‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

एक ही है धर्म जग में

एक ही है धर्म जग में,  जीवन कला सकाम एक ईश्वर सृष्टि कारी प्रति कण बसे अनाम । आदमी में भेद कैसा,  प्राणी एक समान । करे पूजा भले कोई, चाहे करे अजान...

प्यार होता कहां अंधा

प्यार होता कहां अंधा, जाने नही जवान । कौन माँ को देख कर के,  आया गर्भ जहान । छांटते फिर रहे प्रियसी, जस एक परिधान । साथ रहकर किसी से भी, करते प्रेम महान ...

गीता ज्ञान

शोभन मौत सदा सच है फिर भी, डरे क्यों मन प्राण । जीवन जीने का होता, उसे क्यों अभियान ।। कर्म सार है जीवन का, बांटे कृष्ण ज्ञान । मानवता एक धर्म ही, इसका सार जान ...

यही सत्य ही सत्य है

मानों या न मानो यारों यही सत्य ही सत्य है केवल प्यार ही प्यार है प्यार देखता नही कभी मजहब न लड़का न लड़की समझे इसका मतलब प्यार लिंग भेद में है नही यह तो वासना है यारों कभी किसी ने सोचा है केवल युवक और युवती क्यों करते फिरते रहते प्यार, प्यार इस जगती प्यार कैद में होता नही यह तो स्वार्थ है यारों प्यार के दुहाई देने वाले जग के प्यार भूल बैठे हैं जनक...

प्रदूषण

प्रकृति और मानव में मचा हुआ क्यों होड़ है धरती अम्बर मातु-पिता बन जब करते रखवारी हाड़-मांस का यह पुतला तब बनती देह हमारी मानव मन में जन्म से वायु-धूल का जोड़ है मानव मस्तिष्क नवाचारी नित नूतन पथ गढ़ता अपनी सारी सोच वही फिर गगन धरा पर मढ़ता ऐसी सारी सोच की अभी नही तो तोड़ है माँ के आँचल दाग मले वह शान दिखा कर झूठे अपने मुख पर कालिख पाकर पिता पुत्र...

भारत के राजधानी में

हवा में, पानी में भारत के राजधानी में घूम रहा है ‘करयुग‘ का कर्म श्यामल-श्यामल रूप धर कर यमराज के साथ चित्रगुप्त स्याह खाते को बाँह भर कर बचपने में, बुढ़ापे में कर रहा हिसाब भरी जवानी में जग का कण-कण बंधा है अपने कर्मो के डोर से सूर्य अस्त होता नही राहू-केतू के शोर से भरे हाट में, सुने बाट में छोड़ देता है पद चिन्ह हर जुबानी में पाप की रेखा लंबी...

लाल भयो, लाल भयो, लाल भयो रे

ब्रज के गोकुल में, ढोल मृदंग बाजे घर घर हर गलीयन में, खुशीयां है छाजे ।। लाल भयो, लाल भयो, लाल भयो रे, नदं बाबा को आज, तो लाल भयो रे । गोप है आये, ग्वालिन है आये नंद के द्वारे में, सब लोगन हर्षाये लाला को देखने, देखो आकाश में, सूर्य तारे संग, सब देवन है राजे । ।। ब्रज के गोकुल में, ढोल मृदंग बाजे घर घर हर गलीयन में, खुश्ीयां है छाजे ।। लाल भयो,...

क्यों तुम अब मजबूर हो

तुम समझते हो तुम मुझ से दूर हो । जाकर वहां अपने में ही चूर हो ।। तुम ये लिखे हो कैसे पाती मुझे, समझा रहे क्यों तुम अब मजबूर हो ।। ...

लफंगे

काया कपड़े विहीन नंगे होते हैं । झगड़ा कारण रहीत दंगे होते हैं।। जिनके हो सोच विचार ओछे दैत्यों सा ऐसे इंसा ही तो लफंगे होते हैं ।। ...

पौन हो तुम

कहो ना कहो ना मुझे कौन हो तुम , सता कर  सता कर  मुझे मौन हो तुम । कभी भी कहीं का किसी का न छोड़े, करे लोग काना फुसी पौन हो तुम ।। (पौन-प्राण ) ...

साये नजर आते नहीं

क्रोध में जो कापता, कोई उसे भाते नही । हो नदी ऊफान पर, कोई निकट जाते नही । कौन अच्छा औ बुरा को जांच पाये होश खो हो घनेरी रात तो साये नजर आते नहीं। ...

एक नूतन सबेरा आयेगा

अंधियारा को चीर, एक नूतन सबेरा आयेगा । राह बुनता चल तो सही तू, तेरा बसेरा आयेगा ।। हौसला के ले पर, उडान जो तू भरेगा नीले नभ । देख लेना कदमो तले वही नभ जठेरा आयेगा । ...

हाथ में रंग आयेगा

पीसो जो मेंहदी तो, हाथ में रंग आयेगा । बोये जो धान खतपतवार तो संग आयेगा । है दस्तुर इस जहां में सिक्के के होते दो पहलू दुख सहने से तुम्हे तो जीने का ढंग आयेगा ।। ...

घुला हुआ है वायु में, मीठा-सा विष गंध (नवगीत,)

घुला हुआ है वायु में, मीठा-सा  विष गंध जहां रात-दिन धू-धू जलते, राजनीति के चूल्हे बाराती को ढूंढ रहे  हैं, घूम-घूम कर दूल्हे बाँह पसारे स्वार्थ के करने को अनुबंध भेड़-बकरे करते जिनके, माथ झुका कर पहुँनाई बोटी -  बोटी करने वह तो सुना रहा शहनाई मिथ्या- मिथ्या प्रेम से बांध रखे इक बंध हिम सम उनके सारे वादे हाथ रखे सब पानी चेरी,  चेरी...

सावन सूखा रह गया

सावन सूखा रह गया, सूखे भादो मास विरहन प्यासी धरती कब से, पथ तक कर हार गई पनघट पूछे बाँह पसारे, बदरा क्यों मार गई पनिहारिन भी पोछती अपना अंजन-सार रक्त तप्त अभिसप्त गगन यह, निगल रहा फसलों को बूँद-बूँद कर जल को निगले, क्या दें हम नसलों को धू-धू कर अब जल रही हम सबकी अँकवार कब तक रूठी रहेगी हमसे, अपना मुँह यूॅं फेरे हम तो तेरे द्वार खड़े हैं हृदय हाथ...

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