राष्ट्र धर्म ही धर्म बड़ा है
(सरसी छंद)
राष्ट्र धर्म ही धर्म बड़ा है, राष्ट्रप्रेम ही प्रेम ।
राष्ट्र हेतु ही चिंतन करना, हो जनता का नेम ।
राष्ट्र हेतु केवल मरना ही, नहीं है देश भक्ति ।
राष्ट्रहित जीवन जीने को, चाहिए बड़ी शक्ति ।
कर्तव्यों से बड़ा नहीं है, अधिकारों की बात ।
कर्तव्यों में सना हुआ है, मानवीय सौगात ।
अधिकारों का अतिक्रमण भी, कर जाता अधिकार ।
पर कर्तव्य तो बांट रहा है , सहिष्णुता का प्यार ।
राष्ट्रवाद पर एतराज क्यों, और क्यों राजनीति ।
राष्ट्रवाद ही राष्ट्र धर्म है, लोकतंत्र की नीति ।।
राष्ट्रवाद ही एक कसौटी, होवे जब इस देश ।
नहीं रहेंगे भ्रष्टाचारी, मिट जाएंगे क्लेश ।।
-रमेश चौहान
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