‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

अतुकांत कविता -मेरे अंतस में

आज अचानक मैंने अपने अंत: पटल में झांक बैठादेखकर चौक गयाकाले-काले वह भी भयावह डरावनेदुर्गुण  फूफकार रहे थेमैं खुद को एक सामाजिक प्राणी समझता थाकिंतु यहां मैंने पायासमाज से मुझे कोई सरोकार ही नहींमैं परिवार का चाटुकार केवल बीवी बच्चे में भुले बैठा मां बाप को भी साथ नहीं दे पारहाबीवी बच्चों से प्यारनहीं नहीं यह तो केवल स्वार्थ दिख...

दीप पर्व की शुभकामनाएं

धनतेरस (कुण्‍डलियां छंद) आयुष प्रभु धनवंतरी, हमें दीजिए स्वास्थ्य  ।आज जन्मदिन आपका,   दिवस परम परमार्थ ।।दिवस परम परमार्थ,  पर्व यह धनतेरस का ।असली धन स्वास्थ्य, दीजिए वर सेहत का ।।धन से बड़ा "रमेश", स्वास्थ्य पावन पीयुष ।आयुर्वेद का पर्व, आज बांटे हैं आयुष...

चिंतन के दोहे

शांत हुई ज्योति घट में, रहा न दीपक नाम ।अमर तत्व निज पथ चला, अमर तत्व से काम ।।धर्म कर्म धर्म, कर्म का सार है, कर्म धर्म का सार ।करें मृत्‍यु पर्यन्‍त जग, धर्म-कर्म से प्‍यार ।।दुनिया भर के ज्ञान से, मिलें नहीं संस्‍कार ।अपने भीतर से जगे, मानवता उपकार ।।डाली वह जिस पेड़ की, उससे उसकी बैर ।लहरायेगी कब तलक, कबतक उसकी खैर ।जाति मिटाने देश में, अजब विरोधाभास...

हम मजदूर

रूपमाला छंद राम जाने राम जाने, कौन लाया रोग । हो गया है बंद दुनिया, कष्ट भोगे लोग ।। चीन दोषी चीन दोषी, राग छेडे ट्रंप । तेज गति से तेज दौड़े, ले करोना जंप ।। लाॅक डाउन लाॅक डाउन, बंद चारों खंद । काम धंधा बंद है जी, चार पैसा बंद ।। पेट मांगे भात दे दो, आज हम मजबूर । हाथ मांगे काम दे दो, लोग हम मजदूर ।...

दम्भ चीन का आज बढ़ा है (आल्हा छंद)

आल्‍हा छंद जीत सत्य की होती हरदम, हर पल  सत्य हमारे साथ । मात दिए धनबल भुजबल को, इष्ट हमारे हैं रघुनाथ ।। छप्पन इंची छाती अपनी, मनबल सागर सम बलखाय। देश प्रेम संकल्प हमारा, काल हमें क्या तनिक डिगाय । रावण जैसे चीन हुंकारें, रामा दल हम रखे सजाय । चीन पाक के चाल सभी अब,  धरती रज में देब मिलाय । दम्भ चीन का आज बढ़ा है, दंभ कुचलकर...

रस छंद अलंकार

/रस/पढ़न श्रवण या दरश से, मिलते जो आनंद ।नाम उसी का रस कहे, काव्य मनीषी चंद ।।/छंद/यति गति तुक जिस काव्य में, अरु हो मात्रा भार ।अथवा मात्रा भार हो, बनते छंद विचार ।/अलंकार/आभूषण जो काव्य का, अलंकार है नाम ।वर्ण शब्द अरु अर्थ से, काव्य सजाना काम ।।-रमेश चौ...

दोहे

पेड़ मूल को छोड़कर , जीवित रह न पाय । जुड़कर अपनी मूल से, लहर-लहर लहराय ।। अमरबेल जो चूसता, अन्य पेड़ का रक्त . । जितना चाहे फैल ले, पर हो सके न सख्त ।। बड़े हुए नाखून को, ज्यों काटे हो आप । बुरी सोच भी काटिये, जो वैचारिक ताप ।। रूप सजाने आप ज्यों, करते लाख उपाय । सोच सजाने भी करें, कछुक जतन मन भाय ।...

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