‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

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पहनावा (कुण्डलियां)

पहनावा ही बोलता, लोगों का व्यक्तित्व ।
वस्त्रों के हर तंतु में, है वैचारिक स्वरितत्व ।।
है वैचारिक स्वरितत्व, भेद मन का जो खोले ।
नग्न रहे जब सोच, देह का लज्जा बोले ।
फैशन का यह फेर, नग्नता का है लावा ।
आजादी के नाम, युवा पहने पहनावा ।।

बनें हर कोई दर्पण

दर्पण सुनता देखता, जग का केवल सत्य ।
आँख-कान से वह रहित, परखे है अमरत्व ।।
परखे है अमरत्व, सत्य को जो है माने ।
सत्य रूप भगवान, सत्य को ही जो जाने ।।
सुनलो कहे ‘रमेश‘, करें सच को सच अर्पण ।
आँख-कान मन खोल, बनें हर कोई दर्पण ।।

नामी कामी संत

गुंडा को भाई कहे, पाखण्ड़ी को संत ।
करे पंथ के नाम पर, मानवता का अंत ।।
मानवता का अंत, करे होकर उन्मादी ।
नामी कामी संत, हुये भाई सा बादी ।।
अंधभक्त जब साथ, रहे होकर के मुंडा ।
पाखण्ड़ी वह संत, बने ना कैसे गुंडा ।।

देश है सबसे पहले

पहले मेरा धर्म है, पाछे मेरा देश ।
कहते ऐसे लोग जो, रोप रहे विद्वेश ।
रोप रहे विद्वेश, देश को करने खण्डित ।
राजनीति के नाम, किये अपने को मण्डित ।।
सुनलो कहे ‘रमेश‘, चलो तुम अहले गहले ।
राजनीति को छोड़, देश है सबसे पहले ।।

भौतिक युग

भौतिक युग विस्तार में, नातों का दुश्काल ।
माँ सुत के पथ जोहती, हुई आज कंकाल ।।
हुई आज कंकाल, हमारी संस्कृति प्यारी ।
अर्थ तंत्र का अर्थ, हुये जब सब पर भारी ।।
सुन लो कहे ‘रमेश‘, सोच यह केवल पौतिक ।
तोड़ रहे परिवार,  फाँस बनकर युग भौतिक ।।
(पौतिक-सड़ांध युक्त घाव)

चलो चाल सरकार, बचे ना अब आतंकी

आतंकी करतूत से, दहल रहा कश्मीर ।
पोषित कुलषित सोच से, सींच रहें हैं पीर ।।
सींच रहें हैं पीर, रूप आतंकी धारे ।
जन्नत में शैतान, आदमीयत को मारे ।।
छुप-छुप करते वार, चाल चलते हैं बंकी ।
चलो चाल सरकार, बचे ना अब आतंकी ।।

दुष्टों का संघार, करें अब हे शिव भोले

हे शिव भोले नाथ प्रभु, देखें नयन उघार ।
तेरे भक्तों पर हुआ, फिर से अत्याचार ।
फिर से अत्याचार, शत्रु मानव के करते ।
देव विरोधी दैत्य, प्राण भक्तों के हरते ।।
अमरनाथ के नाथ, भक्त हर-हर हर बोले ।
दुष्टों का संघार, करें अब हे शिव भोले ।।

रक्तों का प्यासा हुआ, भेड़ों का वह भीड़

रक्तों का प्यासा हुआ, भेड़ों का वह भीड़ ।
अफवाहों में जल रहे, निर्दोषों का नीड़ ।।
निर्दोषों का नीड़,  बचे चिंता है किसको ।
जनता बकरी-भेड़, आज लगते हैं जिसको ।
खरी-खरी इक बात, कहें उन अनुशक्तों का ।
फँसे लोभ के फाँस, , हुये प्यासे रक्तों का।

कठिनाई सर्वत्र है

कठिनाई सर्वत्र है,  चलें किसी भी राह ।
बंधन सारे तोड़िये, मन में भरकर चाह ।।
मन में भरकर चाह, बढ़े मंजिल को पाने ।
नहीं कठिन वह लक्ष्य, इसे निश्चित ही जाने ।।
सुनलो कहे रमेश, हौसला है चिकनाई ।
फौलादी संकल्प, तोड़ लेते कठिनाई ।।

वर्षो से परतंत्र हैं

वर्षो से परतंत्र है, भारतीय परिवेश  ।
मुगलों  ने कुचला कभी, देकर भारी क्लेश ।।
देकर भारी क्लेश, कभी आंग्लों ने लूटा ।
देश हुआ आजाद,  दमन फिर भी ना छूटा  ।।
संस्कृति अरु संस्कार, सुप्त है अपकर्षो से ।
वैचारिक  परतंत्र, पड़े हैं हम वर्षो से ।।
-रमेश चौहान

