सोच रहा हूँ क्या लिखूँ, लिये कलम मैं हाथ ।
कथ्य कथानक शिल्प अरू, नहीं विषय का साथ ।।
नहीं विषय का साथ, भावहिन मुझको लगते ।
उमड़-घुमड़ कर भाव, मेघ जलहिन सा ठगते ।।
दशा देश का देख, कलम को नोच रहा हूँ ।
कहाँ मढ़ू मैं दोष, कलम ले सोच रहा हूँ ।।
आगे पढ़े.....
कहते पिता रमेश
दुनियाभर की हर खुशी, तुझे मिले लोकेश ।
सुत ! सपनों का आस हो, कहते पिता रमेश ।।
कहते पिता रमेश, आदमी पहले बनना ।
धैर्य शौर्य रख साथ, संकटों पर तुम तनना ।।
देश और परिवार, प्रेम पावन अंतस भर ।
करके काम विशेष, नाम करना दुनियाभर ...
कौन चले राम संग
सुन-सुन इसे-उसे, इहाँ-वहाँ जहाँ-तहाँ,इधर-उधर देख, मनुवा निराश है ।आस्था में आस्था का, राजनीति घालमेल,आस्था ही आस्था से, आज तो हताश है ।।वर्ष-वर्ष सालों-साल, राम वनवास हेतुफिर से इस देश में, मंथरा तैयार है ।कौन चले राम संग, राम को ही मानकर,अवध के प्रजा आज, मन से बीमार है ।।
-रमेशकुमार सिंह चौह...
राम जैसा राम जग में, दूसरा ना और
राम जैसा राम जग में, दूसरा ना और ।
देश भारत देश जैसा, दूसरा ना ठौर ।।
मानते तो है जहाँ पर, राम है अवधेश ।
किन्तु खुलकर बोलते ना, वाह रे ये देश ।।
...
लाल हुये है नंद को
लाल हुये है नंद को, हुये नंद को लाल ।
बाजा बाजे गह गहे, नभ में उड़े गुलाल ।।
ब्रज गोकुल में आज तो, उमंग करे हिलोर ।
गली गली हर द्वार में, मचा हुआ है शोर ।।
ग्वाल संग ग्वालन हर्षित, मिला रही हैं ताल ।। लाल हुये....
गोद यशोदा हॅस रहा, गोकुल राज दुलार ।
निरख निरख मां शारदे, गाती जाज मलार ।।
नाच रहे सब देवता, कह कर जय गोपाल ।।लाल हुये....
जगत पिता...
जय-जय जय गणपति
जय-जय जय गणपति, जय-जय जगपति, प्रथम पूज्य भगवंता ।
हे विद्यादाता, भाग्य विधाता, रिद्धि-सिद्धि सुखकंता।।
जय-जय गणनायक, जय वरदायक, चरण गहे सुर संता ।
भक्तन हितकारी, दण्डकधारी, , हे मद-मत्सर हंता ।।
है गज मुख पावन, शोक नशावन, दिव्य रूप इकदंता ।
है मूषक वाहन, परम सुहावन, सकल सृष्टि उपगंता ।।
हे गौरी नंदन, तुझको वंदन, टेर सुनो अब मोरी ।
जाऊँ बलिहारी, हे...
छोड़ दक्षता आज, चाहिये शिक्षा हमको ??
शिक्षा हमको चाहिये, इसमें ना मतभेद ।शिक्षा के उद्देश्य से, मुझको होता खेद ।मुझको होता खेद, देख कर डिग्रीधारी ।कागज में उत्तीर्ण, ,दक्षता पीड़ाकारी ।।सुनलों कहे "रमेश", नौकरी चाही सबको ।छोड़ दक्षता आज, चाहिये शिक्षा हमको ...
