सजनी तेरे प्यार का, मोल नहीं संसार में
नारी का बहू रूप
नारी का बहू रूप
नारी नाना रूप में, बहू रूप में सार । मां तो बस संतान की, पत्नी का पति प्यार । पत्नी का पति प्यार, मात्र पति को घर जाने । बेटी पन का भाव, मायका बस को माने ।। सास-ससुर परिवार, बहू करती रखवारी । बहू मूल आधार, समझ लो हर नर नारी ।।
जनता जनार्दन !
जनता जनार्दन !
वाह करते
वाह करते है लोग
नेताओं पर
जब कटाक्ष होवे
व्यवस्थाओं की
कलाई खोली जाए
वही जनता
बंद कर लेते हैं
आँख, कान व मुॅंह
अपनी गलती में
क्या ऐ जनता
व्यवस्था का अंग है?
लोकतंत्र में
नेताओं का जनक?
खुद सुधरेंगे
व्यवस्था सुधरेगी
खुद से प्रश्न
पूछिए भला आप
भ्रष्टाचार लौ
धधकाया नहीं है
आहुति डाल
नियम खूंटी टांग
काम नहीं किए हो
सेंध लगाए
सरकारी योजना
नहीं डकारे
सकरी गली
किसके कारण हैं
नदी-नालों का
डगर कौन रोके
कुॅंआ-बावली
घासभूमि तालब
कहां लुप्त है
जंगल और खेत
किसके घर
लाख उपाय ढूँढ़े
टैक्स बचाने
कमर कस कर
तैयार कौन?
व्यवस्था को हराने
अकेले नेता?
केवल कर्मचारी??
जनता जनार्दन !
मन की आकांक्षा
मन की आकांक्षा
(चौपाई)
अधिकारों से कर्तव्य बड़ा । जिस पर जड़ चेतन जीव खड़ा
धर्म नहीं हर कर्म अमर है । मौत क्या यह जीवन समर है
जीवन को हम सरल बनायें । चुनौतियों को विरल बनायें
नयनों में क्यों नीर बहायें । दृग को पहरेदार बनाये
देह नहीं मन को दुख होता । नयन नहीं अंतस ही रोता
मन चाहे तो दुख सुख होवे । मन चाहे तो सुख में रोवे
कष्टों से माँ शिशु जनती है । पर मन में तो सुख पलती है
दुखद विदाई बेटी का पर । दृग छलकें खुशियां धर
पीर देह की नहिं मन की गति । मन में यदि चिर-नूतन मति
मन की आकांक्षा वह कारक । मन की मति सुख-दुख धारक
-रमेश चौहान
कोराेना का रोना
कोरोना का रोना
(कुण्डलियॉं)
कोरोना का है कहर , कंपित कुंठित लोग ।
सामाजिकता दांव पर, ऐसे व्यापे रोग ।
ऐसे व्यापे रोग, लोग कैदी निज घर में ।
मन में पले तनाव, आज हर नारी नर में ।।
सुन लो कहे रमेश, चार दिन का यह रोना ।
धरो धीर विश्वास, नष्ट होगा कोरोना ।
तन से दूरी राखिये, मन से दूरी नाहिं ।
मन से दूरी होय जब, मन से प्रीत नसाहिं ।
मन से प्रीत नसाहिं, अगर कुछ ना बाेलो गे ।
करे न तुम से बात, तुमहिं सोचो क्या तौलो गे ।
सुन लो कहे 'रमेश', चाहिए साथी मन से ।
किया करें जी फोन, भले दूरी हो तन से ।।
घृणा रोग से कीजिये, रोगी से तो नाहिं ।
रोगी को संबल मिलत, रोग देह से जाहिं ।
रोग देह से जाहिं, हौसला जरा बढ़ायें ।
देकर हिम्मत धैर्य, आत्म विश्वास जगायें ।।
सुन लो कहे रमेश, जोड़ भावना लोग से ।
दें रोगी को साथ, घृण हो भले रोग से ।।
-रमेश चौहान
राष्ट्रधर्म ही धर्म बड़ा है
सोच रखिये चिर-नूतन (नववर्ष की शुभकामना)
सोच रखिये चिर-नूतन
(कुण्डलियॉं)
नववर्ष की शुभकामना
नित नव नूतन नवकिरण, दिनकर का उपहार ।
भीनी-भीनी भोर से, जाग उठा संसार ।।
जाग उठा संसार, खुशी नूतन मन भरने ।
नयन नयापन नाप, करे उद्यम दुख हरने ।।
सुन लो कहे ‘रमेश’, सोच रखिये चिर-नूतन ।
वही धरा नभ सूर्य, नहीं कुछ नित नव नूतन ।।
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