मैं बिकने को तत्पर खड़ा । केवल प्रेम मोल पर अड़ा
ऐसे क्रेता कोई नही । जिनके बाहर अंदर सही
कोई तो मीठे बोल से । कोई अपने चषचोल से
अपने वश कर ले जो मुझे । एक न ऐसे साथी सुझे
एक मुखौटा मुख पर ढके । मुझे शिकारी जैसे तके
मेरे बढ़ते हर पाद को । सह न सके कुछ आस्वाद को
कैसे झूलूँ उनके बाँह में । कैसे दौडूँ उनके राह में
मोल रहित हो मैं तो खड़ा । कूड़े करकट सम मैं पड़ा
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