सावन
सूखा रह गया,
सूखे भादो मास
विरहन प्यासी धरती कब से,
पथ तक कर हार गई
पनघट पूछे बाँह पसारे,
बदरा क्यों मार गई
पनिहारिन
भी पोछती
अपना अंजन-सार
रक्त तप्त अभिसप्त गगन यह,
निगल रहा फसलों को
बूँद-बूँद कर जल को निगले,
क्या दें हम नसलों को
धू-धू कर
अब जल रही
हम सबकी अँकवार
कब तक रूठी रहेगी हमसे,
अपना मुँह यूॅं फेरे
हम तो तेरे द्वार खड़े हैं
हृदय हाथ में हेरे
तू जननी
हर जीव की
अखिल जगत आधार ।
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सूखा रह गया,
सूखे भादो मास
विरहन प्यासी धरती कब से,
पथ तक कर हार गई
पनघट पूछे बाँह पसारे,
बदरा क्यों मार गई
पनिहारिन
भी पोछती
अपना अंजन-सार
रक्त तप्त अभिसप्त गगन यह,
निगल रहा फसलों को
बूँद-बूँद कर जल को निगले,
क्या दें हम नसलों को
धू-धू कर
अब जल रही
हम सबकी अँकवार
कब तक रूठी रहेगी हमसे,
अपना मुँह यूॅं फेरे
हम तो तेरे द्वार खड़े हैं
हृदय हाथ में हेरे
तू जननी
हर जीव की
अखिल जगत आधार ।
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