‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

जनता जनार्दन !

जनता जनार्दन !वाह करतेवाह करते है लोगनेताओं परजब कटाक्ष होवेव्यवस्थाओं कीकलाई खोली जाएवही जनता बंद कर लेते हैंआँख, कान व मुॅंहअपनी गलती मेंक्या ऐ जनताव्यवस्था का अंग है?लोकतंत्र मेंनेताओं का जनक?खुद सुधरेंगेव्यवस्था सुधरेगीखुद से प्रश्नपूछिए भला आपभ्रष्टाचार लौधधकाया नहीं हैआहुति डालनियम खूंटी टांगकाम नहीं किए होसेंध लगाएसरकारी योजनानहीं डकारेसकरी...

मन की आकांक्षा

मन की आकांक्षा(चौपाई)अधिकारों से कर्तव्य बड़ा । जिस पर जड़ चेतन जीव खड़ाधर्म नहीं हर कर्म अमर है । मौत क्या यह जीवन समर हैजीवन को हम सरल बनायें । चुनौतियों को विरल बनायेंनयनों में क्यों नीर बहायें । दृग को पहरेदार बनायेदेह नहीं मन को दुख होता । नयन नहीं अंतस ही रोतामन चाहे तो दुख...

कोराेना का रोना

 कोरोना का रोना(कुण्‍डलियॉं)कोरोना का है कहर , कंपित कुंठित लोग ।सामाजिकता दांव पर, ऐसे व्यापे रोग ।ऐसे व्यापे रोग, लोग कैदी निज घर में ।मन में पले तनाव, आज हर नारी नर में ।।सुन लो कहे रमेश, चार दिन का यह रोना ।धरो धीर विश्वास, नष्ट होगा कोरोना ।तन से दूरी राखिये, मन से...

राष्ट्रधर्म ही धर्म बड़ा है

राष्ट्र धर्म ही  धर्म बड़ा है(सरसी छंद)राष्ट्र धर्म ही  धर्म बड़ा है, राष्ट्रप्रेम ही प्रेम ।राष्ट्र हेतु ही चिंतन करना, हो जनता का नेम ।राष्ट्र हेतु केवल मरना ही, नहीं है देश भक्ति ।राष्ट्रहित जीवन जीने को, चाहिए बड़ी शक्ति ।कर्तव्यों से बड़ा नहीं है, अधिकारों की बात ।कर्तव्यों में सना हुआ है, मानवीय सौगात ।अधिकारों का अतिक्रमण भी, कर जाता...

सोच रखिये चिर-नूतन (नववर्ष की शुभकामना)

सोच रखिये चिर-नूतन(कुण्‍डलियॉं) नववर्ष की शुभकामना नित नव नूतन नवकिरण, दिनकर का उपहार ।भीनी-भीनी भोर से, जाग उठा संसार ।।जाग उठा संसार, खुशी नूतन मन भरने ।नयन नयापन नाप, करे उद्यम दुख हरने ।।सुन लो कहे ‘रमेश’, सोच रखिये चिर-नूतन ।वही धरा नभ सूर्य, नहीं कुछ नित नव नूतन...

कैसे पढ़ा-लिखा खुद को बतलाऊँ

 कैसे पढ़ा-लिखा खुद को बतलाऊँ(चौपाई छंद)पढ़-लिख कर मैंने क्‍या पाया । डिग्री ले खुद को भरमाया ।।काम-धाम मुझको ना आया ।केवल दर-दर भटका खाया ।। फेल हुये थे जो सहपाठी । आज धनिक हैं धन की थाती । सेठ बने हैं बने चहेता । अनपढ़ भी है देखो नेता ।।श्रम करने जिसको है आता । दुनिया केवल उसको भाता ।। बचपन से मैं बस्‍ता ढोया । काम हुुुुनर मैं हाथ न बोया ।।ढ़ूढ़...

अतुकांत कविता -मेरे अंतस में

आज अचानक मैंने अपने अंत: पटल में झांक बैठादेखकर चौक गयाकाले-काले वह भी भयावह डरावनेदुर्गुण  फूफकार रहे थेमैं खुद को एक सामाजिक प्राणी समझता थाकिंतु यहां मैंने पायासमाज से मुझे कोई सरोकार ही नहींमैं परिवार का चाटुकार केवल बीवी बच्चे में भुले बैठा मां बाप को भी साथ नहीं दे पारहाबीवी बच्चों से प्यारनहीं नहीं यह तो केवल स्वार्थ दिख...

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