कुछ दोहे चिंतन के
तीन तरह के लोग हैं, एक कमाता दाम ।
एक चाहता दाम है, एक कमाता नाम ।
जला पेट के आग में, कविता का हर शब्द ।
रोजी रोटी के हेतु, कलम हुई नि:शब्द ।
जिसकी जैसी सोच हो, करते रहते काम ।
हार-जीत के बीच में, रहे सोच का नाम ।।
सुबह बचत यदि कर लिये, सुखद रहेगी शाम ।
खुद की खुद ही कर मदद, तभी चलेगा काम ।
मन तन से तो है बड़ा, मन को रखिये ठीक ।
छोड़ निराशा कर्म...
टाॅपर बच्चे
टाॅपर बच्चे स्कूल के, नौकर हैं अधिकांश ।
पहले पुस्तक दास थे, अब मालिक के दास।।
अब मालिक के दास, शान शौकत दिखलाता ।
खुद का क्या पहचान, रौब अपना बतलाता ।।
मालिक बना रमेश, लिये शिक्षा जो सच्चे ।
सफल दिखे अधिकांश, नहीं है टाॅपर बच्चे ।।
-रमेश चौह...
आजादी रण शेष अभी है
आजादी रण शेष अभी है, देखो नयन उघारे ।
वैचारिक परतंत्र अभी हैं, इस पर कौन विचारे ।।
अंग्रेजी का हंटर अब तक, बारबार फुँफकारे ।
अपनी भाषा दबी हुई है, इसको कौन उबारे ।।
काँट-छाँट कर इस धरती को, दिये हमें आजादी ।
छद्म धर्मनिरपेक्ष हाथ रख, किये मात्र बर्बादी ।।
एक देश में एक रहें हम, एक धर्म अरु भाषा ।
राष्ट्रवाद का धर्म गढ़े अब, राष्ट्रवाद की भाषा ।।
धर्म...
आजादी रण शेष है
आजादी रण शेष है, हैं हम अभी गुलाम ।
आंग्ल मुगल के सोच से, करे प्रशासन काम ।।
मुगलों की भाषा लिखे, पटवारी तहसील ।
आंग्लों की भाषा रटे, अफसर सब तफसील ।।
लोकतंत्र में देश का, अपना क्या है काम ।
भाषा अरू ये कायदे, सभी शत्रु के नाम ।।
ना अपनी भाषा लिये, ना ही अपनी सोच ।
आक्रांताओं के जुठन, रखे यथा आलोच ।।
लाओं क्रांति विचार में, बनकर तुम फौलाद...
गुरु (दोहे)
पाप रूप कलिकाल में, छद्म वेश में लोग ।
गुरुजी बन कर लोग कुछ, बांट रहे हैं रोग ।।
चरित्र जिसके दीप्त हो, ज्यों तारों में चांद ।
गुरुवर उसको जान कर, बैठे उनके मांद ।।
मन का तम अज्ञान है, ज्योति रूप है ज्ञान ।
तम मिटते गुरु ज्योति से, कहते सकल जहान ।।
भूल भुलैया है जगत, भटके लोग मतंग ।
पथ केवल वह पात है, गुरुवर जिनके संग ।।
जीवन के हर राह पर, आते रहते...
जय भारती जय भारती
जय भारती जय भारती, हम तो उतारें आरती ।
हम लाल तेरे गोद के, तू हमारी माँ भारती ।।
तू वत्सला सबसे बड़ी, वात्सल्य ही तू बाँटती ।
अति सौम्य अति माधुर्य छवि, हर पीर को है छाँटती ।।
...
केवल ईश्वर एक है
कोटि कोटि है देवता, कोटि कोटि है संत ।
केवल ईश्वर एक है, जिसका आदि न अंत ।।
पंथ प्रदर्शक गुरु सभी, कोई ईश्वर तुल्य ।
फिर भी ईश्वर भिन्न है, भिन्न भिन्न है मूल्य ।।
आँख मूंद कर बैठ जा, नही दिखेगा दीप ।
अर्थ नही इसका कभी, बूझ गया है दीप ।।
बालक एक अबोध जब, नही जानता आग ।
क्या वह इससे पालता, द्वेष या अनुराग ।।
मीठे के हर स्वाद में, निराकार...
