जनता जनार्दन !
वाह करते
वाह करते है लोग
नेताओं पर
जब कटाक्ष होवे
व्यवस्थाओं की
कलाई खोली जाए
वही जनता
बंद कर लेते हैं
आँख, कान व मुॅंह
अपनी गलती में
क्या ऐ जनता
व्यवस्था का अंग है?
लोकतंत्र में
नेताओं का जनक?
खुद सुधरेंगे
व्यवस्था सुधरेगी
खुद से प्रश्न
पूछिए भला आप
भ्रष्टाचार लौ
धधकाया नहीं है
आहुति डाल
नियम खूंटी टांग
काम नहीं किए हो
सेंध लगाए
सरकारी योजना
नहीं डकारे
सकरी गली
किसके कारण हैं
नदी-नालों का
डगर कौन रोके
कुॅंआ-बावली
घासभूमि तालब
कहां लुप्त है
जंगल और खेत
किसके घर
लाख उपाय ढूँढ़े
टैक्स बचाने
कमर कस कर
तैयार कौन?
व्यवस्था को हराने
अकेले नेता?
केवल कर्मचारी??
जनता जनार्दन !
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