‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

आज पर्व गणतंत्र का

आज पर्व गणतंत्र का, मना रहा है देश ।लोक कहां है तंत्र में, दिखे नहीं परिवेश ।। बना हुआ है स्वप्न वह, देखे थे जो आँख ।जन मन की अभिलाष सब, दबा तंत्र के काख ।। निर्धन निर्धन है बना, धनी हुये धनवान ।हिस्सा है जो तंत्र का, वही बड़ा बलवान ।। -रमेश चौहा...

कहे विवेकानंद

पाना हो जो लक्ष्य को, हिम्मत करें बुलंद । ध्येय वाक्य बस है यही, कहे विवेकानंद ।। कहे विवेकानंद, रूके बिन चलते रहिये । लक्ष्य साधने आप, पीर तो थोड़ा सहिये । विनती करे ‘रमेश‘, ध्येय पथ पर ही जाना । उलझन सारे छोड़, लक्ष्य को जो हो पाना ।। ...

//ममता स्मृति क्लब नवागढ, जिला बेमेतरा//

(उल्लाला छंद) ममता स्मृति क्लब अति पुनित, ममता का ही मर्म है । प्रेम स्नेह ही बांटना, इसका पावन धर्म है ।। डॉक्टर अजीत प्रेम से, घुले मिले थे गांव में । डॉक्टर हो वह दक्ष थे, कई खेल के दांव में ।। प्यारी सुता अजीत की, प्यारी थी इस गांव को । सात वर्ष की आयु में, जो तज दी जग ठांव को ।। उस ममता की स्मृति में, ग्रामीणों का कर्म है । जाति धर्म अंतर...

गणेशजी की आरती

जय गौरी नंदन, विघ्न निकंदन, जय प्रथम पूज्य, भगवंता । जय शिव के लाला, परम दयाला, सुर नर मुनि के, प्रिय कंता ।। मध्य दिवस सुचिता, भादो पुनिता, शुक्ल चतुर्थी, शुभ बेला । प्रकटे गणनायक, मंगल दायक, आदि शक्ति के, बन लेला ।। तब पिता महेशा, किये गणेशा, करके गजानन, इक दंता । जय गौरी नंदन, विघ्न निकंदन, जय प्रथम पूज्य, भगवंता ।। रिद्धि सिद्धि द्वै, हाथ चवर...

दंभ भरे है तंत्र

खड़े रहे हम पंक्ति, देखने नोट गुलाबी । वह अपने घर बैठ, दिखाते रहे खराबी ।। पाले स्वप्न नवीन, पीर झेले अधनंगे । कोशिश किये हजार, कराने वह तो दंगे । जिसने घोला है जहर, रग में भ्रष्टाचार का । दंभ भरे है तंत्र वह, अपने हर व्यवहार का ...

/त्रिष्टुप छंद//

(111 212 212 11) विरह पीर से गोपियां व्रजडगर जोहती श्यामनी तटनयन ढूंढती श्याम का पथअधर श्याम है श्याम है घट -रमेश चौहान...

गीत

सेठों को देखा नही, हमने किसी कतार में   फुदक-फुदक कर यहां-वहां जब चिड़िया तिनका जोड़े बाज झपट्टा मार-मार कर उनकी आशा तोड़े   जीवन जीना है कठिन, दुनिया के दुस्वार में   जहां आम जन चप्पल घिसते दफ्तर-दफ्तर मारे । काम एक भी सधा नही है रूके हुयें हैं सारे   कौन कहे कुछ बात है, दफ्तर उनके द्वार म...

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