कल का कौरव आज तो, पाण्ड़व नाम धराय ।
कल का पाण्ड़व आज क्यों, खुद को ही बिसराय ।।
खुद को ही बिसराय, दुष्ट कलयुग में आकर ।
स्वर्ण मुकुट रख शीश, राज सिंहासन पाकर ।
ज्ञाता केवल कृष्ण, ज्ञान जिसको हर पल का ।
सच्चे झूठे कौन, याद किसको है कल का ।।
कल का पाण्ड़व आज क्यों, खुद को ही बिसराय ।।
खुद को ही बिसराय, दुष्ट कलयुग में आकर ।
स्वर्ण मुकुट रख शीश, राज सिंहासन पाकर ।
ज्ञाता केवल कृष्ण, ज्ञान जिसको हर पल का ।
सच्चे झूठे कौन, याद किसको है कल का ।।
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