प्रकृति और विज्ञान में, पहले आया कौन
प्रकृति और विज्ञान में, पहले आया कौन ।
खोज विज्ञान कर रहा, सत्य प्रकृति है मौन ।।
समय-समय पर रूप को, बदल लेत विज्ञान ।
कणिका तरंग जान कर, मिला द्वैत का ज्ञान ।।
सभी खोज का क्रम है, अटल नही है एक ।
पहले रवि था घूमता, अचर पिण्ड़ अब नेक ।।
नौ ग्रह पहले मान कर, कहते हैं अब आठ ।
रंग बदल गिरगिट सदृश, दिखा रहे हैं ठाठ ।।
जीव जन्म लेते यथा, आते...
दो मुक्तक
फूलों की महक घड़ी दो घड़ी हीओठों की चहक घड़ी दो घड़ी हीअक्षय रहता श्वेद, सूख कर भीश्रम में तू दहक घड़ी दो घड़ी ही
किसी को नाम से वास्ता हैकिसी को काम से वास्ता हैयहां मैं मस्त हूँ मस्ती मेंमुझे तो जाम से वास्ता ...
मूल्य नीति, हमें समझ ना आय
टेक्स हटाओं तेल से, सस्ता कर दो दाम ।जोड़ो टेक्स शराब पर, चले बराबर काम ।।
अच्छे दिन के स्वप्न को, ढूंढ रहे हैं लोग ।बढ़े महंगाई कठिन, जैसे कैंसर रोग ।।
कभी व्यपारी आंग्ल के, लूट लिये थे देश ।आज व्यपारी देश के, बांट रहे हैं क्लेश ।।
तने व्यपारी आन पर, विवश दिखे सरकार ।कल का हो या आज का, सब दल है लाचार ।।
मूल्य नीति व्यवसाय की, हमें समझ ना आय ।दस...
मदिरा पीना क्या पीना है
मदिरा पीना भी क्या पीना है
ऐसा जीना भी क्या जीना है
पीना है तो दुख पीकर देखो
फिर कहना चौड़ा यह सीना ...
माँ
माँ, माँ ही रहती सदा, पूत रहे ना पूत ।
नन्हे बालक जब बढ़े, माँ को समझे छूत ।।
माँ को समझे छूत, जवानी ज्यों-ज्यों आये ।
प्रेम-प्यार के नाम, प्यार माँ का बिसराये ।।
माने बात ‘रमेश‘, पत्नि जो जो अब कहती ।
बचपन जैसे कहाँ, आज माँ, माँ ही रहती ।।
...
ऐसी शिक्षा नीति
हमको तो अब चाहिये, ऐसी शिक्षा नीति ।राष्ट्र प्रेम संस्कार का, जो समझे हर रीति ।।जो समझे हर रीति, आत्म बल कैसे देते ।कैसे शिक्षित लोग, सफल जीवन कर लेते ।शिक्षा का आधार, हरे जीवन के गम को ।कागज लिखे प्रमाण, चाहिये ना अब हमको ...
मन में एक सवाल है
मन में एक सवाल है, उत्तर की दरकार ।आखिर कब से देश में, पनपा भ्रष्टाचार ।।पनपा भ्रष्टाचार, किये नेता अधिकारी ।एक अँगूठा छाप, दिखे क्या भ्रष्टाचारी ।।शिक्षित लोग "रमेश", इसे फैलाये जन में ।कैसी शिक्षा नीति, सोच कर देखें मन में ...
