नारी बिन परिवार का, होय नही अस्तित्व।
प्रेम और संस्कार बिन, नारी नही कृतित्व ।।
एक पहेली है जगत, जीवन भर तू बूझ ।
सोच सकारात्मक लिये, तुम्हे दिखाना सूझ ।।
कर विरोध सरकार का, लोकतंत्र में छूट ।
देश हमारी माँ भली, लाज न इसकी लूट ।।
बच्चों में हिंसा पनप रहा है, छूट रहा संस्कार ।
एक अकेले बच्चे कुंठित, करते कई विचार ।।
नारी से नर होत है, नर से होते नार ।
ऊँच-नीच की बात क्यों, जब दोनों है आधार ।।
भौतिकता का फेर ही, व्यक्तिवाद का मूल ।
व्यक्तिवाद का फेर तो, है सामाजिक भूल ।
देह सुस्त मन बावरा, रखना इसे व्यस्त ।
काम करें हर वक्त जब, तन-मन रहते मस्त ।।
मेरा ठेका है नहीं, सेक्लुर होना आज ।
मैं भाई कहता रहा, बरस रहा तू गाज ।।
काम काम दिन रात है, जब तक तन में प्राण ।
नर जीवित है काम से, वरना मृतक समान ।।
509. उदित हुई मन क्षितिज पर, स्वर्णिम रवि सम प्रीत ।
आलोकित है तन बदन, विजयी कालातीत ।।
गिरगिट नेता को जब देखे, रह जाता है दंग ।
दुनिया मुझको यूं ही कहती, नेता बदले रंग ।।
.अपनेपन की डोर से, बंधा है संसार ।
यह मेरा घर द्वार है, यह मेरा परिवार ।।
पहले अपना मान लो, हो जाएगा प्यार ।
अपनेपन की भाव से, हृदय भरो संसार ।।
युवा आयु से होय ना, युवा सोच का नाम ।
नई सोच हर आयु पर, करते नूतन काम ।।
0 Comments:
एक टिप्पणी भेजें