कोरोना का रोना
(कुण्डलियॉं)
कोरोना का है कहर , कंपित कुंठित लोग ।
सामाजिकता दांव पर, ऐसे व्यापे रोग ।
ऐसे व्यापे रोग, लोग कैदी निज घर में ।
मन में पले तनाव, आज हर नारी नर में ।।
सुन लो कहे रमेश, चार दिन का यह रोना ।
धरो धीर विश्वास, नष्ट होगा कोरोना ।
तन से दूरी राखिये, मन से दूरी नाहिं ।
मन से दूरी होय जब, मन से प्रीत नसाहिं ।
मन से प्रीत नसाहिं, अगर कुछ ना बाेलो गे ।
करे न तुम से बात, तुमहिं सोचो क्या तौलो गे ।
सुन लो कहे 'रमेश', चाहिए साथी मन से ।
किया करें जी फोन, भले दूरी हो तन से ।।
घृणा रोग से कीजिये, रोगी से तो नाहिं ।
रोगी को संबल मिलत, रोग देह से जाहिं ।
रोग देह से जाहिं, हौसला जरा बढ़ायें ।
देकर हिम्मत धैर्य, आत्म विश्वास जगायें ।।
सुन लो कहे रमेश, जोड़ भावना लोग से ।
दें रोगी को साथ, घृण हो भले रोग से ।।
-रमेश चौहान
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