साथ खड़े जो शत्रु के, होते नहीं अजीज ।
शत्रु वतन के जो दिखे, उनके फाड़ कमीज ।।
राष्ट्रद्रोह के ज्वर से, दहक रहा है देश ।
सुख खोजे निजधर्म में, राष्ट्र धर्म में क्लेष ।।
प्रेम प्रेम ही चाहता, कटुता चाहे बैर ।
प्रेम प्रेम ही बाँटकर, देव मनावे खैर ।
अभिव्यक्ति के नाम पर, राष्ट्रद्रोह क्यों मान्य ।
सहिष्णुता छल सा लगे, चुप हो जब गणमान्य ।।
तुला धर्म निरपेक्ष का, भेद करे ना धर्म ।
अ, ब, स, द केवल वर्ण है, शब्द भाव का कर्म ।
शत्रु वतन के जो दिखे, उनके फाड़ कमीज ।।
राष्ट्रद्रोह के ज्वर से, दहक रहा है देश ।
सुख खोजे निजधर्म में, राष्ट्र धर्म में क्लेष ।।
प्रेम प्रेम ही चाहता, कटुता चाहे बैर ।
प्रेम प्रेम ही बाँटकर, देव मनावे खैर ।
अभिव्यक्ति के नाम पर, राष्ट्रद्रोह क्यों मान्य ।
सहिष्णुता छल सा लगे, चुप हो जब गणमान्य ।।
तुला धर्म निरपेक्ष का, भेद करे ना धर्म ।
अ, ब, स, द केवल वर्ण है, शब्द भाव का कर्म ।
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