अर्थ स्वच्छता के समझ

कोना-कोना स्वच्छ हो, स्वच्छ बने हर गाँव ।
अर्थ स्वच्छता के समझ, रम्य करें हर ठाँव ।।
रम्य करें हर ठाँव, स्वच्छता को कर धारण।
गगन तले का शौच, नहीं एकाकी कारण ।
कारण भारी एक, कुड़े करकट का होना ।
बदलें निज व्यवहार, स्वच्छ हो कोना-कोना ।।

सैनिक की माँ पूछती


सैनिक की माँ पूछती, कब तक मरे जवान ।
लड़े बिना शहीद हुये, बेटा मेरे प्राण ।।
बेटा मेरे प्राण, दूध मेरा पीया है ।
मरा देश के नाम, देश हित ही जीया है ।।
मुझे नही मंजूर, मृत्यु वीरों का दैनिक ।
बिना लड़े इक युद्ध, मरे ना कोई सैनिक ।।


साचा साचा बात है

साचा साचा बात है, नही साच को आच ।
राजनीति के आच से, लोग रहे हैं नाच ।।
लोग रहे हैं नाच, थाम कर कोई झंडा ।
करते इनकी बात, जुबा पर लेकर डंडा ।।
साचा कहे रमेश, नही कोई अपवाचा ।
यही सही उपचार, राजनेता हो साचा ।।

बैरी बाहर है नहीं

बैरी बाहर है नहीं, घर अंदर है चोर ।
मानवता के नाम पर, राष्ट्र द्रोह ना थोर ।।
राष्ट्र द्रोह ना थोर, शत्रु को पनाह देना ।
गढ़कर पत्थरबाज, साथ उनके हो लेना ।।
राजनीति का स्वार्थ, कहां है अब अनगैरी ।
सैनिक का अपमान, मौन हो देखे बैरी ।।

उनको कोटि प्रणाम,

आजादी पर हैं किये, जो जीवन बलिदान ।
मातृभूमि के श्री चरण, भेट किये निज प्राण ।।
भेट किये निज प्राण, राष्ट्र सुत आगमजानी ।
राजगुरू सुखदेव, भगत जैसे बलिदानी ।
जिसके कारण देश, लगे हमको अहलादी ।
उनको कोटि प्रणाम, हमें दी जो आजादी ।।

तुम्हे शादी है करना

करना चाहे बाप जब, मना करे हैं पुत्र ।
समझ सके ना बाप वह, बेटे का यह सूत्र ।।
बेटे का यह सूत्र, अभी करूंगा ना शादी ।
खड़ा नहीं हूॅं पैर, बात समझें बुनियादी ।।
मन में रख संतोष,  बात बेटा तू धर ना ।
आयु हुआ अब तीस, तुम्हे शादी है करना।।
-रमेश चौहान

करे खुद बेईमानी

ज्ञानी ध्यानी जन कहे, जात-पात को छोड़ ।
धर्म, लिंग जंजीर को, शक्ति लगा कर तोड़ ।।
शक्ति लगा कर तोड़, डगर में जो हो बाधा ।
मानव मानव एक, मनुजता के हैं ये व्याधा ।
पर क्या देखे रमेश, करे खुद बेईमानी ।
अपना अपना राग, अलापे ज्ञानी ध्यानी ।।

कवि सम्मेलन

कवि सम्मेलन जो हुये, जाति लिंग आधार ।
मानवता पथ छोड़ कवि, गढ़े कौन सा राह ।
गढ़े कौन सा राह, बीज अंतर का बो कर ।
जिसके कांधे भार, जागते रहते सो कर ।
समता गढ़ो रमेश, छोड़ जग का अवहेलन ।
सबको करने एक, कीजिये कवि सम्मेलन ।।

साचा उत्तर दीजिये

साचा उत्तर दीजिये, क्यों बैठे हो मौन ?
प्यार और संबंध में, पहले आया कौन ??
पहले आया कौन, फूल या फूल सुगंधी ?
रिश्ता से है प्यार, या प्यार से संबंधी ??
पूछे प्रश्न रमेश, नहीं कोई अपवाचा ।
केवल कहिये सत्य, प्रश्न का उत्तर साचा ।।

प्रश्न उठता है तब से

तब से लेकर आज तक, दिखे एक ही हाल ।
मुद्दा यह कश्मीर का, फँसा हूआ किस चाल ।।
फँसा हूआ किस चाल, चीन अक्साई बनकर ।
घेर रखे कश्मीर, पाक तब से अब तनकर ।।
बांट रहें है देश, मिले आजादी जब से ।
भारत के हैं कौन, प्रश्न उठता है तब से ।

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