आतंकी करतूत से, दहल रहा कश्मीर ।
पोषित कुलषित सोच से, सींच रहें हैं पीर ।।
सींच रहें हैं पीर, रूप आतंकी धारे ।
जन्नत में शैतान, आदमीयत को मारे ।।
छुप-छुप करते वार, चाल चलते हैं बंकी ।
चलो चाल सरकार, बचे ना अब आतंकी ।।
पोषित कुलषित सोच से, सींच रहें हैं पीर ।।
सींच रहें हैं पीर, रूप आतंकी धारे ।
जन्नत में शैतान, आदमीयत को मारे ।।
छुप-छुप करते वार, चाल चलते हैं बंकी ।
चलो चाल सरकार, बचे ना अब आतंकी ।।
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