हवा में, पानी में
भारत के
राजधानी में
घूम रहा है ‘करयुग‘ का कर्म
श्यामल-श्यामल रूप धर कर
यमराज के साथ चित्रगुप्त
स्याह खाते को बाँह भर कर
बचपने में, बुढ़ापे में
कर रहा हिसाब
भरी जवानी में
जग का कण-कण बंधा है
अपने कर्मो के डोर से
सूर्य अस्त होता नही
राहू-केतू के शोर से
भरे हाट में, सुने बाट में
छोड़ देता है
पद चिन्ह हर जुबानी में
पाप की रेखा लंबी चौड़ी
यह छोटी होगी कब
पुण्य की मोटी-तगड़ी रेखा
हाथो से खिचोगे जब
पुण्यमयी वायु
शुद्ध शीतल पुरवाही
बहेगी तब रवानी में
भारत के
राजधानी में
घूम रहा है ‘करयुग‘ का कर्म
श्यामल-श्यामल रूप धर कर
यमराज के साथ चित्रगुप्त
स्याह खाते को बाँह भर कर
बचपने में, बुढ़ापे में
कर रहा हिसाब
भरी जवानी में
जग का कण-कण बंधा है
अपने कर्मो के डोर से
सूर्य अस्त होता नही
राहू-केतू के शोर से
भरे हाट में, सुने बाट में
छोड़ देता है
पद चिन्ह हर जुबानी में
पाप की रेखा लंबी चौड़ी
यह छोटी होगी कब
पुण्य की मोटी-तगड़ी रेखा
हाथो से खिचोगे जब
पुण्यमयी वायु
शुद्ध शीतल पुरवाही
बहेगी तब रवानी में
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