‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

चंद दोहे


नारी बिन परिवार का, होय नही अस्तित्व।
प्रेम और संस्कार बिन, नारी नही कृतित्व ।।

एक पहेली है जगत, जीवन भर तू बूझ ।
सोच सकारात्मक लिये, तुम्हे दिखाना सूझ ।।

कर विरोध सरकार का, लोकतंत्र में छूट ।
देश हमारी माँ भली, लाज न इसकी लूट ।।

बच्चों में हिंसा पनप रहा है, छूट रहा संस्कार ।
एक अकेले बच्चे कुंठित, करते कई विचार ।।

नारी से नर होत है, नर से होते नार ।
ऊँच-नीच की बात क्यों, जब दोनों है आधार ।।

भौतिकता का फेर ही, व्यक्तिवाद का मूल ।
व्यक्तिवाद का फेर तो, है सामाजिक भूल ।

देह सुस्त मन बावरा, रखना इसे व्यस्त ।
काम करें हर वक्त जब, तन-मन रहते मस्त ।।

मेरा ठेका है नहीं, सेक्लुर होना आज ।
मैं भाई कहता रहा, बरस रहा तू गाज ।।

काम काम दिन रात है, जब तक तन में प्राण ।
नर जीवित है काम से, वरना मृतक समान ।।
509. उदित हुई मन क्षितिज पर, स्वर्णिम रवि सम प्रीत ।
आलोकित है तन बदन, विजयी कालातीत ।।

गिरगिट नेता को जब देखे, रह जाता है दंग ।
दुनिया मुझको यूं ही कहती, नेता बदले रंग ।।

.अपनेपन की डोर से, बंधा है संसार ।
यह मेरा घर द्वार है, यह मेरा परिवार ।।

पहले अपना मान लो, हो जाएगा प्यार ।
अपनेपन की भाव से, हृदय भरो संसार ।।

युवा आयु से होय ना, युवा सोच का नाम ।
नई सोच हर आयु पर, करते नूतन काम ।।

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