शिक्षा में संस्कार हो
शिक्षा में संस्कार हो, कहते हैं सब लोग ।शिक्षा में व्यवहार का, निश्चित हो संजोग ।निश्चित हो संजोग, समझ जीवन जीने का ।सहन शक्ति हो खास, कष्ट प्याला पीने का ।पर दिखता है भिन्न, स्कूल के इस दीक्षा में ।टूट रहा परिवार, आज के इस शिक्षा में ...
कैसे कह दें
कैसे कह दें झूठ में, हमें न तुमसे प्यार ।
मन अहलादित है मगर, करते कुछ तकरार ।।
करते कुछ तकरार प्यार में, खुद को अजमाते ।
कितना गहरा, हृदय समुन्दर, गोता खाते ।।
ढूंढ रहा हूँ, माणिक मोती, यूँ ही ऐसे ।
मिला नही कुछ, झूठा बनने, कह दें कैसे ...
मैं और मजदूर
//मैं और मजदूर//
मैं एक अदना-सा
प्रायवेट स्कूल का टिचर
और वह
श्रम साधक मजदूर ।
मैं दस बजे से पांच बजे तक
चारदीवार में कैद रहता
स्कूल जाने के पूर्व
विषय की तैयारी
स्कूल के बाद पालक संपर्क
और वह
नौ बजे से दो बजे तक
श्रम की पूजा करता
इसके पहले और बाद
दायित्व से मुक्त ।
मेरे ही स्कूल में
उनके बच्चे पढ़ते हैं
जिनका मासिक शुल्क
महिने के महिना
अपडेट रहता...
कल और आज
//कल और आज//
कल जब मैं स्कूल में पढ़ता था,
मेरे साथ पढ़ती थी केवल एक लड़की
आज मैं स्कूल में पढ़ाते हुये पाता हूँ
कक्षा में
दस छात्र और बीस छात्रा ।
कल जब मैं शिक्षक का दायित्व सम्हाला ही था
स्कूल में सांस्कृतिक कार्यक्रम कराने हेतु
एक छात्रा को सहमत कराने में
पसीना आ जाता था
और आज एक छात्र को तैयार करने में
पसीना क्या खून जलाना पड़ रहा है ।
कल जब मेरा...
भारत दण्ड़ विधान
भारत दण्ड़ विधान पर, कितनों को विश्वास ।
हाथ हृदय पर राखिये, फिर बोलें उच्चास ।
फिर बोलें उच्चास, फँसे हैं तगड़ा-तगड़ा ।
सच्चा-झूठा दोष, जहां तोड़े हैं रगड़ा ।।
कई कई निर्दोष, भोग भोगे हैं गारत ।
अपराधी कुछ खास, मुक्त घूमे हैं भारत ...
बाधक
बाधक है विकास डगर, धर्म कर्म का दास ।
धर्म कर्म के राह पर, बाधक बना विकास ।
बाधक बना विकास, अंधविश्वासी कहकर ।
बाधित हुआ विकास, ढोंग-धतुरा को सहकर ।।
भौतिकता के फेर, आज दिखते हैं साधक ।
इसिलिये तो आज, धर्म को कहते बाधक ।।
-रमेश चौह...
हां हां फांसी होना ही चाहिए
आज सुबह सुबह
अखबार की सुर्खियां देखकर
मेरे दादाजी
क्रोध से लाल होकर
अट्ठास करने लगे
बलात्कारियों को फांसी
हां हां बलात्कारियों को फांसी
होना ही चाहिए
केवल मासूमों के बलात्कारियों को ही क्यों
सभी बलात्कारियों को फांसी होना चाहिए
हां हां फांसी होना चाहिए
झूठे आरोप लगाने वाले को
जो दुश्मनी भांजने के लिए
किसी पर भी बलात्कार का...
आखिर क्यों ??
देर है अंधेर नहीं
जन्म से अब तक
सुनते आ रहे हैं
एक प्रश्न
छाती तान कर खड़ा है
न्याय में देरी होना क्या न्याय हैं ?
एक प्रश्न खड़ा है
आरोपियों को दोषियों की तरह
सजा क्यों दी जाती है ?
