माँ, माँ ही रहती सदा, पूत रहे ना पूत ।
नन्हे बालक जब बढ़े, माँ को समझे छूत ।।
माँ को समझे छूत, जवानी ज्यों-ज्यों आये ।
प्रेम-प्यार के नाम, प्यार माँ का बिसराये ।।
माने बात ‘रमेश‘, पत्नि जो जो अब कहती ।
बचपन जैसे कहाँ, आज माँ, माँ ही रहती ।।
नन्हे बालक जब बढ़े, माँ को समझे छूत ।।
माँ को समझे छूत, जवानी ज्यों-ज्यों आये ।
प्रेम-प्यार के नाम, प्यार माँ का बिसराये ।।
माने बात ‘रमेश‘, पत्नि जो जो अब कहती ।
बचपन जैसे कहाँ, आज माँ, माँ ही रहती ।।
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