आज पर्व गणतंत्र का, मना रहा है देश ।
लोक कहां है तंत्र में, दिखे नहीं परिवेश ।।
लोक कहां है तंत्र में, दिखे नहीं परिवेश ।।
बना हुआ है स्वप्न वह, देखे थे जो आँख ।
जन मन की अभिलाष सब, दबा तंत्र के काख ।।
जन मन की अभिलाष सब, दबा तंत्र के काख ।।
निर्धन निर्धन है बना, धनी हुये धनवान ।
हिस्सा है जो तंत्र का, वही बड़ा बलवान ।।
हिस्सा है जो तंत्र का, वही बड़ा बलवान ।।
-रमेश चौहान
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