प्रकृति और मानव में
मचा हुआ क्यों होड़ है
धरती अम्बर मातु-पिता बन
जब करते रखवारी
हाड़-मांस का यह पुतला तब
बनती देह हमारी
मानव मन में जन्म से
वायु-धूल का जोड़ है
मानव मस्तिष्क नवाचारी
नित नूतन पथ गढ़ता
अपनी सारी सोच वही फिर
गगन धरा पर मढ़ता
ऐसी सारी सोच की
अभी नही तो तोड़ है
माँ के आँचल दाग मले वह
शान दिखा कर झूठे
अपने मुख पर कालिख पाकर
पिता पुत्र पर टूटे
राह बदल ले पथिक अब
पथ में आया मोड़ है
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