क्या सभी आरोपी दोषी सिद्ध होते है ?
यदि हां तो
वर्षों तक कोर्ट का चक्कर क्यों ?
यदि नहीं तो
आरोपी के अनमोल वर्ष जो जेल में बीते,
दुख अपमान कष्ट में बीते,
उन...
तीन तरह के लोग
होते सकल जहान में, तीन तरह के लोग ।
एक समय को भूल कर, भोग रहे हैं भोग ।।
भोग रहे हैं भोग, जगत में असफल होकर ।
कोस रहें हैं भाग्य, रात दिन केवल सो कर ।।
एक सफल इंसान, एक पल ना जो खोते ।
कुछ ही लोग महान, समय से आगे होते ।
...
कुछ दोहा
सहन करें हम कब तलक, आतंकी बकवास ।
नष्ट मूल से कीजिये, आये सबको रास ।।
राम दूत हनुमान को, बारम्बार प्रणाम ।
जिसको केवल प्रिय लगे, राम-राम का नाम ।
अर्पण है हनुमान प्रभु, राम-राम का नाम ।
संकट मोचन आप हो, सफल करे हर काम।।
फसी हुई है जाल में, हिन्दी भाषा आज ।
अॅग्रेजी में रौब है, हिन्दी में है लाज ।।
लोकतंत्र के तंत्र सब, अंग्रेजी के दास...
कुछ दोहे
एक पहेली है जगत, जीवन भर तू बूझ ।सोच सकारात्मक लिये, तुम्हे दिखाना सूझ ।।
अपनी भाषा में लिखो, अपने मन की बात ।हिंदी से ही हिंद है, जिसमें प्रेम समात ।।
गद्दारों की गद्दारी से , बैरी है मुस्काए ।गद्दारों को मार गिराओ , बैरी खुद मर जाए ।।
राधा-माधव प्रेम का, प्रतिक हमारे देश ।फिर भी दिखते आज क्यों, विकृत प्रेम का वेश ।।
नहीं चाहिये प्रेम...
आस्था
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे का
संत फकीर गुरु
पैगंबर ईश्वर का
अस्तित्व है
केवल मेरी मान्यता से
जिससे जन्मी है
मेरी आस्था ।
मेरी आस्था
किसी अन्य की आस्था से
कमतर नहीं है
न हीं उनकी आस्था
मेरी आस्था से कमतर है
फिर भी लोग क्यों
दूसरों की आस्था पर चोट पहुंचाकर
खुद को बुद्धिजीवी कहते हैं ।
मुझे अंधविश्वासी कहने वाले खुद
पर झांक कर देखें
...
हर सवाल का जवाब एक सवाल
हर सवाल के जवाब से
पैदा होता है
एक नया सवाल
जिसका जवाब
पैदा करता है
पुन:
एक नया सवाल
सवालों के जवाबों का
चल पड़ता है
लक्ष्यहीन भटकाव
इसमें ठहराव तब आता है
जब सवाल का जवाब
एक सवाल ही हो
क्योंकि
हर सवाल का जवाब
केवल
एक सवाल होता है...
जीने की कला
जग में जीने की कला, जग से लेंवे सीख ।
जीवन जीने की कला, मिले न मांगे भीख ।।
मिले न मांगे भीख, सफलता की वह कुंजी ।
व्यक्ति वही है सफल, स्वेद श्रम जिनकी पूंजी ।।
चलते रहो "रमेश", रक्त बहते ज्यो रग में ।
चलने का यह काम, नाम है जीवन जग में ...
