भक्तों के गणराज ।। चौपाई हे गौरा गौरी के लाला । हे ल...
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योग दिवस के राह से, खुला विश्व का द्वार । भारत गुरू था विश्व का, अब पुनः ले सम्हार ।। गौरव की यह बात है, गर्व करे हर कोय । अपने ही इस...
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लोकतंत्र के राज में, जनता ही भगवान । पाॅंच साल तक मौन रह, देते जो फरमान । द्वार द्वार नेता फिरे, जोड़े दोनो हाथ । दास कहे खुद को सदा, म...
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25.10.16 एक मंत्र है तंत्र का, खटमल बनकर चूस। झोली बोरी छोड़कर, बोरा भरकर ठूस ।। दंग हुआ यह देख कर, रंगे उनके हाथ । मूक बधिर बन आप ही, ...
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प्रेम का मै हू पुजारी, प्रेम मेरा आन है । प्रेम का भूखा खुदा भी, प्रेम ही भगवान है ।। वासना से तो परे यह, शुद्ध पावन गंग है । जीव में जी...
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चीं-चीं चिड़िया चहकती, मुर्गा देता बाँग । शीतल पवन सुगंध बन, महकाती सर्वांग ।। पुष्पकली पुष्पित हुई, निज पँखुडियाँ प्रसार । उद...
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मदिरापान कैसा है, इस देश समाज में । अमरबेल सा मानो, फैला जो हर साख में ।। पीने के सौ बहाने हैं, खुशी व गम साथ में । जड़ है नाश का दार...
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