‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

वर्षो से परतंत्र हैं

वर्षो से परतंत्र है, भारतीय परिवेश  । मुगलों  ने कुचला कभी, देकर भारी क्लेश ।। देकर भारी क्लेश, कभी आंग्लों ने लूटा । देश हुआ आजाद,  दमन फिर भी ना छूटा  ।। संस्कृति अरु संस्कार, सुप्त है अपकर्षो से । वैचारिक  परतंत्र, पड़े हैं हम वर्षो से ।। -रमेश चौहान...

अपनी रेखा गढ़ लें

हर रेखा बड़ी होती, हर रेखा होती छोटी, सापेक्षिक निति यह, समझो जी बात को । दूसरों को छेड़े बिन, अपनी रेखा गढ़ लें उद्यम के स्वेद ले, तोड़ काली रात को।। खीर में शक्कर चाही, शाक में तो नमक रे सबका अपना कर्द, अपना ही मोल है । दूर के ढोल सुहाने, लगते हों जिसको वो जाकर जी देखो भला, ढोल मे भी पोल है ।। ...

अर्थ स्वच्छता के समझ

कोना-कोना स्वच्छ हो, स्वच्छ बने हर गाँव । अर्थ स्वच्छता के समझ, रम्य करें हर ठाँव ।। रम्य करें हर ठाँव, स्वच्छता को कर धारण। गगन तले का शौच, नहीं एकाकी कारण । कारण भारी एक, कुड़े करकट का होना । बदलें निज व्यवहार, स्वच्छ हो कोना-कोना ।। ...

सैनिक की माँ पूछती

सैनिक की माँ पूछती, कब तक मरे जवान । लड़े बिना शहीद हुये, बेटा मेरे प्राण ।। बेटा मेरे प्राण, दूध मेरा पीया है । मरा देश के नाम, देश हित ही जीया है ।। मुझे नही मंजूर, मृत्यु वीरों का दैनिक । बिना लड़े इक युद्ध, मरे ना कोई सैनिक ।। ...

साचा साचा बात है

साचा साचा बात है, नही साच को आच । राजनीति के आच से, लोग रहे हैं नाच ।। लोग रहे हैं नाच, थाम कर कोई झंडा । करते इनकी बात, जुबा पर लेकर डंडा ।। साचा कहे रमेश, नही कोई अपवाचा । यही सही उपचार, राजनेता हो साचा ।। ...

नष्ट मूल से कीजिये

राजनीति के जाल में, राष्ट्रप्रेम क्यो कैद । एक राष्ट्रद्रोही दिखे, दूजा प्रेमी बैद ।। करें खूब आलोचना, लोकतंत्र के संग । द्रोह देष से क्यों करे, राजनीति के रंग ।। सेलिब्रेटी मान्यजन, रहे नही अब मौन । नष्ट मूल से कीजिये, हर आतंकी दौन ।। (दौन-दमन) ...

राष्ट्र धर्म (दोहे)

साथ खड़े जो शत्रु के, होते नहीं अजीज ।शत्रु वतन के जो दिखे, उनके फाड़ कमीज ।। राष्ट्रद्रोह के ज्वर से,  दहक रहा है देश । सुख खोजे निजधर्म में,  राष्ट्र धर्म में क्लेष ।। प्रेम प्रेम ही चाहता, कटुता चाहे बैर ।प्रेम प्रेम ही बाँटकर, देव मनावे खैर । अभिव्यक्ति के नाम पर, राष्ट्रद्रोह क्यों मान्य । सहिष्णुता छल...

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