वैभवशाली भारत होवे
हे मातृभूमि ममता रूपा, प्रतिपल वंदन तुझको ।
सुखमय लालन-पालन करतीं, गोद बिठाकर मुझको ।
मंगलदात्री पुण्यभूमि माँ, तन-मन अर्पण तुझको ।
तेरे ही हित काज करूँ मैं, इतना बल दे मुझको ।।
हे सर्वशक्तिशाली भगवन, कोटि नमन है तुझको ।
मातृभूमि की सेवा करने, बुद्धि शक्ति दे मुझको ।।
शक्ति दीजिये इतनी भगवन, दुनिया लोहा माने ।
ज्ञान-बुद्धि जन मन में भर दें, दुनिया...
हर संकटों से जुझने का संकल्प दें ।
हे विधाता नही बदनला मुझे तेरा विधान,
हर दुःख- सुख में मेरा कर दे कल्याण ।
चाहे जितना कष्ट मेरे भाग्य में भर दे,
पर हर संकटों से जुझने का संकल्प दें ।
जो संकट आये जीवन में उनसे मैं दो दो हाथ करू,
संकट हो चाहे जितना विकट उनसे मै कभी न डरू ।
चाहे मेरे हर पथ पर कंटक बिखेर दें,
पर उन कंटकों में चलने का साहस भर दें ।
कष्टो से विचलित हो अपनी मानवता...
सच्चे झूठे कौन
कल का कौरव आज तो, पाण्ड़व नाम धराय ।
कल का पाण्ड़व आज क्यों, खुद को ही बिसराय ।।
खुद को ही बिसराय, दुष्ट कलयुग में आकर ।
स्वर्ण मुकुट रख शीश, राज सिंहासन पाकर ।
ज्ञाता केवल कृष्ण, ज्ञान जिसको हर पल का ।
सच्चे झूठे कौन, याद किसको है कल का ।।
...
नूतन संवत्सर उदित
नूतन संवत्सर उदित, उदित हुआ नव वर्ष ।
कण-कण रज-रज में भरे, नूतन-नूतन हर्ष ।।
नूतन नूतन हर्ष, शांति अरु समता लावे ।
विश्व बंधुत्व भाव, जगत भर में फैलावे ।।
नष्ट करें उन्माद, आज मिश्रित जो चिंतन ।
जागृत हो संकल्प, गढ़े जो भारत नूतन ।।
-रमेश चौह...
हे देश के राजनेताओं, थोड़ा तो शरम करो
हे देश के राजनेताओं, थोड़ा तो शरम करो ।
मुझको भारत माता कहते, मुझपर तो रहम करो ।।
लड़ो परस्पर जी भरकर तुम, पर लोकतंत्र के हद में ।
उड़ो गगन पर उडान ऊँची, पर धरती की जद में ।।
होते मतभेद विचारों में, इंसानों को क्यों मारें ।
इंसा इंसा के साथ रहे,, शैतानों को क्यों तारें ।।
सत्ता का तो विरोध करना, लोकतंत्र का हक है ।
मातृभूमि को गाली देना, कुछ ना तो...
शिक्षित
शिक्षित होकर देश में, लायेंगे बदलाव ।
जाति धर्म को तोड़ कर, समरसता फैलाव ।।
समरसता फैलाव, लोग देखे थे सपने ।
ऊँच-नीच को छोड़, लोग होंगे सब अपने ।।
खेद खेद अरू खेद, हुआ ना कुछ आपेक्षित ।
कट्टरता का खेल, खेलते दिखते शिक्षित ।।
...
छत्तीसगढ़िया व्यंजन: बोरे-बासी
बासी में है गुण बहुत, मान रहा है शोध ।खाता था छत्तीसगढ़, था पहले से बोध ।था पहले से बोध, सुबह प्रतिदिन थे खाते ।
खाकर बासी प्याज, काम पर थे सब जाते ।।चटनी संग "रमेेश", खाइये छोड़ उदासी ।भात भिगाकर रात, बनाई जाती बासी ।।
भात भिगाकर राखिए, छोड़ दीजिये रात ।भिगा भात वह रात का, बासी है कहलात ।।बासी है कहलात, विटामिन जिसमें होता ।है पौष्टिक...
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