निर्धन मेरे देश के, धनवानों से श्रेष्ठ ।
बईमान तो है नही, जैसे दिखते जेष्ठ ।।
जैसे दिखते जेष्ठ, करोड़ो चपत लगाये ।
मुँह में कालिख पोत, देश से चले भगाये ।।
पढ़े-लिखे ही लोग, देश को क्यों हैं घेरे ।
अनपढ़ होकर आज, श्रेष्ठ हैं निर्धन मेरे ।।
बईमान तो है नही, जैसे दिखते जेष्ठ ।।
जैसे दिखते जेष्ठ, करोड़ो चपत लगाये ।
मुँह में कालिख पोत, देश से चले भगाये ।।
पढ़े-लिखे ही लोग, देश को क्यों हैं घेरे ।
अनपढ़ होकर आज, श्रेष्ठ हैं निर्धन मेरे ।।
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